सबसे कमजोर देशों पर सबसे अधिक कर्ज का बोझ : पेरिस के शिखर सम्मेलन पर बोलीं सुनीता नारायण

सुनीता नारायण ने कहा कि शिखर सम्मेलन से कोई परिवर्तनकारी समाधान नहीं निकला, लेकिन इसने जलवायु और विकास वित्तपोषण संकट पर बातचीत शुरू की है।

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 27 June 2023
 
French President Emmanuel Macron (second from right) and Ajay Banga from the World Bank (Right). Photo: @EmmanuelMacron / Twitter

“आज, सबसे कमजोर देशों (जिन्हें जलवायु शमन के लिए भी धन की आवश्यकता है) पर बहुत अधिक कर्ज का बोझ है। हम अब छोटे बदलावों के बारे में बात नहीं कर सकते या गरीबों के कम बदलाव की बात नहीं कर सकते। हमें इसका उत्तर चाहिए और वह भी शीघ्रता से।” सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने यह बात पेरिस (फ्रांस) में हाल ही में संपन्न हुई न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट के शिखर सम्मेलन पर कही। नारायण ने कहा कि शिखर सम्मेलन से कोई परिवर्तनकारी समाधान नहीं निकला, लेकिन इसने जलवायु और विकास वित्तपोषण संकट पर बातचीत शुरू की है।

पेरिस शिखर सम्मेलन का नेतृत्व फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने किया और इसमें विकासशील दुनिया और यूरोप के कई नेताओं ने भाग लिया। इसका उद्देश्य गरीब और कमजोर देशों में धन की कमी के बारे में विचार करना था। क्योंकि वे कई संकटों से जूझ रहे हैं। जैसा कि इथियोपिया के प्रधान मंत्री अबी अहमद ने कहा: रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण गरीबी, ऋण और मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हुई और जलवायु पर इसका प्रभाव बढ़ रहा है।

सीएसई की जलवायु परिवर्तन पर शोध कार्य करने वाली अवंतिका गोस्वामी ने कहा, “ग्लोबल साउथ के देश ऋण संकट में हैं और पर्याप्त जलवायु वित्त प्रवाह के बिना, अपनी अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बोनाइज करने के दबाव का सामना कर रहे हैं। एक से डेढ़ दिन में खत्म होने वाले शिखर सम्मेलन से इन समस्याओं के समाधान होने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन इसने एक महत्वपूर्ण बातचीत शुरू कर दी है। इसने इन संकटों के पैमाने, ग्लोबल साउथ के देशों की स्पष्ट मांगों और कार्रवाई के उन रास्तों पर प्रकाश डाला है।”

इथियोपिया के अबी अहमद ने कहा कि अफ्रीकी देश अभूतपूर्व धन संकट का सामना कर रहे हैं। सार्वजनिक और निजी ऋण की स्थिति नई ऊंचाइयों पर जा पहुंची है। लगभग सभी वस्तुओं में मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ी है और आज कई अफ्रीकियों के लिए रोज का भोजन सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। बारबाडोस की प्रधान मंत्री मिया मोटली ने कहा कि विकासशील दुनिया के देश कर्ज में डूब रहे हैं।

सम्मेलन में ग्लोबल साउथ के देश अधिक रियायती अनुदान की मांग कर रहे हैं। जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप्स (जेईटीपी) जैसे सौदों में प्रत्येक देश की परिस्थितियों, श्रमिकों, समुदायों की जरूरतों, गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के लिए विकास लक्ष्यों पर विचार किया जाना चाहिए, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने बताया है कि उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि देश की बुनियादी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ जीवाश्म ईंधन उत्पादन को अस्तित्व में रखने की आवश्यकता हो सकती है। सम्मेलन में कुछ घोषणाएं भी की गईं। विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) के संबंध में आईएमएफ ने घोषणा की कि कमजोर देशों के लिए एसडीआर में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पूर्ति कर दी गई है। इसके अलावा विकसित देशों के एक संघ के साथ सेनेगल के लिए एक नई 2.5 बिलियन यूरो जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप डील की घोषणा की गई, इसका लक्ष्य 2030 तक सेनेगल के बिजली क्षेत्र में स्थापित क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को 40 प्रतिशत तक बढ़ाना शामिल है। कई समूहों ने शिपिंग उत्सर्जन पर कर लगाने का आह्वान किया है। जुलाई में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन की बैठक में इस मुद्दे पर अधिक चर्चा किए जाने उम्मीद जताई गई है। कोलंबिया और केन्या ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों की प्रकृति को संरक्षित करने, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने और उनकी अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बोनाइज करने की क्षमता पर ऋण के प्रभाव का आकलन करने के लिए ऋण, प्रकृति और जलवायु पर एक वैश्विक विशेषज्ञ समीक्षा का प्रस्ताव दिया है।

नारायण कहती हैं कि हर जलवायु परिवर्तन आपदा वैश्विक दक्षिणी देशों को अधिक ऋणग्रस्तता में ले जाती है क्योंकि वे जीवित रहने और पुनर्निर्माण के लिए उधार लेते हैं। इस वर्ष, हमें उन संरचनात्मक मुद्दों पर चर्चा करने की जरूरत है जो दुनिया में विशाल असमानताओं को रेखांकित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि देश ग्लोबल साउथ अनुकूलन या शमन की कीमत वहन नहीं कर सकता और हमें पैसा खोजने की जरूरत है। साथ ही हमें यह सब तेजी से करने की जरूरत है। अंत में गोस्वामी कहती हैं कि पेरिस शिखर सम्मेलन से जो स्पष्ट हुआ वह यह है कि विकासशील देशों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। झूठे समाधान पेश करना , अपर्याप्त ऋण राहत प्रयासों की पेशकश करना और जिम्मेदारी को निजी क्षेत्र पर स्थानांतरित करना, ये वे योजनाएं थीं जो विकसित देशों ने पेरिस में पेश कीं।

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