डीएमएफ से दूर होगी खनन प्रभाावितों की गरीबी

खान मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश भर के डीएमएफ में लगभग 36,000 करोड़ रुपए एकत्र किए गए हैं

By DTE Staff

On: Friday 10 April 2020
 

खनन प्रभावित क्षेत्रों में रहने वालों के हितों की रक्षा के लिए जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) ट्रस्ट स्थापित किए गए। डीएमएफ में अब तक लगभग 36,000 करोड़ रुपए एकत्र किए गए हैं। डीएमएफ ट्रस्ट देश भर के 21 राज्यों के 571 जिलों में स्थापित किए गए हैं। डीएमएफ पर डाउन टू अर्थ अपने पाठकों के लिए आज से एक सीरीज शुरू कर रहा है। पढ़े, पहली कड़ी। 

 
माइंज एंड मिनरल्स  (डेवलपमेंट ऐंड रेगुलेशन ) अधिनियम में संशोधन के बाद से वर्ष 2015 से ही देश के खनिज प्रचुर जिलों में जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ ) ट्रस्ट की स्थापना की गई है। इस संशोधन ने "खनन प्रभावित क्षेत्रों और लोगों के हित और लाभ" के लिए काम करने के लिए एक गैर-लाभकारी ट्रस्ट की स्थापना करने की सिफारिश की थी। इसके साथ, पहली बार प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण से लाभ लेने के समुदायों के अधिकार को मान्यता दी गई थी।

खान मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश भर के डीएमएफ में लगभग 36,000 करोड़ रुपए एकत्र किए गए हैं और आने वाले वर्षों में सालाना लगभग 6,000 -7,000 करोड़ रुपए डीएमएफ में आने का अनुमान है।

यह संग्रह दरअसल खनन कंपनियों का योगदान है जो 2015 से पहले दी गई पट्टों के लिए रॉयल्टी राशि का 30 प्रतिशत और उसके बाद दिए गए पट्टों के लिए 10 प्रतिशत के बराबर पड़ता है। यह जिला स्तर पर प्राप्त होता है। अब तक 21 राज्यों में 571 जिलों ने डीएमएफ की स्थापना की है।

ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े खनन राज्यों के पास सबसे अधिक (लगभग 73 प्रतिशत) अनुपात में धन  है। राज्यों के भीतर भी कुछ विशेष जिलों को इस फंड का बाद में हिस्सा मिलता है। उदाहरण के लिए, ओडिशा राज्य के कुल 9,500 करोड़ रुपए में केवल पांच जिलों का लगभग 85 प्रतिशत तक हिस्सा है। इनमें पहले नंबर पर केउंझर है जिसका कुल संग्रह 4,000 करोड़ रुपए है, जो न केवल पूरे देश में सबसे अधिक है बल्कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुल संग्रह से भी अधिक है। झारखंड में सर्वाधिक कलेक्शन चार कोयला खनन और एक लौह-अयस्क खनन जिलों से हुआ हैं। 

इस बड़ी पूंजी का मतलब है डीएमएफ के पास देश के खनन क्षेत्रों में मानव विकास संकेतकों में सुधार करने और गरीबी कम करने की काफी बड़ी क्षमता है। यह फंड अनटाइड और नॉन-लैप्सेबल है (इसकी कोई अवधि नहीं है ) और इसे तत्काल और दीघर्कालिक दोनों तरह के निवेश के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि निधि के उपयोग को तय करने और कार्यों की निगरानी में खनन-प्रभावित समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए यह स्थानीय स्वशासन को भी मजबूत करने का काम कर सकता है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने 2017 एवं 2018 में दो बार डीएमएफ कार्यान्वयन का गहराई से मूल्यांकन किया है। इसमें पता चला कि योजना, मूल्यांकन एवं तदर्थ निवेश की कमी की वजह से डीएमएफ की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया है। यही नहीं, इस जन केंद्रित कानून के मूल भाव की अवमानना करते हुए नियोजन, निगरानी अथवा निर्णायक स्तर, कहीं पर भी जनता की राय नहीं ली गई। निवेश मुख्यत: बुनियादी ढांचे में किया गया था और कहीं कहीं अगर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं जलापूर्ति के क्षेत्र में यह हुआ भी तो वह दिशाहीन था ।

हालांकि, दो वर्षों के दौरान, कुछ राज्यों द्वारा  नीतिगत मोर्चे पर कुछ सुधार किए गए हैं। इसके साथ ही जिलों द्वारा किए गए निवेश के अनुपात में भी सुधार हुआ है। सीएसई ने प्रमुख खनन जिलों की समीक्षा की और उनमें से कई, आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और पीने के पानी जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ताकि न केवल आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सके, बल्कि लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने का समग्र लक्ष्य भी पूरा हो सके।

डीएमएफ के सामने अब भी कई चुनौतियां हैं। मसलन दीघर्कालिक योजनाओं का कार्यान्वयन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में जन भागीदारी। हालांकि सीएसई ने अपनी नई रिपोर्ट "डीएमएफ : इम्प्लीमेंटेशन स्टेटस एंड इमरजिंग बेस्ट प्रैक्टिस" में कई जिलों में हो रहे सकारात्मक बदलावों का जिक्र किया है और रिपोर्ट के मुताबिक डीएमएफ के कोष का जिलों में समुचित प्रयोग किया जा रहा है।  

आगे पढ़ें: क्या डीएमएफ की राशि का इस्तेमाल सही दिशा में हो रहा है?

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