चौथी औद्योगिक क्रांति नहीं हो रही है, लेकिन लोगों से इस पर चर्चा कराई जा रही है

भारत सहित दुनिया भर में चौथी औद्योगिक क्रांति का शोर है, लेकिन क्या यह शोर सही है

By Akshit Sangomla

On: Tuesday 05 July 2022
 

 

 

विटवाटर्सरैंड यूनिवर्सिटी (जोहानसबर्ग) के प्रोफेसर इयान मोल

 

4 जुलाई 2022 को गांधी नगर में शुरू हुए डिजिटल इंडिया वीक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चौथी औदयोगिक क्रांति की दिशा में आज भारत गर्व से कह सकता है कि हम दुनिया को दिशा दे रहा है। प्रधानमंत्री के इस भाषण के साथ ही एक बार फिर चौथी औद्योगिक क्रांति (इंडस्ट्री 4.0)पर बहस शुरू हो गई है। किसी भी औद्योगिक क्रांति का विश्लेषण के लिए संरचना तैयार करने वाले विटवाटर्सरैंड यूनिवर्सिटी (जोहानसबर्ग) के प्रोफेसर इयान मोल से अक्षित संगोमला ने बातचीत की थी। आज हम इस बातचीत के अंश प्रकाशित कर रहे हैं।

 

क्या औद्योगिक क्रांति में जी रहे लोग इसके बारे में जानते हैं?

औद्योगिक क्रांति एक अकादमिक अवधारणा है। अर्नोल्ड टोयनबी ने उस अवधि को एक इतिहासकार के रूप में उस अवधि में हुए बदलावों को सही अर्थ देने के लिए इस शब्द का इजाद (साल 1884) किया था। निश्चित तौर पर उस अवधि की ओर सिंहावलोकन करते हुए लोगों को ये एहसास नहीं हुआ था कि वे एक औद्योगिक क्रांति में जी रहे हैं।

दूसरी औद्योगिक क्रांति भी एक पूर्वव्यापी विचार था। विलियम स्टेनले जेवोन्स स्वचालित निर्माण के लिए कारीगरों और मशीनों की क्रमव्यवस्था के विकास की तरफ देखते हुए ये विचार लेकर आये थे। तीसरी औद्योगिक क्रांति का विचार बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आया, जब दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में डिजिटल कम्प्यूटर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा था।

मुझे नहीं लगता है कि फिलवक्त मौलिक बदलाव हो रहा है, जिसे देखकर कहा जा सके कि चौथी औद्योगिक (4आईआर) क्रांति हो रही है। इसे ढीली पड़ रही तीसरी औद्योगिक क्रांति को पुनर्जीवित करने के लिए वैचारिक धारणा के तौर पर शुरू किया गया है। चौथी औद्योगिक क्रांति नहीं हो रही है, लेकिन लोगों से इस पर चर्चा कराई जा रही है। इससे पहले की औद्योगिक क्रांतियों में ऐसा नहीं हुआ था।

यद्यपि हम इसे 4आईआर न भी कहें, तो अचानक से प्रौद्योगिकी में आई तेजी लोगों के काम करने के तरीके में व्यवधान ला रही है। इस पर आपका क्या कहना है?

प्रौद्योगिकी की प्रकृति होती है कि वे नवाचार के मामलों में तेजी लाती है। अलबत्ता मौजूदा नवाचार चक्र नया नहीं है। मशीनी इंटेलिजेंस और रोबोट्स के बीच संबंध साल 1980 से पहले न भी हो तो साल 1980 में तैयार हुआ था।

मैं ये नहीं कह रहा कि मौजूदा आर्थिक प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी विघटनकारी नहीं हो सकती है, लेकिन इन प्रक्रियाओं की जड़ें इतिहास में हैं और काफी पहले ये स्थापित हो चुकी थीं। विचारधारा हमसे कह रही है कि क्रांति हमारे हाथों में है और ये पूरी तरह झूठ है। विघटन शब्द को भी कुछ हद तक बहुत तूल दिया गया है।

आर्थिक इतिहासकार जोसेफ स्कम्पीटर ने इस शब्द का ईजाद 20वीं शताब्दी में किया और इस शब्द के पीछे विचार यह था कि अर्थव्यवस्था के बीच ही शक्तियां उत्पन्न होती हैं, जो अर्थव्यवस्था को ही विघटित कर देती हैं। आर्थिक नजरिए से ये एक महत्वपूर्ण धारणा है, लेकिन जब आप इसे लोगों की जीनवशैली से जोड़ते हैं, तो इस शब्द के साथ समस्या हो जाती है। साल 2016 में जब क्लॉस स्क्वैब ने 4आईआर के विचार से दुनिया को परिचय कराया था, तो सामाजिक व आर्थिक थियोरिस्ट जेरेमी रिफकिन ने एक लेख प्रकाशित कर इस पूरे विचार को खारिज कर दिया था।

तीसरी औद्योगिक क्रांति में सामाजिक-आर्थिक असमानता बढ़ी या घटी?

आंकड़े बताते हैं कि तीसरी औद्योगिक क्रांति में सामाजिक आर्थिक असमानता बढ़ी है। पिछले महज 10 वर्षों में देशों के भीतर और देशों के बीच संपत्तियों में घोर इजाफा हुआ है और सभी आर्थिक आंकड़ों के मुताबिक आने वाले समय में ये और बढ़ेगा।

फिलवक्त दक्षिण अफ्रीका में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले गरीबों और अमीरों के बीच सबसे ज्यादा असमानता है। ये असमानता आने वाले समय में और बढ़ेगी। डिजिटल प्रौद्योगिकी की दुनिया में तकनीकी नवाचारों पर धनाढ्य वर्ग का नियंत्रण है और वे ही इसका फायदा उठा रहे हैं।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का तर्क है कि ऑटोमेशन के चलते 4आईआर में नौकरियां जाएंगी, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित नई नौकरियां भी पैदा होगीं। अगर आप रोजगार के कुछ आंकड़े देखें, तो पाएंगे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सेवा क्षेत्र में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और ये सेक्टर असुरक्षित और अस्थाई हैं। इस तरह के असुरक्षित कार्य अभी बढ़ रहे हैं और 4आईआर तकनीकों के आने के साथ भविष्य में इस तरह के काम बढ़ेंगे।

हालिया अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के हालिया दस्तावेज में कुछ दिलचस्प बातें हैं। दस्तावेज में कहा गया है कि दुनियाभर के अधिकांश नौकरीपेशा लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। जिन लोगों के पास नौकरियां हैं, उनमें से अधिकांश लोगों को इस तरह की नौकरियां से फायदा नहीं हो रहा है। कथित 4आईआर में आसमानता की खाई बढ़ रही है।

4आईआर में जिस स्तर पर प्रौद्योगिकियों के एक साथ आने की बात हो रही है, वैसी पूर्व में कभी नहीं सुनी गई। आप क्या सोचते हैं?

फिर एक बार कहूंगा कि औद्योगिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था की प्रौद्योगिकियों का एक साथ आना इसकी प्रकृति में है। 4आईआर से जुड़े लोगों की तरफ से जो कहानी बताई गईं हैं वो यह है कि पहली बार प्रौद्योगिकियां नाटकीय रूप से एक साथ आ रही हैं, लेकिन पूर्व की औद्योगिक क्रांतियों में भी ये हुआ था और ये हमेशा होता रहता है भले ही क्रांति हो या न हो।

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