लॉकडाउन: मिथिला पेंटिंग बनाने वाले कलाकार दाने-दाने को मोहताज

मिथिला पेंटिंग्स के अलावा बिहार में और भी लोक कलाएं हैं, जो हजारों परिवारों को दो जून की रोटी मुहैया कराती हैं

By Umesh Kumar Ray

On: Thursday 30 April 2020
 

टिकुली आर्ट बनाती लड़कियां। फोटो : उमेश कुमार रायसोनू निशांत और उनकी पत्नी मिथिला पेंटिंग्स के मंजे हुए कलाकार हैं। उनका परिवार पेंटिंग्स से होने वाली कमाई से ही चलता है, लेकिन एक महीने से उन्हें एक पैसे की कमाई नहीं हुई है। वह बताते हैं, “हम दोनों मिथिला पेंटिंग्स बनाकर हर महीने 40 से 45 हजार रुपए कमा लेते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण हमारी पेंटिंग्स बिक नहीं रही है। जो पूंजी थी, वो धीरे-धीरे खत्म हो गई, तो केंद्र सरकार की मुद्रा लोन योजना के तहत मिले लोन के पैसे से चूल्हा जल रहा है।”

सोनू निशांत मधुबनी जिले की तिरहुत कॉलोनी में रहते हैं और दो तरह से अपनी पेंटिंग्स बेचते हैं। उन्होंने कहा, “मैं मध्यस्थों के जरिए भी पेंटिंग्स बेचता हूं और सीधे खरीदार को भी देता हूं, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन के कारण किसी भी तरह पेंटिंग्स नहीं बिक पा रही है। उल्टे नेपाल से पेंटिंग्स बनाने का बड़ा कांट्रैक्ट मिला था, वो भी रद्द हो गया।”

सोनू की तरह मिथिला पेंटिंग्स बनाने वाले हजारों कलाकार लॉकडाउन के कारण कठिन दौर से गुजर रहे हैं। मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव में लगभग हर घर में मिथिला पेंटिंग्स की जाती है। इसी गांव में रंजीत पासवान रहते हैं। उनके परिवार के आधा दर्जन कलाकारों को राष्ट्रीय व राज्यस्तर का पुरस्कार मिल चुका है। 15 सदस्यों का ये परिवार भी मिथिला पेंटिंग्स की बिक्री पर निर्भर है।

रंजीत पासवान फिलहाल दिल्ली में फंसे हुए हैं। उन्होंने बताया, “मैं 3-4 लाख रुपए की पेंटिंग्स लेकर 9 फरवरी को ही दिल्ली आया था। यहां की एक प्रदर्शनी में हिस्सा लिया था जहां 3-4 हजार रुपए की पेंटिंग्स बिकी थी। इसके बाद मैं एक दूसरी प्रदर्शनी में शामिल होने वाला था कि दिल्ली में बंदी हो गई। तब से घर में कैद हूं और एक पैसे की कमाई नहीं हो रही है।” रंजीत पासवान को बंगलुरू और गोवा से मिथिला पेंटिंग्स बनाने का बड़ा ऑर्डर मिला था, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह रद्द हो गया। उन्होंने कहा, “हमारे पास एक बित्ता खेत नहीं है। हम लोग मिथिला पेंटिंग्स की बिक्री पर ही आश्रित हैं। लॉकडाउन के कारण बड़ी मुश्किल में फंस गए हैं।”

मिथिला पेंटिंग बनाते कलाकार सोनू निशांत। फोटो: उमेश कुमार राय‘क्राफ्टवाला’ के राकेश झा मानते हैं कि लॉकडाउन के कारण अगले 4-5 महीने तक मिथिला पेंटिंग्स का व्यवसाय उबर नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, “मिथिला पेंटिंग्स के कलाकारों के लिए दिल्ली एक बड़ा मार्केट है, क्योंकि यहां सालभर प्रदर्शनी लगी रहती है। कोरोनावायरस को लेकर दिल्ली में कई तरह के प्रतिबंध लगने के बाद बहुत सारे कलाकार अपने घर लौट गए हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण सबकुछ बंद है, तो कलाकार न पेंटिंग्स बना पा रहे हैं और न बेच पा रहे हैं।” क्राफ्टवाला बड़े कॉन्ट्रैक्ट लेता है और कलाकारों से काम करवाता है। राकेश झा बताते हैं, “थोक भाव में पेंटिंग्स खरीदने के अलावा रेलवे में और कुछ निजी संस्थानों में मिथिला पेंटिंग्स का बहुत काम होने वाला था, लेकिन लॉकडाउन के कारण सारा अनुबंध रद्द हो गया।”

मिथिला पेंटिंग्स के अलावा बिहार में और भी लोक कलाएं हैं, जो हजारों परिवारों को दो जून की रोटी मुहैया कराती हैं। इनमें संगतराशी, सिक्की आर्ट, लकड़ी की कलाकृतियां व टिकुली आर्ट शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक के मुताबिक, बिहार में लगभग 80 हजार लोक कलाकार हैं, जिनकी रोजी-रोटी कलाकृतियों की बिक्री से चलती है।

पटना के नासरीगंज की रहनेवाली आरती देवी घर भी संभालती हैं और खाली वक्त में टिकुली आर्ट पर हाथ आजमाती हैं। टिकुली आर्ट से वह हर महीने 5-6 हजार रुपए कमा लेती थीं। उन्होंने कहा, “पति की कमाई से घर चलता था और टिकुली आर्ट से मैं जो कमाती थी, उससे अपने शौक और बच्चों की जरूरतें पूरी करती। कुछ पैसे बचा भी लेती थी, लेकिन लॉकडाउन होने से बाद बैठे हैं। पति भी काम पर नहीं जा पा रहे हैं, जिससे घर में खाने-पीने की किल्लत है।”

सोना आर्ट के मालिक व पेंटर अशोक विश्वास थोक में ऑर्डर लेकर आरती देवी व अन्य महिलाओं से टिकली आर्ट बनवाते हैं। उन्होंने बताया, “लगभग 50 हजार का माल बनकर तैयार है, लेकिन लॉकडाउन के कारण उन्हें भेज नहीं पा रहे हैं। मैं जिन महिलाओं से काम करवाता हूं, वे गरीब परिवार से आती हैं। टिकुली आर्ट के जरिए उन्हें आर्थिक मदद मिल जाती थी। लॉकडाउन के कारण काम नहीं होने और भुगतान रुक जाने से वे बहुत परेशान हैं।”

लोक कलाकारों ने बिहार सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने कहा, “सरकार लोक कलाकारों की कलाकृतियां खरीदेगी। उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान को इसका जिम्मा दिया गया है।”

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