जलवायु लक्ष्य के लिए चुनौती बने थर्मल पावर प्लांट, हर साल कर रहे 942.5 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जन

चीन में चल रहे 1064.4 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांट हर साल 461.5 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहे हैं, जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 28 April 2022
 

दुनिया के 79 देशों में 2,400 से अधिक कोयला आधारित बिजली संयंत्र हैं, जिनकी कुल क्षमता करीब 2,100 गीगावाट है। अकेले 2021 में इसकी क्षमता में 18.2 गीगावाट (करीब 0.87 फीसदी) की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर अभी 189 से अधिक कोयला आधारित बिजली संयंत्र निर्माणाधीन हैं, जिनकी कुल क्षमता करीब 176 गीगावाट है। वहीं 296 संयंत्र निर्माण पूर्व स्थिति में हैं, जिनकी कुल क्षमता करीब 280 गीगावाट है।

देखा जाए तो यह थर्मल पावर प्लांटस बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जित कर रहे हैं, जो जलवायु में आते बदलावों के लिए भी कहीं हद तक जिम्मेवार है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यदि इसी तरह बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर हमारी निर्भरता बनी रहेगी तो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनका क्या होगा?

रिपोर्ट के मुताबिक जो थर्मल पावर प्लांट कार्यरत हैं उनसे हर साल करीब 942.5 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है। वहीं जितने पावर प्लांट के लिए अब तक परमिट मिल चुका है या मिलना बाकी है, या फिर जिनकी घोषणा कर दी गई है और निर्माण जारी हैं उनसे होने वाले उत्सर्जन को देखें तो वो करीब 178.4 करोड़ टन के करीब होगी। यदि सिर्फ भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में जितने थर्मल पावर प्लांट चल रहे हैं उनसे हर साल 103.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है।

थर्मल पावर प्लांटस की क्षमता में जो 0.87 फीसदी की वृद्धि आई है वो आपको काफी कम लग सकती है, लेकिन समझना होगा कि यदि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है तो इस क्षमता में विस्तार की जगह गिरावट करने की जरुरत है। इस बारे में रिपोर्ट की प्रमुख लेखक फ्लोरा शैंपेनोइस का कहना है कि “हालांकि कोल प्लांट पाइपलाइन सिकुड़ रही है, लेकिन नए कोयला संयंत्रों के निर्माण के लिए कोई कार्बन बजट शेष नहीं रह गया है। ऐसे में हमें अब रुकने की जरुरत है।“

अंतराष्ट्रीय संगठन ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट “बूम एंड बस्ट कोल 2022” के हवाले से पता चला है कि 2021 में वैश्विक स्तर पर जहां 25.6 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांट को बंद किया गया वहीं अकेले चीन ने इस दौरान 25.2 गीगावाट क्षमता के नए थर्मल पावर प्लांटस को शुरू किया है।

देखा जाए तो इन प्लांट को बंद करने से जो कमी आई थी उसे अकेले चीन ने नए संयंत्र शुरू करके लगभग पूरा कर दिया है। ऐसे में दुनिया के अन्य देशों में स्थापित थर्मल पावर प्लांटस की वजह से कोयला आधारित बिजली क्षमता में इजाफा होना स्वाभाविक ही था।

यदि चीन सहित अन्य देशों में 2021 के दौरान थर्मल पावर क्षमता के विस्तार को देखें तो वो 45 गीगावाट के करीब थी, जिसमें अकेले चीन की हिस्सेदारी करीब 56 फीसदी थी। गौरतलब है कि चीन ने 2030 तक अपने उत्सर्जन के चरम बिंदु को हासिल करने के साथ ही 2060 तक इसे पूरी तरह बंद करने का लक्ष्य रखा है।     

चीन में हर साल 461.5 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जित कर रहे हैं यह प्लांट

चीन में चल रहे यह थर्मल पावर प्लांट हर साल 461.5 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहे हैं, जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है। वहीं अमेरिका में कार्यरत कोयला आधारित बिजली संयंत्र हर साल 111.1 करोड़ टन सीएओ2 पैदा कर रहे हैं। 

कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण बढ़ते उत्सर्जन और पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को देखते हुए लम्बे समय से वैज्ञानिक और पर्यावरण कार्यकर्त्ता कोयले के स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय स्रोतों को बढ़ावा देने की मांग करते रहे हैं। इसके बावजूद अभी भी भारत और चीन सहित दुनिया के कई देश अपनी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के लिए काफी हद तक कोयले पर ही निर्भर हैं।

हाल ही में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। इसकी वजह से जो यूरोपियन देश पहले रूस से प्राप्त होने वाली प्राकृतिक गैस पर निर्भर थे वो उसकी जगह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले के उपयोग पर विचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि कई विकसित देश इन थर्मल पावर प्लांट को बंद करने की समय सीमा से बचने के लिए अपने देशों की जगह अन्य पिछड़े देशों में इनके निर्माण के लिए मदद कर रहे हैं।

यदि भारत के भी जलवायु लक्ष्यों को देखें तो उसने 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने का लक्ष्य रखा है। जिस हासिल करने के लिए उसने जो ऊर्जा सम्बन्धी नीतियां बनाई हैं उनके अनुसार देश ने 2030 तक अपनी 50 फीसदी ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। जिसके लिए वो अपनी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करके गैर जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करने का लक्ष्य रखा है।

यदि भारत की कुल कोयला आधारित बिजली क्षमता को देखें तो वो करीब 204.08 गीगावाट है, जोकि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का करीब 51.1 फीसदी है। वहीं जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता करीब 59.1 फीसदी है जबकि सोलर, विंड सहित अन्य गैर जीवाश्म ईंधन स्रोतों से भारत करीब 40.9 फीसदी यानी करीब 163.4 गीगावाट बिजली पैदा कर रहा है।

इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन के लिए काम कर रहे संगठन ई3जी द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2015 से अब तक भारत ने करीब 326 गीगावाट क्षमता की थर्मल पावर परियोजनाओं को रद्द कर दिया है, जोकि पर्यावरण के दृष्टिकोण से एक अच्छी खबर है। अनुमान है कि इसके चलते 2015 से देश में प्रस्तावित थर्मल पॉवर परियोजनाओं में करीब 92 फीसदी की गिरावट आई है।

इस आधार पर देखें तो भारत की उत्सर्जन सम्बन्धी जो नीतियां हैं वो 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के तो अनुकूल हैं, लेकिन यदि हमें 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो कार्बन एक्शन ट्रैकर के अनुसार देश को अपने ऊर्जा क्षेत्र से कोयले के उपयोग को 2040 तक बंद करना होगा।

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