हिमालयी राज्यों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 4 हफ्तों में मांगा जवाब, यहां जानिए पूरा मामला

भारत के हिमालयी राज्यों में करीब 5 करोड़ लोगों का घर है, जो लगातार जोखिम में जीवन जीने को मजबूर हो गए हैं। 

By Vivek Mishra

On: Tuesday 11 July 2023
 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में मौजूद 13 राज्यों की न तो धारणीय क्षमता के मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र से चार हफ्तों में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। अब इस मामले की सुनवाई  21 अगस्त 2023 को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉक्टर अशोक कुमार राघव की ओर से एडवोकेट आकाश वशिष्ठ ने जोशीमठ आपदा संकट के बाद फरवरी महीने में याचिका दाखिल की थी। याचिका में आरोप है कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र में मौजूद 13 राज्यों की न तो धारणीय क्षमता का अध्ययन किया गया है और न ही इन नाजुक पर्यावरण वाले राज्यों में पर्यटन जैसी गतिविधियों के नियंत्रण का कोई प्रयास हुआ है। वहीं, इन सबके बीच हिमालयी क्षेत्र में एक बड़े भूकंप का अंदेशा भी शोध संस्थानों के जरिए जताया जा रहा है। 

याचिका में मांग की गई है कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र के 13 राज्यों में रिहायश, वाहनों की मौजूदगी, पर्यटन, भू और सतह के जल जैसी प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, खाद्य आपूर्ति, जैव-विविधता, मौसम व जलवायु और भूकंप क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय क्षमता का अध्ययन होना चाहिए। साथ ही विकास व मानवीय  हस्तक्षेप वाली गतिविधियों को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए ठोस प्रयास किए जाने चाहिए।

17 फरवरी, 2023 को याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने संज्ञान लेते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और हिमालयी क्षेत्र के सभी 13 राज्यों को नोटिस जारी कर 20 मार्च, 2023 तक जवाब मांगा था। डाउन टू अर्थ ने इसे 23 फरवरी, 2023 को रिपोर्ट किया था। 

इस मामले में 17 फरवरी से लेकर अब तक चार तारीखें लग चुकी हैं और कोई काउंटर एफिडेविट नहीं फाइल किया गया। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को काउंटर एफिडेविट फाइल करने के लिए चार हफ्तों का समय दिया है।  

भारतीय हिमालयी क्षेत्र में उत्तराखंड,  हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पश्चिमबंगाल, आसाम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों में करीब 5 करोड़ लोगों का घर है।  

याचिका के मुताबिक जोशीमठ में 800 घरों के धंसाव और दरारों का एक प्रमुख कारण वहां अनियंत्रित निर्माण और हाइड्रोपावर की परियोजनाएं व होटेल और रिसॉर्ट हैं। याचिका में कहा गया है कि जोशीमठ में यह सब उसकी धारण या सहन क्षमताओ से काफी ज्यादा है।

याचिका में आरोप है कि जोशीमठ के अलावा अन्य हिल स्टेशन जैसे नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा, रानीखेत, मुक्तेश्वर, औली, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पौड़ी, बागेश्वर, कौसानी, पिथौरागढ़, ऋषिकेश, चंबा, हरिद्र, शिमला, नरकंडा, चंबा, खज्जर, डलहौजी, कसौली, धर्मशाला, मनाली, सौलंग घाटी, कोकसार, रोहतंग ग्लेशियर, श्रीनगर और लेह जैसे स्टेशनों पर भी धंसाव और दरारों का खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि इन जगहों की भी कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन नहीं किया गया है और इसी आधार पर मनचाहा विकास जारी है।

याचिका में आरोप है कि उत्तराखंड के पर्यटन विभाग ने उत्तराखंड पर्यटन नीति, 2018 में यह खुद स्वीकार किया था कि अनुमति योग्य धारण  क्षमता की पहचान करना  एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा 2014 में जलवायु परिवर्तन को लेकर तैयार किए गए उत्तराखंड एक्शन प्लान में भी यह चेताया गया है कि यह राज्य सर्वाधिक जोखिम वाला है जो कि लोगों की आजीविका को सीधा प्रभावित कर सकता है। ऐसे में धारण क्षमता का अध्ययन सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए।

इसी तरह हिमाचल में धौलाधार सर्किट, सतलुट सर्किट, ब्यास सर्किट और ट्राइबल सर्किट के हिल स्टेशन में फैला पर्यटन भी  खतरनाक है। यहां की धारण क्षमता का कोई अध्ययन नहीं है। हिमाचल में भी सुरंगों के निर्माण के लिए ब्लास्टिंग जैसी गतिविधियां जारी है। साथ ही ब्यास नदी में मक डंपिंग भी की जा रही है। ऐसे में यहां भी बड़ा खतरा जन्म ले रहा है।   

ब्यूरो ऑफ इंडयन स्टैंडर्ड के हिसाब से दिए गए सिस्मिक जोन के मुताबिक भारतीय हिमालयी क्षेत्र सिस्मिक जोन 4 और 5 पर स्थित है, जहां तीव्र गति के भूकंप आ सकते हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अनियंत्रित ट्रैफिक, पर्यटन, रॉक और हिल में ब्लास्टिंग, व्यावसायिक रिहायश, लगातार बनते हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट हिमालयी राज्यों के लिए खतरा बन चुके हैं। इन राज्यों में कैरिंग कैपेसिटी को लेकर सख्ती के साथ अध्ययन होना चाहिए।  इसके अलावा मास्टर प्लान, टूरिज्म प्लान क्षेत्र के विकास का प्लान भी तैयार किया जाना चाहिए।

याचिका के मुताबिक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और राज्य नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के बावजूद ऐसा करने में विफल रहा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से ऐसी योजनाओं पर काम करने के लिए केंद्र और राज्यों को आदेश दिए जाने की भी मांग की गई है। 

 

 

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