जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए भारत सहित दुनिया भर में 81 महिला पर्यावरण रक्षकों ने गंवाई जान

पर्यावरण को बचाने की जद्दोजहद में 81 महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई थी। वहीं सैकड़ों महिला रक्षकों को प्रतिशोध में शारीरिक उत्पीड़न तक का सामना करना पड़ा है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 07 June 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

एक ओर जहां दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने के लिए अलख जगाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण का बचाने के लिए संघर्ष कर रहे प्रहरियों को चुप कराने के लिए अनेकों तरीके अपनाए जा रहे हैं। इन सघंर्षों में अब तक अनगिनत लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें महिला पर्यावरण कार्यकर्ता भी शामिल हैं।

इस बारे में जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, पर्यावरण को बचाने की जद्दोजहद में 81 महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। वहीं सैकड़ों महिला रक्षकों को प्रतिशोध में शारीरिक उत्पीड़न से लेकर दमन, विस्थापन और आपराधिक मुकदमों तक का सामना करना पड़ा था।

अपने इस अध्ययन में बार्सिलोना के पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान से जुड़ी दो शोधकर्ताओं डालेना ट्रॅन और केसेनिजा हानासेक ने एनवायरनमेंट जस्टिस एटलस में 31 जनवरी 2022 तक रिपोर्ट किए गए 3,545 मामलों का विश्लेषण किया है। इनमें से 15 फीसदी यानी 523 मामले, महिला पर्यावरण रक्षकों से जुड़े थे।

गौरतलब है कि एनवायरनमेंट जस्टिस एटलस, वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संघर्षों का सबसे बड़ा डेटाबेस है, जिसमें अब तक इस तरह के कुल 3,805 मामले दर्ज हैं। इनमें भारत में पर्यावरण को लेकर हुए संघर्ष के 350 मामले भी दर्ज हैं।

गौरतलब है कि पर्यावरण को लेकर आमतौर पर संघर्ष तब होते हैं, जब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए परियोजनाओं के नाम पर भूमि को हड़पने की कोशिश की जाती है या प्रकृति का विनाश किया जाता है। इनकी वजह से स्थानीय समुदायों का भौतिक और सांस्कृतिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। नतीजन अपने संसाधनों को बचाने का संघर्ष हिंसक हो जाता है।

रिसर्च के मुताबिक हत्या, प्रत्यक्ष हिंसा का सबसे प्रत्यक्ष रूप है, लेकिन आंकड़ों की हेरफेर और कमी के कारण महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हुए इन अपराधों को बहुत कम करके आंका जाता है। जाता है क्योंकि उनसे जुड़े घटनाओं को रिकॉर्ड ही नहीं किया जाता। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक यह समस्या मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका, एशिया, अफ्रीकी देशों में केंद्रित है, लेकिन उत्तरी अमेरिका और यूरोप भी इसकी जद से बाहर नहीं हैं।

भारत में भी दो महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने गंवाई है जान

रिसर्च के अनुसार दक्षिण में सामने आए ज्यादातर मामले खनन, कृषि और औद्योगिक संघर्षों के बीच केंद्रित थे। इन संघर्षों में 81 महिलाओं पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई थी। जिनमें दो भारतीय भी शामिल थी।

भारत से जुड़ा पहला मामला झारखंड की पैनम कोयला खान से जुड़ा था, जिसपर वर्चस्व की जंग को लेकर नन वालसा जॉन की हत्या कर दी गई थी। इसी तरह दूसरा मामला 17 वर्षीय कार्यकर्ता स्नोलिन विनिस्ता से जुड़ा है जो एक हाई स्कूल की छात्रा थी और भविष्य में वकील बनना चाहती थी। वो तमिलनाडु में स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टर यूनिट का विरोध कर रही थी जिसके कारण होते प्रदूषण की वजह से उनके परिवार के सदस्यों और कई दोस्तों को कैंसर हो गया था।

दर्ज किए गए हत्याओं के इन 81 मामलों में से सबसे ज्यादा फिलीपींस में 19 मामले सामने आए हैं। वहीं ब्राजील, कोलंबिया और मैक्सिको में भी बड़े पैमाने इस तरह की घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह महिला पर्यावरण रक्षकों की हत्याएं केवल दक्षिण के देशों तक ही सीमित नहीं हैं, क्योंकि अमेरिका और यूरोप में भी इस तरह की छह घटनाएं सामने आई हैं। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि पर्यावरण रक्षकों के लिए दुनिया में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है।

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