15 सालों में शहरी यातायात के उत्सर्जन में 22 फीसदी की कटौती संभव है, कैसे यहां जानें

गणना मॉडल में राजनीतिक इच्छा शक्ति से लेकर हर शहर के लिए सबसे बड़े जलवायु संरक्षण प्रभाव वाली चीजों को शामिल किया गय, जिसके चलते अधिकतम 31 फीसदी तक उत्सर्जन से बचा जा सकता है

By Dayanidhi

On: Thursday 01 June 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

लोगों पर अत्यधिक दबाव डाले बिना दुनिया के बड़े शहरों में यातायात को जलवायु के अधिक अनुकूल कैसे बनाया जा सकता है? दुनिया भर के 120 प्रमुख शहरों का एक मॉडल-आधारित अध्ययन से पता चलता है कि इन दो प्रमुख लक्ष्यों को कैसे समेटा जा सकता है।

इसमें इस बात की शर्त होगी कि इनमें से किसी भी शहर में जीवन की गुणवत्ता में कमी नहीं आने दी जाएगी। यातायात में अनुकूल जलवायु नीति 15 वर्षों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 22 फीसदी तक कम कर सकती है।

यह अध्ययन बर्लिन स्थित जलवायु अनुसंधान संस्थान, मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन ग्लोबल कॉमन्स एंड क्लाइमेट चेंज (एमसीसी) की मदद से किया गया है।

अध्ययनर्ताओं ने बताया कि उन्होंने इसके लिए एनईडीयूएम नामक गणना मॉडल का इस्तेमाल किया, जो क्षेत्रीय अर्थशास्त्र में अच्छी तरह से स्थापित है। उन्होंने इसे प्रत्येक शहर के लिए जनसंख्या घनत्व, भूमि उपयोग, आवास के आकार, किराए और यातायात पर होने वाले खर्च के आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण किया।

फिर उन्होंने शहरी यातायात में जलवायु नीति के लिए चार चीजें लागू की, अर्थात् ईंधन कर, कुशल कार, सार्वजनिक परिवहन में निवेश या जलवायु-अनुकूल शहरी विकास, उन्हें अलग से और साथ-साथ लागू करना इसमें शामिल है।

इसके परिणामस्वरूप हर शहर और प्रत्येक परिदृश्य के लिए दो मुख्य चीजें मिली, शहरी यातायात से गैसों का उत्सर्जन और यहां रहने वाले लोगों के कल्याण की अहमियत।

जीवन के प्राकृतिक मानकों के अलावा, इसमें यातायात से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की कीमत भी शामिल है, जिसमें शोर, गाड़ियों से निकलने वाला धुवां, दुर्घटनाएं, साथ ही चलने या साइकिल चलाने से शरीर को स्वस्थ रखना शामिल है।

120 से अधिक बड़े शहरों को अध्ययन में शामिल किया गया, 15 वर्षों के दौरान गैस उत्सर्जन में 4 से 12 फीसदी के बीच की गिरावट देखी गई। जो शहरी जलवायु नीति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, इसे 31 फीसदी तक कम किया जा सकता है, बशर्ते सभी चार दृष्टिकोणों का एक साथ सही से पालन किया  जाए।

अध्ययन के इस पहले चरण में यह परिणाम मोटे तौर पर शोध साहित्य में मौजूदा अनुमानों के अनुरूप है। कल्याण के लिए मध्यवर्ती परिणाम ठीक नहीं हैं, इसमें औसतन तीन फीसदी की गिरावट देखी गई है। लेकिन नए अध्ययन की बात यह है कि एक दूसरे चरण में, अध्ययनकर्ताओं ने इस चीज का निर्माण किया जिससे प्रत्येक शहर में वहां रहने वाले लोगों का कल्याण मामूली रूप से बढ़ता है।

इस शर्त के तहत, यानी राजनीतिक इच्छा शक्ति की दृष्टि से, गणना मॉडल ने प्रत्येक शहर के लिए सबसे बड़े जलवायु संरक्षण प्रभाव वाले नीतियों का निर्धारण किया। परिणाम यह था कि अधिकतम 31 फीसदी तक उत्सर्जन से बचा जा सकता है।

एमसीसी वर्किंग ग्रुप लैंड यूज, इंफ्रास्ट्रक्चर एंड ट्रांसपोर्ट के प्रमुख और सह-अध्ययनकर्ता फेलिक्स क्रुत्ज़िग कहते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि प्रत्येक शहर में कल्याणकारी तरीके से उत्सर्जन को कम करना संभव है, जबकि दुनिया भर के अधिकांश उत्सर्जन में कमी लाना जरूरी है।

हालांकि, स्थानीय विशेषताओं के मद्देनजर, प्रत्येक मामले में एक सही रणनीति की जरूरत होती है। जब जलवायु संरक्षण की बात आती है तो इसे लागू करने में आखिर में नगर पालिकाओं को लचीले ढंग से कार्य करने में मदद मिलेगी।

मुख्य अध्ययनकर्ता चार्लोट लिओटा कहते हैं, हमारा काम पहली बार ऐसी रणनीतियों को विकसित करने के लिए एक विश्लेषणात्मक ढांचा प्रदान करता है। यह दुनिया भर में बढ़ते तापमान के खिलाफ मुकाबले में शहरी यातायात नीतियों के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।

दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग आठ फीसदी के लिए शहरी यातायात जिम्मेवार है। अब तक, क्षेत्रीय अर्थशास्त्र पर शोध में शायद ही उन पर विचार किया गया है। संकट से बाहर निकलने का रास्ता खोजने के लिए जलवायु कूटनीति में उपयोग किए जा रहे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित तरीकों में शहर की नीतियों की भी काफी हद तक उपेक्षा की गई है। यह अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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