"पर्यावरण संवेदी दून घाटी क्षेत्र में खनन की अनुमति हैरान करने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का स्पष्ट पक्ष दिया जा चुका है कि स्टोन क्रशर से खनन जैसी गतिविधि को अनुमति नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इस पक्ष को स्वीकार किया है बल्कि इस संबंध में आदेश भी जारी किए हैं। खनन की तरह पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में स्टोन क्रशर लगाने की अनुमति देना खतरनाक है। यह संबंधित क्षेत्र में अवैध खनन की आशंका को बढाता है।"
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह टिप्पणी उत्तराखंड के देहरादून जिले में विकासनगर तहसील के बालूवाला गांव में शीतला नदी किनारे मैसर्स बालाजी स्टोन क्रशर को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) को रद्द करते हुए की है। इसके साथ एनजीटी ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) और जिलाधिकारी, देहरादून को इस मामले में आगे कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने दीपक कुमार व अन्य बनाम उत्तराखंड सरकार व अन्य के मामले में कहा देहरादून के विकास नगर तहसील में में ही जस्सू वाला गांव में राज्य पर्यावरण आकलन समिति (एसईआईएए) ने 31 मई, 2014 को खनन के लिए पर्यावरण मंजूरी जारी की थी। इसे चुनौती न हीं दी गई है। एसईआईएए और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अनुमति पर दोबारा विचार करे।
याचीकर्ता का आरोप था कि 12 अगस्त, 2021 को मैसर्स बाला जी को नियमों और मानकों के विरुद्ध शीतला नदी के किनारे स्टोन क्रशर लगाने के लिए पर्यावरण मंजूरी दी गई थी। ,सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त, 1988 को दून घाटी क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र मानने व खनन गतिविधि को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था। वहीं,पर्यावरण मंत्रालय ने 1 फरवरी, 1989 को दून घाटी क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र घोषित किया था। इसके तहत ऐसी गतिविधि के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन जरूरी है, जो कि स्टोन क्रशर स्थापित करने के मामले में अनदेखा किया गया।
एनजीटी ने कहा कि दून घाटी क्षेत्र में पूर्व में माइनिंग और स्टोन क्रशिंग गतिविधि रेड कटेगरी में होने के कारण प्रतिबंधित होने चाहिए। हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 07 मार्च, 2016 को आदेश जारी कर उद्योगों की श्रेणी का एक सामान्य फॉर्मूला तैयार कर दिया। मिसाल के तौर पर स्टोन क्रशिंग औरेंज कटेगरी में है। यह पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में भी औरेंज कटेगरी यानी कम नुकसान वाली श्रेणी में रखी गई है।
06 जनवरी, 2020 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से संशोधित अधिसूचना जारी कर पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में स्टोन क्रशर गतिविधि को वैध बना दिया गया। पीठ ने कहा कि हम इस सवाल में नहीं जाएंगे। बल्कि इसके लिए कोई साइटिंग क्राइटेरिया अभी तक नहीं है।
पीठ ने कहा कि स्टोन क्रशर लगाने के लिए यहां तक कि सीजनल नदियों से महज 50 मीटर की दूरी और शाश्वत नदियों से 500 मीटर की दूरी का पैमाना भी उचित नहीं है। डूब क्षेत्र को बचाना बेहद जरूरी है।
पीठ ने कहा कि परियोजना प्रस्तावक को दी गई पर्यावरण मंजूरी उचित नहीं है। यह बिल्कुल नदी के किनारे पर है। केंद्र सरकार साइटिंग क्राइटेरिया बनाए। 06 जनवरी, 2020 की अधिसूचना के आधार पर स्टोन क्रशर गतिविधि को नदी से महज 50 मीटर दूर चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कम से कम एक किलोमीटर की दूरी नदी से होना चाहिए।
एनजीटी ने 30 जनवरी को को मौजूदा मामले में कहा कि स्टोन क्रशर यूनिट बिल्कुल नदी किनारे है, इसलिए बिना किसी अन्य प्रश्न में जाए परियोजना प्रस्तावक के पर्यावरण मंजूरी को रद्द किया जाता है।