स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट: 17 प्रमुख लक्ष्यों को पाने में चूक सकती है सरकार

सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने में भारत पिछले दो सालों में तीन पायदान नीचे खिसका है

By DTE Staff

On: Wednesday 02 March 2022
 
डाउन टू अर्थ की सालाना स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार द्वारा तय लगभग 17 लक्ष्य इस साल पूरे होते नहीं दिखते। फोटो: विकास चौधरी

भारत ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्यों को पाने की दिशा में पीछे है, जिनकी समय-सीमा 2022 है। एक मार्च को जारी एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट के मुताबिक, इस धीमी गति के चलते भारत समय-सीमा में इन लक्ष्यों को हासिल करने से चूक सकता है।

यह रिपोर्ट केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने जारी की। रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन का सालाना प्रकाशन है, जिसे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पत्रकारों के लिए आयोजित नेशनल कान्क्लेव, अनिल अग्रवाल डायलॉग (एएडी), 2022 में जारी किया गया।

मैगजीन के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा, ‘ये लक्ष्य अर्थव्यवस्था और रोजगार से लेकर आवास, कृषि, भूमि-रिकॉर्ड, टिकाऊ पर्यावरण और ऊर्जा तक कई विस्तृत क्षेत्रों में निर्धारित किए गए हैं और ये देश द्वारा की जा रही तरक्की को मापने का एक तीव्र सूचक भी हैं।

अर्थव्यवस्था -

अर्थव्यवस्था का लक्ष्य 2022-23 तक जीडीपी चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंचाना है लेकिन 2020 तक, अर्थव्यवस्था केवल 2.48 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ी है। यही नहीं, महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था काफी हद तक सिकुड़ गई है, जिससे समय-सीमा को पूरा करना और भी मुश्किल हो गया है।

रोजगार -

कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के श्रम-बल को 2022-23 तक कम से कम तीस फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है लेकिन जनवरी से मार्च 2020 के बीच यह महज 17.3 फीसदी ही रहा।

आवास -

‘सबको आवास’ देने के लक्ष्य के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण में 2.95 करोड़ और प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में 1.2 करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन दोनों योजनाओं में क्रमशः 46.8 फीसदी और 38 फीसदी काम ही पूरा हो सका है।

पीने के पानी का इंतजाम -

सरकार ने 2022-23 तक सभी को पाइप से सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य बनाया है लेकिन अभी तक इसका केवल 45 फीसदी ही हासिल किया जा सका है।

खेती -

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया गया था। हालांकि किसानों की मासिक आय 6426 रुपये से बढ़कर 10,218 रुपयेे हो गई है लेकिन इस बढ़त में ज्यादा हिस्सेदारी मजदूरी और पशुओं से होने वाली आय की है। जहा तक फसलों से होने वाली मासिक आमदनी का सवाल है तो वह बढ़ने की बजाय कम हो गई है। 2012-13 में यह 48 फीसदी थी, जो 2018-19 में 37.3 फीसदी हो गई थी।

भूमि-रिकार्डों का डिजिटलीकरण-

सरकार का एक और लक्ष्य 2022 तक सभी भूमि-रिकार्डों को डिजिटलाइज करना है। इस दिशा में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों ने अच्छी प्रगति की है, जबकि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और सिक्किम जैसे राज्यों में इसमें क्रमशः 5 फीसदी, 2 फीसदी और 8.8 फीसदी की दर से गिरावट आई है। कुल मिलाकर, इस लक्ष्य को पूरा करने की संभावना नहीं है, क्योंकि 14 राज्यों में 2019-20 के बाद से भूमि रिकॉर्ड की गुणवत्ता में गिरावट पाई गई है।

वायु प्रदूषण -

2022 तक देश के शहरों में पीएम 2.5 का स्तर, 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से नीचे लाने का है। हालांकि 2020 में जबकि महामारी के चलते लॉकडाउन लगा हुआ था, तब भी देश के 121 में से 23 शहरों में पीएम 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा पाया गया था।

ठोस कचरा प्रबंधन-

इसका लक्ष्य सभी घरों में सौ फीसद स्रोत पृथक्करण हासिल करना है। इस दिशा में समग्र प्रगति 78 फीसद है - केरल जैसे राज्यों और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों ने लक्ष्य हासिल कर लिया है जबकि पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे अन्य राज्य इसमें बहुत पीछे हैं। 2022 के अंत तक देश में मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने का लक्ष्य भी रखा गया है , हालांकि अपने यहां अभी भी हाथ से मैला ढोने वाले 66,692 लोग हैं।

वन क्षेत्र को बढ़ाना-

राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की परिकल्पना के अनुसार वन-क्षेत्र को देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33.3 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य है। हालांकि 2019 तक, देश का केवल 21.67 फीसद क्षेत्र ही वनो ंसे आच्छादित था।

ऊर्जा- 

इस दिशा मे जो लक्ष्य हासिल किया जाना है, वह 2022 तक 175 जीगावाट नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता है। इसका अभी तक केवल 56 फीसद ही हासिल किया जा सका है।

महापात्र के मुताबिक, ‘लक्ष्यों और उपलब्ध्यिों के बीच का अंतर एक बार फिर से हमारे देश की शासन व्यवस्था की उन खामियों को उजागर करता है, जो स्थायी तौर पर अपनी जड़े जमाए हैं। हम बड़ी उम्मीदों के साथ लक्ष्य निधारित करते हैं और कुछ मौकों पर महत्वूपर्ण नीतिगत फैसले भी लेते हैं लेकिन जब सवाल नीतियों को लागू करने और नतीजे देने का आता है तो हम इंतजार करते रह जाते हैं। यह स्थिति बदलनी चाहिए।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रॉयचौधरी के मुताबिक, ‘इनमें से कई लक्ष्य वास्तविक हैं। हालांकि कई जीडीपी में वृद्धि जैसे कई लक्ष्यों में समय-सीमाओं को चूकने का दोष महामारी पर मढ़ा जा सकता है, लेकिन यह भी देखना चाहिए कि महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के चलते वायु प्रदूषण में कमी आई थी और हमें इस दिशा में निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लेना चाहिए था। हमें इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में नाकाम क्यों हैं जो इस देश के लिए एक स्थायी भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जरूरी हैं।’

राज्यों की स्थिति -

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट, इन्फोग्राफिक्स और सांख्यिकीय विश्लेषण का एक व्यापक सेट है, जो यह दर्शाता है कि हमारे राज्य, सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने की दिशा में किस तरह से काम कर रहे हैं। इसकी कुछ झलकियां इस प्रकार हैं- 

  • सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) की समय-सीमा 2030 है। इन्हें हासिल करने में अब एक दशक से भी कम का वक्त बचा है। देश के दो राज्य, उत्तर प्रदेश और बिहार का एसडीजी क्रमशः 11 और 14 है, जो राष्ट्रीय औसत से नीचे है। वहीं, केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश बेहतर काम कर रहे हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट के पेज 25 पर इसका उल्लेख है।
  • एसीडीजी 1, जो गरीबी दूर करने से जुड़ा है, उसमें सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों छह राज्यों में बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं (पेज 26)। इन राज्यों को मेघालय, असम, गुजरात, महाराष्ट्र के साथ भूख और कुपोषण दूर करने ( एसीडीजी 2) वालों राज्यों की सूची में भी सबसे खराब प्रदर्शन वालों की श्रेणी में रखा गया है पेज 27)।
  • जल और स्वच्छता (एसडीजी 6) में, दिल्ली, राजस्थान, असम, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन चिंताजनक है (पेज 31)।
  • स्वच्छ और किफायती ऊर्जा से संबंधित एसडीजी 7 में राज्यों का प्रदर्शन औसत से ऊपर है और अधिकांश राज्यों ने लक्ष्य हासिल कर लिया है पेज 32)।
  • जलवायु कार्रवाई (एसडीजी 13) में, 13 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। अच्छे प्रदर्शन के मामले में ओडिशा सबसे ऊपर है, उसके बाद केरल है। झारखंड और बिहार का प्रदर्शन इस दिशा में सबसे खराब है।

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