जानें, क्या है मानव विकास सूचकांक?

जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आमदनी के मानकों पर आधारित ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (एचडीआई) पर दस सवालों के जवाब

By Bhagirath Srivas

On: Thursday 09 January 2020
 
Photo: Kumar Sambhav Shrivastava

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) क्या है?

मानव विकास सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी होने वाली वार्षिक रिपोर्ट है जो जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आय के मानकों के आधार पर प्रकाशित की जाती है। सबसे पहले 1990 में एचडीआई रिपोर्ट जारी की गई थी। तब से हर साल इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया जा रहा है। ताजा रिपोर्ट 9 दिसंबर 2019 को जारी की गई थी।

ताजा एचडीआई में भारत की क्या स्थिति है?

इस सूचकांक में कुल 189 देश थे जिसमें भारत 129वें स्थान पर है। भारत ने पिछले साल के मुकाबले इस बार एक अंक का सुधार किया है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इस साल तीन अंकों का सुधार किया है और बांग्लादेश ने भी भारत से बेहतर प्रदर्शन करके दों अंकों में सुधार किया है। पाकिस्तान 152वें और बांग्लादेश 135वें स्थान पर हैं, जबकि पड़ोसी देश नेपाल 147वें, भूटान 134वें, म्यांमार 145वें और श्रीलंका 71वें पायदान पर है।

एचडीआई को कितनी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है?

रैंकिंग के आधार पर इसमें शामिल सभी देशों को 4 श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी “बेहद उच्च मानव विकास” है जिसमें कुल 62 देश शामिल हैं। इस श्रेणी में नॉर्वे पहले, स्विट्जरलैंड दूसरे, आयरलैंड तीसरे, जर्मनी चौथे और हांगकांग चोटी के पांच देशों में शामिल हैं। दूसरी श्रेणी “उच्च मानव विकास” है जिसमें 63 से 116 पायदान पर रहे देश शामिल हैं। तीसरी श्रेणी “मध्यम मानव विकास” से संबंधित है। इसमें 117 से 153 नंबर तक के देशों को शामिल किया गया है। भारत भी इसी मध्यम मानव विकास श्रेणी में शामिल है। अंतिम श्रेणी “निम्न मानव विकास” की है जिसमें शेष सभी देश शामिल हैं।

निचले पायदान पर कौन से देश हैं?

निचले पायदान पर अधिकांश अफ्रीकी देश हैं। इनमें नाइजर, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड़, दक्षिण सूडान, बुरुंडी, माली, इरिट्रिया, बर्कीनो फासो, सिएरा लियोन, मोजाम्बिक, कॉन्गो, गिनिया बिसाऊ और यमन मुख्य रूप से शामिल हैं।

हाल के दशकों में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा?

1990 से 2018 के बीच भारत के मानव विकास सूचकांक मूल्य में 50 प्रतिशत का सुधार हुआ है। यह 0.431 से बढ़कर 0.647 हो गया है। यह मध्यम मानव विकास की श्रेणी में शामिल देशों के औसत (0.634) से अधिक है। भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य दक्षिण एशियाई देशों के औसत मूल्य (0.642) से भी अधिक है। दूसरे शब्दों में कहें तो मानव विकास सूचकांक मूल्य के मामले में भारत की स्थिति में संतोषजनक सुधार हुआ है।

भारत के इस प्रदर्शन का क्या अर्थ निकलता है?

एचडीआई मूल्य में सुधार का अर्थ है कि पिछले तीन दशकों में जीवन प्रत्याशा में 11.6 वर्षों का सुधार हुआ है। स्कूल जाने वाले औसत वर्षों में भी 3.5 साल का सुधार हुआ है। इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय में भी 250 गुणा इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पिछले तीन दशकों में जीवन प्रत्याशा, स्कूल जाने के वर्षों और आमदनी के मापदंडों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

रिपोर्ट भारत में गरीबी पर क्या कहती है?

रिपोर्ट कहती है कि 2005-06 से 2015-16 के दशक में भारत में 27.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल आए हैं। हालांकि इसके बावजूद दुनिया के 28 प्रतिशत गरीब भारत में रह रहे हैं। यानी भारत में अब भी 36.4 करोड़ गरीब रह रहे हैं। दुनिया भर में गरीबों की संख्या 130 करोड़ है।

समूह आधारित असमानता पर रिपोर्ट क्या कहती है?

रिपोर्ट के अनुसार, प्रगति के बावजूद भारतीय उपमहाद्वीप में समूह आधारित असमानता पैठ बनाए हुए है और यह असमानता महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित कर रही है। सिंगापुर में महिलाओं के खिलाफ सबसे कम घरेलू हिंसा हुई है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि दक्षिण एशिया में 31 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।

लैंगिक विकास सूचकांक में भारत कहां खड़ा है?

लैंगिक विकास सूचकांक में भारत की स्थिति दक्षिण एशियाई देशों के औसत से थोड़ी बेहतर है। भारत 2018 में जारी लैंगिक असमानता सूचकांक रिपोर्ट में 122वें स्थान पर था। इसमें कुल 162 देश शामिल किए गए थे।

रिपोर्ट किस नई गरीबी की ओर इशारा करती है?

रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में लोग भले ही तेज से गरीबी से बाहर निकल रहे हैं लेकिन वे एक अलग प्रकार की गरीबी की ओर बढ़ रहे हैं। पहले असमानता स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच पर आधारित थीं लेकिन नई गरीबी तकनीकी, शिक्षा व जलवायु से संबंधित है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में दोनों तरह की गरीबी है। देश में जहां बड़ी संख्या लोग स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा से वंचित हैं, वहीं बहुत से लोग अब नई किस्म की गरीबी का शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि ऐसे हालात में भारत के लिए सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल होगा। यूएनडीपी के प्रशासक अचिम स्टेनर कहते हैं कि संपत्ति व सत्ता का असमान वितरण असमानता की जड़ है जिसके कारण लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। जब तक कुछ किया नहीं जाता, ऐसा होता रहेगा।

प्रस्तुति: भागीरथ

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