चारधाम परियोजना के फैसले का आकलन : यदि हिमालय की हार होगी तो भारत भी हार जाएगा

चारधाम परियोजना को डबल लेन किए जाने की वाले फैसले में कई तरह की विसंगतियां हैं। हालांकि हिमालय यह साफ कर चुका है कि वह इस तरह का चौड़ीकरण नहीं झेल सकता।  

By Priyadarshini Patel

On: Monday 20 December 2021
 

14 दिसंबर 2021 को हिमालय तब एक महत्वपूर्ण लड़ाई हार गया, जब इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने चारधाम परियोजना के लिए सड़क की चौड़ाई दस मीटर करने और इसे डबल लेन बनाने का आदेश दिया। चार प्राचीन हिमालयी तीर्थों को जोड़ने वाला यह रास्ता प्राचीन भागीरथी-गंगा, अलकनंदा, मंदाकिनी और यमुना नदियों की नाजुक घाटियों से होकर गुजरता है। 

याचिकाकर्ताओं और परियोजना की समीक्षा के लिए बनाई गई उच्च स्तरीय समिति के कुछ विशेषज्ञों ने शीर्ष कोर्ट से इसकी मध्यवर्ती चौड़ाई 5.5 मीटर रखने का अनुरोध किया था। इससे पहले सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे 5.5 मीटर रखने पर सहमति जताई थी, हालांकि इसके बाद नवंबर 2020 में रक्षा मंत्रालय ने मामले में हस्तक्षेप कर एनएच-94, एनएच-125 और एनएच-58 के तीन रणनीतिक हिस्सों को डबल लेन बनाने को कहा था। यह तीनों हिस्से 900 किलामीटर लंबी परियोजना का करीब 700 किलोमीटर हिस्सा घेरते हैं।  
 
सुप्रीम कोर्ट के 83 पेज के फैसले में चौड़ाई बढ़ाने के लिए सतत् विकास को आधार बताया गया। कोर्ट ने कई पुराने फैसलो का हवाला देकर कहा कि पर्यावरण के साथ सामाजिक-आर्थिक जरूरतों को लेकर संतुलन बनाना भी जरूरी है। उसने कहा कि जब विकास का मतलब किसी का पूरी क्षमता के साथ काम करना हो तो उस विकास को मानवाधिकारों से अलग नहीं किया जा सकता। उसने सतत् विकास को वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने का हवाला दिया। कोर्ट ने इस पर जोर दिया कि सतत विकास केवल समस्याके निवारण के लिए नहीं है बल्कि पर्यावरण की रक्षा करने में नाकामियों की रोकथाम के लिए भी है, और इसमें कोई असहमति नहीं है।

इसके बाद कोर्ट अपने फैसले के मुख्य बिंदु पर आता है और कहता है- ‘न्यायिक समीक्षा की अपनी भूमिका में कोर्ट, सशस्त्र बलों की आधारभूत जरूरतों को लेकर दोबारा कुछ विचार नहीं करना चाहता, यह अस्वीकार्य है।’ लेकिन यही बात आम आदमी और पारिस्थितिकी के विद्वानों के संदर्भ में नहीं कही जाती ? इसलिए इस पर भी कोई असहमित नहीं हो सकती। अपनी लय में कोर्ट आगे कहता है- ‘रक्षा बलों के हितों और पर्यावरण की चिंताओं के बीच संतुलन बनाना, उच्च-स्तरीय समिति के अधिकार-क्षेत्र के बाहर था।’ हालांकि रक्षा मंत्रालय का निदेशक स्तर का अधिकारी हमेशा से इस उच्च-स्तरीय समिति में शामिल था, और वैसे भी संतुलन बनाना कभी भी समिति का मकसद भी नहीं था। समिति के चेयरमैन और याचिककर्ताओं ने कहा कि सेना की जरूरतों का तो कोई मुद्दा ही नहीं था। सेना अच्छी तरह से समझ सकती है कि कहां उसे छह लेन हाईवे या डबल लेन की जरूरत है लेकिन इस मामले में हिमालय ने साफ कर दिया है कि वह इतनी चौड़ाई नहीं झेल सकता। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह ढहेगा और दुर्घटना होगी। यही समिति ने अपने विस्तृत अवलोकन रिपोर्ट में बताया था। जाहिर है, समिति के विद्वान ही इसका आकलन कर सकते हैं, सेना नहीं।

यही नहीं, चटटानों के कटान ने पिछले दो सालों में यहां भूस्खलन, सड़कबंदी और कई दुखद मौतों के साथ सभी तरह की गतिशीलता में गंभीर बाधाए पैदा की थीं। इस तरह की भूस्खलन-आशंकित सड़क अगर आम नागरिक को सुविधा नहीं दे पाती तो वह महत्वपूर्ण रक्षा आवश्यकताओं को जरूरतों को कैसे पूरा कर सकती है। जैसा कि कहा गया है, ‘सीमा से लौटने वाले वाहनों को, सड़क अवरोध पैदा किए बिना विपरीत दिशा में जाने वाले वाहनों को पार करने का अधिकार है।’

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने भी अपनी स्वीकारोक्ति में ऐसे भूस्खलन की तादाद दो सौ से ज्यादा बताई है, जबकि इसमें पिछले साल के कई भूस्खलन शामिल नहीं हैं। तब, रक्षा मंत्रालय के लिए रणनीतिक महत्व वाले चारधाम परियोजना के दो मार्ग - एनएच-58 और एनएच- 94 को डीएम द्वारा एक ऐतिहासिक पहल से अनिश्चित काल के लिए बंद करना पड़ा था क्योंकि यह मलबे, गोल-पत्थर और सुरक्षा-दीवारों के गिरने के कारण यात्रियों के लिए असुरक्षित था। एनएच-58 पर एक ही दिन में मलबा गिरने और ढलान के खिसकने की 18 घटनाएं दर्ज की गई थीं। ऐसा ही भूस्खलन तोताघाटी में हुआ था, जो इस परियोजना में पहाड़़ कटने की शुरूआत से पहले बिल्कुल स्थिर थी। अब पिछले डेढ़ साल से यह ऐसे जोन में आ गई है, जहां बार-बार भूस्खलन होते हों। इस मानसून में यहां ढलान खिसकने की घटनाएं लगातार हुईं। ऐसे ही एनएच-94 पर, भारी बारिश के कारण 25-30 मीटर की पक्की सड़क ढह गई और डूब गई। इन दोनों हिस्सों को तारकोल और सुरक्षा दीवारों के साथ डबल लेन चौड़ाई तक पूरा किया गया था।
 
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 20 अक्टूबर 2020 को दर्ज किया कि एनएच-125 पर भूस्खलन की 72 घटनाएं हुईं। यानी कि कागजी आश्वासनों के बावजूद, हमारी सभी एजेंसियां न केवल ढलान खिसकने की घटनाओं से निपटने, उन्हें साफ करने या उन्हें रोकने में अक्षम थीं, बल्कि इतने सारे रोड- ब्लॉक के साथ निश्चित रूप से सेना की गतिशीलता से भी गंभीर रूप से समझौता किया गया था। हालांकि, कोर्ट के फैसले से इस मूल समस्या को कोई जवाब नहीं मिलता।

यही नहीं, इसके अलावा डबल लेन और चौड़ी सड़क के मानकों को पूरा करने के लिए सरकार ने जल्दबाजी में मनमाने ढंग से जो पत्र पेश किए, यह फैसला उनकी छानबीन भी नहीं करता। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का 2018 का सर्कुलर, जिसे 2020 में संशोधित किया गया, उसमें 15 दिसंबर 2020 को पहाड़ी इलाकों में मध्यवर्ती चौड़ाई की खास तौर से अनुशंसा की थी। इसी दिन उच्च स्तरीय समिति, रक्षा मंत्रालय के शपथ-पत्र को लेकर बैठक कर रही थी। इसने डबल-लेन की सिफारिश की और जैसे ही विचार-विमर्श के लिए बैठक के बीच में यह प्रस्ताव आया, सरकार द्वारा गठित बुहमत वाली समिति ने तुरंत उसी के अनुरूप अपनी राय रखी। दूसरा वक्तव्य जिसमें खामी है, वह भारतीय रोड कांग्रेस की 2019 की गाइडलाइंस हैं, जिन्हें अगस्त 2019 में जल्दबाजी में संशोधित किया गया था, जिनमें लोगों के ‘रास्ते के अधिकार’ में छंटनी किए बिना, राजमार्गों से लेकर छोटे जिले और गांव की सड़कों तक सभी सड़कों के लिए डबल-लेन और चौड़ी सड़क की अनुशंसा की गई है।

फैसले में भागीरथी पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (बीईएसजेड) में भी डबल-लेन की अनुमति इसकी सबसे बड़ी खामी है। कोर्ट ने, अटार्नी जनरल के बीईएसजेड के नोटिफिकेशन में सुधार से जुड़े बयान पर भरोसा किया, जो उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आधारभूत ढांचा का हवाला देकर दिया। ऐसा करने में उन्होंने पर्यावरण समझौतों का अध्ययन करना भी जरूरी नहीं समझा। वास्तव में संशोधन में बिल्कुल उलटा कहा गया है- पुनर्निर्माण, आपदा को कम करने में, सिंचाई को बढ़ाने, अस्पतालों, स्कूलों, खाद्य गोदामों और अन्य सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के बुनियादी ढांचे से संबंधित कार्यों को पर्यावरणीय प्रभावों के उचित अध्ययन के साथ किया जाएगा। हालांकि शायद ही इसका मतलब सड़क निर्माण था बल्कि संशोधन के इस खंड को जैविक खेती, वर्षा जल संचयन और सौर ऊर्जा के साथ-साथ ‘प्रचारित गतिविधियों’ की श्रेणी में रखा गया था। चारधाम परिरयोजना में डबल लेन के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने उत्साह में इस तथ्य को अनदेखा किया और इस क्षेत्र में मध्यवर्ती सड़क की चौड़ाई बढ़ाने पर जोर दिया। स्पष्ट रूप से इस नोटिफिेशन के ‘’रेगुलेटेड सेक्शन’ में रक्षा संबंधी ढांचे को पहले ही शामिल किया गया था। दस साल पहले हमारा देश प्राचीन गंगा के अंतिम खंड को उसकी उत्पत्ति (उत्तरकाशी-गंगोत्री) की घाटी में संरक्षित करने के लिए एकजुट हुआ था। इसके लिए, तीन जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द कर दिया गया था, और हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा के जलग्रहण क्षेत्र की स्थायी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए घाटी को एक पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया था। सालों में अर्जित की गई सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए केवल एक बड़ी गलती की आवश्यकता होती है।

फैसले में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय का इस मामले में स्थिर नजरिया रहा है। हालांकि यह सही नहीं है क्योंकि नवंबर 2020 में रक्षा मंत्रालय ने अपने पहले पत्र में सेना की आवाजाही के लिए डबल-लेन की अनुमित मांगी थी, जिसकी चौड़ाई सात मीटर होनी थी। हालांकि अब कोर्ट ने डबल-लेन और दस मीटर चौड़ी सड़क का फैसला दे दिया है लेकिन रक्षा मंत्रालय ने पहले केवल डबल-लेन की मांग की थी। उसके अधिकारियों ने पहली बार जनवरी 2021 में डबल-लेन और दस मीटर चौड़ी सड़क का अनुरोध किया। यानी रक्षा मंत्रालय सुविधानुसार अपनी मांग बदलता रहा।

इसके अलावा, कोर्ट का फैसला इस एकल परियोजना को इसकी कई स्वचलित सुरंगों और उपमार्गों के आधार पर 53 परियोजनाओं में तोड़ने को स्वीकार करता है, हालांकि यह विभाजन पर्यावरण प्रभाव आकलन से बचने के लिए किया गया था। दरअसल इसके आसमान से किए गए प्रेक्षण से पता चलता है कि यह पूरी परियोजना केवल 50 किलोमीटर की सीमित त्रिज्या के भीतर समाप्त हो गई है, जिसके एक के बाद एक बढ़ने वाले प्रभाव बहुत ज्यादा हैं।
 
पहाड़ी क्षेत्र में जिस मध्यवर्ती चौड़ाई को दोनों ओर के यातायात को सुगम बनाने, कम से कम  ढलानों और जंगलो के नुकसान, पेड़ों की कटाई, नदियों और जलमार्गों के अवरुद्ध होने, जैसे पारिस्थितिक विनाश से बचने के लिए अनुमति दी गई थी, जिसे महज निवारण नहीं बल्कि उपचार के तौर पर लिया जाना था, उसे कोर्ट ने चौड़ाई बनाने का फैसला देकर खारिज कर दिया।
 
इस फैसले में और भी विसंगतियां हैं, जैसे कि उच्च स्तरीय समिति की सर्वसम्मति से यह अनुशंसा कि तीर्थ-यात्रियों के लिए पैदल चलने का रास्ता निकाला जाएगा। जबकि विशेषज्ञों ने बताया है कि डबल- लेन और सड़क चौड़ी करने के बाद पैदल चलने के रास्ते के लिए जगह ही नहीं बचेगी। फैसले में यह भी बताया गया है कि चूंकि परियोजना के कुछ हिस्सों में डबल-लेन और चौड़ी सड़क के लिए 50 फीसदी से ज्यादा कटाई हो चुकी है, इसलिए बचे हुए मार्ग के लिए मध्यवर्ती चौड़ाई ठीक नहीं रहेगी। ऐसा, इस बात को बिना ध्यान में लिए कहा गया कि ये काम 2018 के सर्कुलर और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति का उल्लंघन कर किए गए थे। इस तरह से फैसले में जवाबदेही तय करने की बजाय नियमों का उल्लंघन करने को पुरस्कृत किया गया। यही नहीं, आश्चर्यजनक रूप से पर्यटकों की तादाद बढ़ने पर जलवायु-परिवर्तन का संकट जिस तरह से उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेगा, इस तथ्य को पूरी तरह से नजरंदाज किया गया।

दुर्भाग्य से, खेल के नियमों की मूलभूत समझ के साथ, इस फैसले में काले के खिलाफ सफेद खड़ा करने का पुराना दृष्टिकोण हावी रहा, और वास्तव में यह हम लोग हैं जो हारे हैं। जब पहाड़ों को कीचड़ में बदल दिया जाता है, और एक अस्थिर हिमालय को चरम मौसम की आपदाओं के लिए और अधिक संवेदनशील बना दिया जाता है, तो वर्तमान या भविष्य के लिए क्या स्थिरता, हम विकास के रास्ते में किस ‘पूर्ण क्षमता’ की बात कर रहे हैं ? आखिरकार हमारे देश की सुरक्षा ये गरजती, आर्शीवाद देती पहाड़ों की चोटियां ही तो हैं। इसकी जलवायु, इसका पानी, इसकी खूबसूरती, इसकी संपत्ति, इसका खाना, इसकी हवा ये बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह कहने में कोई अतिरंजना नहीं होगी कि जब हिमालय इस संघर्ष में हारा है, तो केवल सुरक्षा की तैयारियां नहीं हारी हैं, वास्तव में भारत हारा है।
 
( लेखिका हिमालय और गंगा संरक्षण के लिए एक नागरिक समूह गंगा आह्वान की प्रमुख सदस्या हैं। भागीरथी संवेदी क्षेत्र के तहत गंगोत्री से उत्तरकाशी तक स्वच्छ गंगा और सतत विकास के लिए काम करती हैं। इस लेख में जाहिर किए गए विचार उनके निजी हैं। ) 
 

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