36 लाख वर्षों में पहली बार 421.21 पीपीएम पर पहुंचा कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर

वहीं यदि मार्च 2021 के औसत को देखें तो यह 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया है

By Lalit Maurya

On: Thursday 08 April 2021
 

मानव इतिहास में पहली बार कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 421.21 पीपीएम पर पहुंचा है जोकि उसका अब तक उच्चतम बिंदु है। 03 अप्रैल 2021 को मौना लोआ वेधशाला द्वारा दर्ज आंकड़ों के अनुसार यह पहला मौका है जब कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर इतना ऊंचा दर्ज किया गया है। इससे पहले नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मई 2020 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 417.64 पीपीएम पर पहुंच गया था। यह तब है जब लॉकडाउन के कारण वैश्विक स्तर पर आई आर्थिक मंदी के चलते कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 7 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक क्रांति की शुरुवात से अब तक इसका स्तर 50 फीसदी बढ़ चुका है। स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ़ ओशनोग्राफी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इसके औसत को देखें तो मार्च 2021 में यह 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया है। इससे पहले मई 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 417.1 पीपीएम पर पहुंच गया था। यदि 2020 के वार्षिक औसत को देखें तो 413.94 पीपीएम था, जिसके 2021 में 416.3 पीपीएम पर पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।

हवाई, अमेरिका स्थित मौना लोवा ऑब्जर्वेटरी 1950 के दशक से पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर पर नजर बनाये हुए है, उसके अनुसार जहां 1959 में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 था, जो कि 2018 में 92.55 अंक बढ़कर 408.52 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था । गौरतलब है कि 2014 में पहली बार वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 400 पीपीएम के पार गया था। यदि इसका औसत देखा जाये तो हर 1959 से लेकर 2018 तक हर वर्ष वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 1.57 पीपीएम की दर से वृद्धि हो रही थी।

क्या होती है कार्बन डाइऑक्साइड?

कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), एक महत्वपूर्ण हीट-ट्रैपिंग, ग्रीनहाउस गैस है, जो मानव गतिविधियों जैसे वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ-साथ सांस छोड़ने और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए वातावरण में फैलती है।

पिछले 171 वर्षों मानवीय गतिविधियों के चलते वातावरण में मौजूद इसके स्तर में 1850 की तुलना में करीब 48 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। यह वृद्धि कितनी ज्यादा है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इतनी वृद्धि तो पिछले 20,000 वर्षों में प्राकृतिक रूप भी नहीं हुई है।

भारत पर भी पड़ेगा इसका असर

जहां भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है, वहीं दुनिया के 20  सर्वाधिक प्रदूषित नगर भी भारत में ही हैं । दुनिया भर में कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ रहा स्तर भारत के लिए भी चिंता का विषय हैं । हालांकि सीधे तौर पर कार्बन डाईऑक्साइड के बढ़ते स्तर का भारत पर क्या असर होगा, इसका कोई आकलन मौजूद नहीं है। फिर भी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा किये गया अध्ययन दर्शाता है कि 20 वीं सदी की शुरुआत के बाद से भारत के वार्षिक औसत तापमान में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है । जिसके परिणामस्वरूप मौसम की चरम घटनाओं जैसे बाढ़, सूखा, बेमौसम बारिश और उसमें आ रही अनिमियतता और ओलावृष्टि में हो रही वृद्धि साफ़ देखी जा सकती है, जिसका परिणाम न केवल हमारे दैनिक जीवन पर पड़ रहा है, वहीं दूसरी और इसके कारण हमारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

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