भारतीय समुद्री क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन वैश्विक औसत से बहुत कम: अध्ययन

अध्ययन के अनुसार, प्रति टन उत्पादन से 1.32 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन होता है, जो प्रति टन मछली के दो टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन के वैश्विक आंकड़े की तुलना में बहुत कम है

By Dayanidhi

On: Tuesday 14 March 2023
 
फोटो साभार : आई-स्टॉक

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) के अध्ययन के मुताबिक भारतीय समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन वैश्विक स्तर की तुलना में बहुत कम है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के जलवायु के अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के तहत शोध परियोजना के मत्स्य पालन  की समीक्षा बैठक में आंकड़े प्रस्तुत किए गए। आंकड़ों के आधार पर सीएमएफआरआई ने पाया कि मछली पकड़ने के क्षेत्र में देश में उपयोग किए जाने वाले ईंधन का 90 प्रतिशत से अधिक का उपयोग हुआ।

भारत की समुद्री मत्स्य पालन में कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने के लिए एक शोध में, आईसीएआर-सीएमएफआरआई ने अनुमान लगाया है कि इस क्षेत्र में एक टन मछली का उत्पादन करने के लिए 1.32 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन होता है, जो प्रति टन मछली के दो टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन के वैश्विक आंकड़े की तुलना में बहुत कम है।

सीएमएफआरआई के मुताबिक, इस क्षेत्र में होने वाली कुल गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन का आकलन किया गया है, मछली पकड़ने से लेकर व्यापार करने तक इसे सीओ2 के बराबर बदलाव करके देखा गया।

आईसीएआर-सीएमएफआरआई के निदेशक ए.गोपालकृष्णन ने कहा कि अध्ययन देश के सभी समुद्री राज्यों के चुनिंदा मछली पकड़ने के केंद्रों में किया गया था, जिसमें मछली पकड़ने से संबंधित गतिविधियों को तीन चरणों में मछली पकड़ने  से पहले, पकड़ने के दौरान व्यापार करने तक विभाजित किया गया था।

गोपालकृष्णन ने कहा, समुद्री मैकेनाइज्ड मत्स्य पालन क्षेत्र से देश का कार्बन उत्सर्जन वैश्विक स्तर से 16.3 फीसदी कम है।

सीएमएफआरआई के प्रमुख  वैज्ञानिक ग्रिंसन जॉर्ज ने कहा कि चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता, समुद्र के स्तर में वृद्धि और हिंद महासागर के गर्म होने से कई अन्य कारणों से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आया है, जिससे कुछ मछलियों की कमी और कुछ अन्य किस्में भी उभर कर सामने आई हैं।

अध्ययन के मुताबिक इस परियोजना का उद्देश्य फसलों, पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन सहित कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करना और जलवायु अनुकूल तकनीकों को विकसित करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है, जिससे देश के कमजोर क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा सके।

तटीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन के खतरों का आकलन करने के अपने प्रयासों में, सीएमएफआरआई ने चक्रवाती प्रवणता, बाढ़ प्रवणता, तटरेखा परिवर्तन, लू और समुद्र के स्तर में वृद्धि को उन प्रमुख खतरों के रूप में पहचाना जो तटीय जीवन को संकट में डाल सकते हैं।

जलवायु संकट के कारण मछली मूल्य श्रृंखला में व्यवधान के मद्देनजर, सीएमएफआरआई ने जलवायु-स्मार्ट मूल्य श्रृंखला महत्वपूर्ण बिंदुओं, समुद्री खाद्य व्यापार के लिए नीतिगत सलाह और उभरती प्रजातियों के लिए एक उपभोक्ता जानकारी टूल किट विकसित करने का प्रस्ताव दिया।

आईसीएआर के उप महानिदेशक एस. के. चौधरी ने कहा कि तापमान में वृद्धि का मत्स्य पालन सहित खाद्य उत्पादक क्षेत्रों पर भारी प्रभाव पड़ता है।

उन्होंने कहा, भूजल पर अत्यधिक दबाव से जमीन की सतह पर अधिक खारापन बढ़ रहा है, खाद्य क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करते समय पारिस्थितिकी के नुकसान का आकलन करने पर भी विचार किया जाना चाहिए।

एनआईसीआरए विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष बी वेंकटेश्वरलू ने वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन के समय में तकनीकी नवाचारों और नीतिगत हस्तक्षेपों में योगदान पर गौर करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि नई तकनीकें चक्रवातों, भारी वर्षा और अन्य चरम मौसम की घटनाओं के दौरान मछुआरों को अपनी आजीविका बनाए रखने में मदद करेंगी।

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