विपदा नई, इलाज पुराना

बाढ़ और सूखे के असर को कम करने का केवल एक उपाय है। वह है लाखों, करोड़ों जल संरचनाओं को बनाने की तरफ ध्यान देना और इन्हें जीवित जल संरचना से जोड़ना। 

By Sunita Narain

On: Sunday 15 October 2017
 

तारिक अजीज / सीएसई

भारत में एक साथ सूखे और बाढ़ की स्थिति सामान्य हो चली है। इसे ठीक से समझने की जरूरत है। हर साल देर-सवेर सूखा और फिर विनाशकारी बाढ़ का चक्र हमारे सामने आता है। कई बार यह चक्र इतना भयंकर होता है कि सुर्खियां बन जाता है।

अभी भारत के 37 प्रतिशत जिले सूखे की स्थिति से गुजर रहे थे। करीब 25 प्रतिशत जिले ऐसे भी हैं जहां भारी बारिश हुई है। यह बारिश कुछ ही घंटों में 100 मिलीमीटर या इससे ज्यादा दर्ज की गई है। बारिश न केवल कम ज्यादा हो रही है बल्कि अतिशय (एक्सट्रीम) की स्थिति में भी पहुंच रही है।

अगस्त में खुले मैदानों का शहर चंडीगढ़ बारिश के पानी में डूब गया। 11 अगस्त तक यहां कम पानी बरसा था लेकिन इसके बाद 12 घंटे के अंतराल में ही 115 मिलीमीटर बारिश हो गई। इसका नतीजा यह निकाला कि शहर डूब गया। दूसरे शब्दों में कहें तो महज कुछ घंटों में ही यहां वार्षिक मानसून का 15 प्रतिशत पानी बरस गया। बैंगलूरू में बमुश्किल बारिश हुई थी लेकिन यहां भी अचानक पानी बरसा। करीब एक दिन में ही यहां 150 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई जो वार्षिक मानसून का करीब 30 प्रतिशत है। एक साथ इतनी बारिश में शहर का डूबना हैरानी की बात नहीं है। माउंट आबू में भी दो दिन में ही वार्षिक मानसून का आधा पानी बरस गया।

मौसम की इस दोहरी मार का मैंने अपने लेखों में कई बार जिक्र किया है। यह तथ्य है कि हमारा जल प्रबंधन ठीक नहीं है। बाढ़ के रास्ते में हम घर और इमारतें बना रहे हैं। जलस्रोतों को नष्ट कर रहे हैं। उधर, जलवायु परिवर्तन का मानसून पर असर दिखाई देने लगा है। इससे थोड़े दिनों में ही काफी ज्यादा पानी बरस रहा है। वैज्ञानिकों ने पहले ही इसका अनुमान लगा लिया था।

आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 सितंबर  तक भारत में अतिशय बारिश की 21 घटनाएं हुई हैं। यानी एक दिन में 244 मिलीमीटर से ज्यादा पानी बरस गया है। 100 भारी बारिश की घटनाएं हुई हैं अर्थात 124 से 244 मिलीमीटर के बीच पानी बरसा। इतनी बारिश से बाढ़ आना तय है। चिंता की बात यह है कि मौसम विभाग के आंकड़ों में इस बारिश को सामान्य बताया जाएगा। यह नहीं बताया जाएगा कि बुआई के लिए जब सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब बरसात नहीं हुई। इसका भी जिक्र नहीं होगा कि एक ही बार में बारिश हो गई। बारिश आई और चली गई। इससे कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हुआ।

वक्त आ गया है कि हम इस सच्चाई को समझें। हमें एक ही बार में दोनों स्थितियों- बाढ़  को कम करना और कम पानी के साथ जीना सीखना होगा। इस दिशा में एक साथ काम किया जा सकता है। हमें बिना समय गंवाए, बिना घबराहट और बिना बहस में पड़े यह काम करना होगा। देरी का वक्त बिल्कुल नहीं है। समय के साथ जलवायु परिवर्तन में इजाफा ही होगा। मौसम व बरसात अधिक अनिश्चित, अधिक अतिशय और अधिक विनाशकारी ही होगी।

बाढ़ को ही लीजिए। खबर है कि सरकार असम में बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए विशाल ब्रह्मपुत्र नदी से गाद निकालने पर विचार कर रही है। यह न केवल अव्यवहारिक है बल्कि मुद्दे से बेवजह भटकाने वाला भी है। इसमें समय ही बर्बाद होगा। बिहार में भी सरकार इससे दो कदम आगे बढ़कर नदी के साथ तटबंध भी बनाना चाहती है। राज्य से बहने वाली कोसी नदी देश में एकमात्र ऐसी नदी है जिसे मां और डायन कहा जाता है। यह हिमालय से आती है और बड़ी मात्रा में गाद बहाकर लाती है। नियमित अंतराल में यह नदी अपना मार्ग बदलती रहती है। हम जानते हैं कि नदी को तटबंध में बांधने का उपाय कारगर नहीं है। गाद भरने से नदी उथली हो जाती है और पानी आसपास के इलाकों में फैल जाता है। बिहार में इस साल आई बाढ़ में 500 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं और एक करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। यह याद रखने की जरूरत है कि हर बाढ़ और सूखे से गरीब और गरीब हो जाता है। घर, शौचालय, स्कूल सब बह जाता है और जिंदगी बर्बाद हो जाती है।

बाढ़ का उत्तर वही है जो लंबे वक्त से चर्चा में बना हुआ है। कई दशकों पहले इसको प्रयोग में लाया गया था। पानी के बहाव को दिशा देने के लिए योजना तंत्र की जरूरत है। नदियों को तालाबों, झीलों और नालियों से जोड़ने की जरूरत है ताकि पानी निर्बाध रूप से बहता रहे। इससे पानी का क्षेत्र में वितरण होगा और कई फायदे होंगे। भूमिगत जल रिचार्ज होगा और कम बारिश की स्थिति में पीने व सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध रहेगा। इसका बड़ा फायदा यह भी होगा कि बाढ़ की स्थिति में भोजन की कमी नहीं आएगी क्योंकि आर्द्रभूमि (वेंटलैंड) की उत्पादन क्षमता काफी ज्यादा होती है। मछलियां और पर्याप्त भोजन इससे सुनिश्चित होगा।

बाढ़ और सूखे के असर को कम करने का केवल एक उपाय है। और वह उपाय है लाखों, करोड़ों जल संरचनाओं को बनाने की तरफ ध्यान देना और इन्हें जीवित जल संरचना से जोड़ना। इससे बारिश के पानी का ठहराव होगा। बाढ़ के लिए यह स्पंज का काम करेगा और सूखे में भंडारगृह का। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि दीवारों पर लिखी इबारत को हम कब पढ़ेंगे। अब ऐसा करने में ही सबकी भलाई है।

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