सूक्ष्मजीवों पर जलवायु परिवर्तन के असर से बढ़ रहा है महासागरों में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन

पश्चिमी उत्तर प्रशांत महासागर में संवेदनशील समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नाइट्रस ऑक्साइड उत्पादन में वृद्धि के साथ अम्लीकरण में बदलाव होकर मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।

By Dayanidhi

On: Monday 11 December 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

दुनिया भर में जलवायु में बदलाव को लेकर महासागरों की अहम भूमिका होती है, यह अनेकों जीवों को जीने के लिए आश्रय देते हैं। यह मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में जारी अधिकांश कार्बन उत्सर्जन और गर्मी को अवशोषित करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, कार्बन उत्सर्जन के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, महासागरों का अम्लीकरण हो रहा है और महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हो रही है।

इसके अलावा बढ़ते मानवजनित-नाइट्रोजन-जमाव (एएनडी) ने बड़े पैमाने पर समुद्री पर्यावरण को प्रभावित किया है। इन परिणामों के हिस्से के रूप में, गैसें - नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) और मीथेन (सीएच4) बड़े पैमाने पर समुद्र में रहने वाले 'प्रोकैरियोट्स', माइक्रोबियल या सूक्ष्मजीवों द्वारा नियंत्रित होती हैं। हालांकि कई अध्ययनों ने इन प्रक्रियाओं का विस्तार से विश्लेषण किया है, लेकिन समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके समवर्ती प्रभाव की जांच नहीं की गई है।

हाल के एक अध्ययन में, इंचियोन नेशनल यूनिवर्सिटी में समुद्री विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर इल-नाम किम के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर के पार, महासागरों का बढ़ता तापमान, इनका अम्लीकरण, महासागरों में ऑक्सीजन की कमी और एएनडी के समवर्ती प्रभाव के कारण प्रोकैरियोटिक आबादी में बदलाव और चयापचय में हो रहे बदलावों का मूल्यांकन किया। इस अध्ययन को मरीन पोल्लुशन बुलेटिन नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन के हवाले से प्रोफेसर किम कहते हैं, जलवायु में परिवर्तन से समुद्री पर्यावरणीय में भी बदलाव होते हैं और यह अध्ययन मानव जीवन पर उनके प्रभाव के बारे में हमारी समझ को बढ़ा सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने एक साथ समुद्र की सतह परत (एसएल), मध्यवर्ती परत (आईएल), और गहरी परत (डीएल) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया।

सूक्ष्मजीव या माइक्रोबियल समुदाय और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) और मीथेन (सीएच4) चक्रों को प्रबंधित करने में उनकी कार्यात्मक क्षमता का मूल्यांकन जैव-भू-रासायनिक विश्लेषण और माइक्रोबियल जीनोम-अनुक्रमण का उपयोग करके किया गया। परिणामों से पता चलता है कि एसएल से डीएल तक प्रोकैरियोट्स जलवायु परिवर्तन चालकों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं।

लंबी अवधि के दौरान, पश्चिमी उत्तर प्रशांत महासागर (डब्ल्यूएनपीओ) में संवेदनशील समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) उत्पादन में वृद्धि के साथ अम्लीकरण में बदलाव होकर बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जिससे अंततः मीथेन (सीएच4) उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।

ये निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रोकैरियोट्स और जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाओं की वर्तमान में अनुमानित क्षमता से अलग हैं। यह इस बात पर भी गौर करता है कि जलवायु परिवर्तन खुले महासागर के पारिस्थितिक तंत्र को कैसे प्रभावित करता है

डॉ. किम ने अध्ययन के निष्कर्ष में कहा, यह शोध जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और समुद्री संसाधनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में योगदान देगा। इस अग्रणी अध्ययन में भविष्य के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र शोध को आकार देने की क्षमता है। समुद्र के अम्लीकरण और तापमान में वृद्धि को कम करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियां इन महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीव समुदायों और ग्रीनहाउस गैस चक्रों को स्थिर करने में मदद कर सकती हैं।

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