विशेष रिपोर्ट भाग 4: दिल्ली के करीब 5 लाख आदिवासी मजदूर जनगणना से क्यों हुए गायब ?

वर्किंग ग्रुप ने अपनी टिप्पणी मे कहा है कि एक तरफ लोग जातीय हिंसा या क्रूरता के कारण पलायन/प्रवास का रास्ता चुनते हैं वहीं, पलायन के बाद उनकी सामजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार भी नहीं होता है।

By Vivek Mishra

On: Wednesday 29 April 2020
 

देश में रोजगार के लिए यदि कोई अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी का मजदूर किसी छोटे या पिछड़े राज्य से रोजगार की तलाश में दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में पहुंचता है तो संबंधित प्रवासी मजदूर को एससी और एसटी श्रेणी का न तो कोई फायदा मिलता है और न ही उसकी संबंधित राज्यों के जरिए कोई पहचान ही की जाती है।

आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के 18 सदस्यीय वर्किंग ग्रुप ने “रिपोर्ट ऑफ द वर्किंग ग्रुप ऑफ माइग्रेशन-2017” में इसे उजागर किया है। एक राज्य से दूसरे राज्य (इंटर-स्टेट) पलायन में जाति से जुड़ी एक बड़ी कमी है। मसलन दिल्ली ने अपने यहां एक भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) को अधिसूचित नहीं किया है। 2011 जनगणना रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली में एक भी अनुसूचित जनजाति नहीं हैं, जबकि दूसरे राज्यों में आदिवासी समूह के तमाम लोग हैं। हालांकि, नेशनल सैंपल सर्वे 2011-12 के मुताबिक दिल्ली में 2.5 फीसदी आबादी ने खुद को एसटी बताया है। यह करीब पांच लाख लोग हैं जिसमें अधिकांश माइग्रेंट्स यानी प्रवासी की परिभाषा के तौर पर फिट हैं। भारत में प्रवासी की एक सिंगल परिभाषा नहीं है। वर्किंग ग्रुप ने इस पर सवाल भी उठाया है कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर घर बदलना प्रवास नहीं है।

भारतीय जनगणना रिपोर्ट अंतर्राज्यीय (एक राज्य से दूसरे राज्य) पलायन की जाति आधारित सूचना नहीं देती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग की प्रशासनिक सूची तैयार की जाती है। इसे राज्य स्तर पर अधिसूचित और प्रबंधित किया जाता है। एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचने पर एक ही समुदाय में होकर भी किसी का प्रशासनिक वर्गीकरण समुदाया से अलग हो सकता है। यानी संभव है कि एक राज्य में एससी या एसटी श्रेणी का व्यक्ति दूसरे राज्य में एससी या एसटी श्रेणी में न रहे। वर्किंग ग्रुप ने अपनी टिप्पणी मे कहा है कि एक तरफ लोग जातीय हिंसा या क्रूरता के कारण पलायन/प्रवास का रास्ता चुनते हैं, संसाधन भी उनके नहीं रहते हैं और पलायन के बाद उनकी सामजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं होता है। यह एक जटिल विषय है जिसपर चर्चा की जरूरत है। वर्किंग ग्रुप ने अपनी सिफारिश में कहा है कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया भारतीय जनगणना के तहत जुटाए जाने वाले आंकड़ों के प्रावधान में बदलाव कर इस मुद्दे का समधान करे। वर्किंग ग्रुप ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इस समस्या का समाधान करने के लिए एक विधि यह हो सकती है कि एससी/एसटी वर्ग से आए हुए प्रवासी को बड़े महानगरों या दूसरे राज्यों में भी उसी श्रेणी में माना या गिना जाए।  

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