जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न फंगल रोग के कारण गेहूं की उपज में आ सकती है 13 फीसदी की कमी

शोध के अनुसार, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया भविष्य में फंगल रोग- गेहूं या वीट ब्लास्ट बीमारी के फैलने से सबसे अधिक प्रभावित होंगे

By Dayanidhi

On: Monday 05 February 2024
 
फोटो साभार : सीएसई

जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में खाद्यान्न की पैदावार और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है, जिसमें पौधों की बीमारियों से संबंधित खतरे मुख्य हैं। अब टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख (टीयूएम) के प्रोफेसर सेन्थोल्ड असेंग की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने फंगल रोग- गेहूं या वीट ब्लास्ट को लेकर अध्ययन किया है। उन्होंने इस बात को उजागर किया है कि इस रोग के और अधिक फैलने से 2050 तक दुनिया भर में गेहूं के उत्पादन में 13 फीसदी की कमी आ सकती है। फसलों पर लगने वाली इस तरह की बीमारी दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए भारी संकट पैदा कर सकती है

दुनिया भर में 22.2 करोड़ हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है जिससे 77.9 करोड़ टन गेहूं की फसल पैदा होती है, इस तरह गेहूं एक जरूरी खाद्य फसल बना हुआ है। सभी पौधों की प्रजातियों की तरह, गेहूं की फसल भी उन बीमारियों से जूझ रही है जो जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ साल पहले की तुलना में अधिक तेजी से फैल रही हैं, इन्हीं में से एक है गेहूं ब्लास्ट है।

गर्म और आर्द्र इलाकों में, कवक मैग्नापोर्थे ओरिजा गेहूं उत्पादन के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है, इसे पहली बार 1985 में देखा गया था। यह शुरुआत में ब्राजील से पड़ोसी देशों में फैला था। दक्षिण अमेरिका के बाहर इसका पहला मामला 2016 में बांग्लादेश में और 2018 में जाम्बिया में देखा गया। अब जर्मनी, मैक्सिको, बांग्लादेश, अमेरिका और ब्राजील के शोधकर्ताओं ने पहली बार मॉडल बनाया है कि भविष्य में गेहूं विस्फोट नामक बीमारी कैसे फैलेगी।

शोधकर्ताओं के अनुसार, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया भविष्य में इस बीमारी के फैलने से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में गेहूं की खेती का 75 फीसदी क्षेत्र भविष्य में खतरे में पड़ सकता है।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन में लगाए गए पूर्वानुमानों के अनुसार, गेहूं ब्लास्ट उन देशों में भी फैलता रहेगा जो पहले बहुत कम प्रभावित थे, जिनमें अर्जेंटीना, जाम्बिया और बांग्लादेश शामिल हैं। यह कवक उन देशों में भी प्रवेश कर रहा है जो पहले इससे अछूते थे। इनमें उरुग्वे, मध्य अमेरिका, दक्षिण-पूर्वी अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका, भारत और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

मॉडल के अनुसार, यूरोप और पूर्वी एशिया में खतरा कम है, इटली, दक्षिणी फ्रांस, स्पेन और दक्षिण-पूर्व चीन के गर्म और आर्द्र क्षेत्रों को छोड़कर। इसके विपरीत, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्मी की अधिक के साथ शुष्क स्थिति पैदा होती है, गेहूं ब्लास्ट का खतरा भी कम हो सकता है। हालांकि, इन मामलों में, गर्मी के तनाव से उपज क्षमता कम हो जाती है।

उपज में हानि के लिए अनुकूलित प्रबंधन की आवश्यकता होती है

प्रभावित क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष परिणामों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से हैं। इन क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा पहले से ही एक भारी चुनौती बनी हुई है और यहां गेहूं की मांग लगातार बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। कई क्षेत्रों में, किसानों को फसल की विफलता और वित्तीय नुकसान से बचने के लिए दूसरी फसलों की ओर रुख करना पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, ब्राजील के मध्य-पश्चिम में, गेहूं की जगह मक्के के उपज को प्राथमिकता दी जा रही है। भविष्य में उपज के नुकसान के खिलाफ एक और अहम रणनीति प्रतिरोधी गेहूं किस्मों का प्रजनन है। सीआईएमएमवाईटी ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआर) भागीदारों के सहयोग से कई गेहूं ब्लास्ट-प्रतिरोधी किस्में जारी की हैं जो गेहूं ब्लास्ट के प्रभाव को कम करने में सहायक रही हैं।

बुआई की सही तिथि के साथ, बालियां निकलने के चरण के दौरान गेहूं में ब्लास्ट को बढ़ावा देने वाली स्थितियों से बचा जा सकता है। अन्य उपायों के साथ मिलकर यह सफल साबित हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो ब्राजील में जल्दी बुआई जबकि बांग्लादेश में देर से बुआई से बचना होगा।

गेहूं ब्लास्ट के कारण उपज के नुकसान पर पहला अध्ययन

जलवायु परिवर्तन के कारण उपज में बदलाव पर पिछले अध्ययनों में मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रभावों जैसे बढ़ते तापमान, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और वातावरण में सीओ 2 उत्सर्जन में वृद्धि पर विचार किया गया था। फंगल रोगों पर किए गए अध्ययनों में अब तक गेहूं ब्लास्ट को नजरअंदाज किया गया है।

अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने गेहूं की वृद्धि और उपज के लिए एक सिमुलेशन मॉडल को एक नए विकसित गेहूं ब्लास्ट मॉडल के साथ जोड़कर उत्पादन पर गेहूं ब्लास्ट के प्रभाव पर गौर किया। इस प्रकार इसे मौसम जैसी पर्यावरणीय स्थितियों को गणना में शामिल किया जाता है, साथ ही पौधों की वृद्धि पर आंकड़ों को भी शामिल किया जाता है।

इस तरह, वैज्ञानिक इनके परिपक्व होने पर विशेष रूप से संवेदनशील चरण में रोग के दबाव का मॉडल बना रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह अध्ययन उत्पादन पर गेहूं ब्लास्ट के प्रभाव पर आधारित था। शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि जलवायु परिवर्तन के अन्य परिणाम पैदावार को और कम कर सकते हैं।

Subscribe to our daily hindi newsletter