पंजाब में 30 सालों में 74 फीसदी विदेश प्रवास 2016 के बाद, हर परिवार ने लिया 3.13 लाख रुपए का कर्ज

पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के इस ताजा अध्ययन में पाया गया कि पंजाब छोड़कर विदेश की शरण लेने वाले ज्यादातर निचली जातियों या कम आय वाले लोग हैं। इन्होंने पलायन के लिए संपत्ति तक बेंची

By Vivek Mishra

On: Friday 12 January 2024
 

भारत के कृषि प्रधान केंद्र पंजाब को छोड़कर दूसरे देशों में बसने वालों की संख्या में लगातार बढ़ रही है। पंजाब की 13.34 फीसदी ग्रामीण परिवारों में से कम से कम एक सदस्य पलायन कर चुका है। इस प्रवास के लिए ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग अपनी घर-संपत्ति, सोना और ट्रैक्टर तक बेच रहे हैं। 

पंजाब छोड़कर जाने वालों में 42 फीसदी लोगों का पसंदीदा देश कनाडा है। इसके बाद दुबई (16 फीसदी), ऑस्ट्रेलिया (10 फीसदी), इटली (6 फीसदी), यूरोप और इंग्लैंड में 3 फीसदी लोग पहुंच रहे हैं। हैरानी भरा आंकड़ा यह है कि पंजाब छोड़कर दूसरे देशों में जाने वालों की 74 फीसदी संख्या वर्ष 2016 के बाद से है। 

 यह अध्ययन पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड सोशियोलॉजी के प्रोफेसर शालिनी शर्मा, प्रोफेसर मंजीत कौर और असिस्टेंट फ्रोफेसर अमित गुलेरिया ने किया है। 

इस अध्ययन के लिए प्राथमिक आंकड़ों के आधार पर 22 जिलों के 44 गांवों में करीब 9,492 घरों में से कुल 640 प्रवासियों और 660 गैर-प्रवासी परिवारों का साक्षात्कार लिया गया। प्रवासन के आंकड़े का विश्लेषण करने के लिए वर्ष 1990 से सितम्बर 2022 के मध्य प्रवासन पर विचार किया गया। 

पीएयू के इस व्यापक अध्ययन के अनुसार पंजाब में अमृतसर, गुरदासपुर, शहीद भगत सिंह नगर और फिरोजपुर जिलों में प्रवासन की सीमा 30 प्रतिशत से अधिक है। 

अध्ययन प्रवासन के इन कारणों की भी पड़ताल करता है। अध्ययन में लगभग तीन चौथाई प्रवासी परिवारों ने प्रवासन के मूल कारण में रोजगार के अवसरों की कमी/अल्परोजगार, भ्रष्ट व्यवस्था और कम आय जैसे मुद्दों को गिनाया है। इसके अलावा 62 फीसदी ने सिस्टम में खराबी और 53 फीसदी ने दवाओं का प्रचलन व अन्य गैर-आर्थिक कारणों को भी प्रवासन का कारण करार दिया है। 

अध्ययन से यह भी पता चला कि दोआबा के पुरुष, भूमिहीन, कम से कम शिक्षित और अनुसूचित जाति के लोग कार्य वीजा पर संयुक्त अरब अमीरात जाते हैं, जबकि माझा और मालवा के सभी कृषि आकार श्रेणियों वाले परिवार से  युवाओं में अध्ययन के लिए कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जाना सपना होता है। खासतौर से जाट और सिखों युवाओं का यह सपना है।  

वहीं, अध्ययन वीजा पर महिलाओं (65%) की संख्या पुरुषों (35%) से अधिक थी।

अध्ययन के मुताबिक 19.38 प्रतिशत प्रवासी ऐसे थे, जिन्होंने अपनी संपत्ति बेच दी। आकलन के मुताबिक भूमि, प्लॉट/घर, सोना, कार और ट्रैक्टर का औसत मूल्य प्रति प्रवासी परिवार 1.23 लाख रुपये है। जो पूरे राज्य के लिए 5,639 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

अधिकांश निचली जाति, कम आय वाले, भूमिहीन और मजदूर प्रवासी परिवारों ने प्रवास के खर्चों को पूरा करने के लिए घर और सोने के गहने बेच दिए।

लगभग 56 प्रतिशत परिवारों ने अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए पैसे उधार लिए। प्रवासी परिवारों द्वारा उधार ली गई औसत राशि 3.13 लाख रुपये प्रति परिवार थी। प्रति प्रवासी परिवार की कुल उधारी में गैर-संस्थागत उधारी 38.8 प्रतिशत और संस्थागत धनराशि 61.2 प्रतिशत थी। राज्य स्तर पर प्रवास के लिए लगभग 14,342 करोड़ रुपये उधार लिए गए।

वित्त के अलावा प्रवासन ने अकेलेपन (52%), बुजुर्गों की उपेक्षा (41%), ऋणग्रस्तता (38%), परित्यक्त कृषि और माता-पिता के व्यवसाय (30%), और भूमि जोत और संपत्ति की बिक्री (26%) के रूप में एक बड़ी सामाजिक लागत वहन की। 

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस पलायन को रोकन के लिए कौशल विकास, उद्यमिता और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से रोजगार सृजन और मानव पूंजी में निवेश की तत्काल आवश्यकता है।  इसके अलावा सरकार को अलाभकारी और आर्थिक रूप से सुस्त कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जो सरकारी हस्तक्षेप और समर्थन के बिना संभव नहीं।

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