विधानसभा चुनाव परिणाम: रोजगार देने की वायदाखिलाफी ने केसीआर की सत्ता की गाड़ी को किया बेपटरी

राज्य में युवा बेरोजगारी 15.1 प्रतिशत से अधिक है, यह राष्ट्रीय बेरोजगारी 10 प्रतिशत से अधिक है

By Anil Ashwani Sharma

On: Sunday 03 December 2023
 
तेलंगाना विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने बीआएस से सत्ता छीन ली है। फोटो: @BRSparty

कब तक इंतजार करते रहेंगे मुख्यमंत्री की रोजगार घोषणाओं का कि अब मिलेगा काम, अब मिलेगा। पिछले तीन साल से कॉलेज पास कर एक अच्छी सी सरकारी नौकारी तो दूर निजी काम तक अब तक नसीब नहीं हुआ, यह शिकायत है हैदराबाद के 24 वर्षीय पुष्पेंद्र रेड्डी की जो वर्तमान में सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर रोज जाकर यात्रियों का टिकट करवाकर उससे मिले कमीशन से अपनी रोजीरोटी चला रहे हैं।

ध्यान रहे कि तेलंगना विधान सभा चुनाव में जनकल्याण व रोजगार का मुद्दा ही मुख्य एजेंडे के रूप में उभरा है। अक्सर इस बात को लेकर भी पशोपेश रहती है कि कल्याणवाद और प्रगतिशील विकास में से किस पर ज्यादा फोकस होना चाहिए।

मगर विडंबना यह है कि एक व्यक्ति, उनका परिवार और उनके द्वारा रोजगार के लिए दिए गए वायदे 2014 में बने भारत के 29वें और देश के सबसे युवा राज्य तेलंगाना का इकलौता चुनावी मुद्दा बन गया और इसे पूरा न कर पाने की कीमत सत्तारुढ़ को उठानी पड़ी है।

हाल फिलहाल में जब भी राष्ट्रीय चैनलों से मुख्यमंत्री ने बात की तो वह विकास के सूचकांकों का जिक्र करते और आंकड़ों का हवाला देते नजर आए। यह सही है कि ये आंकड़े राज्य के कुछ क्षेत्रों में हुई प्रगति को दर्शाते हैं, लेकिन उन्होंने मानव विकास के संकेतकों और रोजगार दर का जिक्र नहीं किया। इस मामले में वे केवल वायदों से ही काम अब तक चला रहे थे। यह सही है कि भले ही तेलंगाना ने आर्थिक रूप से प्रगति की है, लेकिन मानव विकास के मामले में इसका रिकॉर्ड खराब है।

बेरोजगारी के कारण युवाओं में सत्तारुढ़ बीआरएस से भारी निराशा हाथ लगी है। तेलंगाना आंदोलन के दौरान पानी और सरकारी नौकरियों (नई नियुक्तियों) को राज्य के विकास के मंत्र के रूप में जमकर प्रचारित किया गया था। जिस बात को लेकर राज्य सरकार की सबसे अधिक आलोचना हो रही है, वह यह है कि बीआरएस ने रोजगार यानी नौकरी के अवसर पैदा करने पर पिछले दस सालों में न के बराबर ध्यान दिया।

पिछले 10 सालों में ग्रुप वन (राज्य सिविल सेवा के) में एक भी नौकरी सृजित नहीं हुई है, लेकिन राज्य में जिलों की संख्या जो साल 2014 में 10 थी, अब बढ़कर 33 हो गई है। राज्य के अधिकतर विश्वविद्यालयों में  कुल कर्मचारियों के मात्र एक तिहाई के साथ काम कर रहे हैं।

रोजगार नहीं देने के मामले में राज्य सरकार युवाओं की मांग से इतना त्रस्त हो गई कि उसने इस मामले में राज्य सरकार को बदनाम करने के आरोप में एक युवा महिला पर मामला तक दर्ज कर लिया। यह घटना राज्य के कोल्लापुर की एक निर्दलीय उम्मीदवार 25 वर्षिया सिरीशा की है। वह गरीब और बेरोजगार महिला हैं। उन्हें बारेलक्का (भैंस वाली बहन) के नाम से भी जाना जाता है।

वह रोजगार की मांग करने के मामले में तेलंगाना में अशांति का प्रतीक बन गई हैं। वह राज्य में बेरोजगारी और सरकार की कथित मनमानी के मुद्दे का प्रतीक बनकर उभरी हैं। सिरीशा ने हैदराबाद में रहते हुए सरकारी नौकरियों के लिए पढ़ाई की, लेकिन लंबे समय तक भर्तियां स्थगित रहने के कारण वह परेशान हो गईं। इसके बाद वह अपने गांव लौट गईं और वहां भैंसें पालना शुरू कर दिया। अपनी इस कहानी को लेकर उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हो गई और सरकार ने उनके खिलाफ “सरकार को बदनाम करने” के नाम पर मामले दर्ज कर लिया।

बीआरएस सरकार के दो कार्यकाल और राज्य गठन के 10 साल बाद बीआरएस 15 प्रतिशत बेरोजगारी दर हासिल कर सका जो कि देश में 10 प्रतिशत के मुकाबले सबसे अधिक है। सरकार ने न केवल नौकरी न देकर युवाओं को धोखा दिया है, बल्कि तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होने के कारण युवाओं के जीवन से भी खिलवाड़ हुआ है। ध्यान रहे कि 22 लाख से अधिक युवाओं ने नौकरी हासिल करने की उम्मीद के साथ विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के लिए तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) में पंजीकरण कराया था।

 ध्यान रहे कि ऐसे देश में जहां दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी है। भारत की कुल आबादी का लगभग 66 प्रतिशत 35 वर्ष से कम उम्र का है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नौकरियों के मोर्चे पर असंतोष राज्य सरकारों और पार्टियों के लिए अब एक बड़ी चुनौती बन गया है। 2022-23 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार तेलंगाना में युवा बेरोजगारी 15.1 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है। समान आयु वर्ग की महिलाओं के आंकड़े तो और भी अधिक हैं।

मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव और आईटी मंत्री केटी रामाराव ने पिछले पांच सालों के दौरान अपने हर भाषण में युवाओं को रोजगार और उनकी समस्याओं को महसूस करने के लिए प्रतिबद्धता की बात कही लेकिन जमीन हकीकत ये है उनकी इस मामले में संवेदनाओं में कमी थी तभी तो वे बेरोजगारों की आकांक्षाओं पर सवार होकर सत्ता में आए थे और बड़ी ही आसानी से उनकी उपेक्षा करने में देर नहीं की। कायदे से देखा जाए तो राज्य सरकार पर बेरोजगार युवाओं का करोड़ों रुपए बकाया है। 

प्रत्येक बेरोजगार युवा को 1,71,912 रुपए मिलने चाहिए क्योंकि राज्य सरकार ने 2018 विधानसभा चुनावों से पहले वादा किया था कि 3,016 रुपए की बेरोजगारी सहायता को लागू नहीं किया जाएगा लेकिन पिछले पांच सालों में यह लागू नहीं किया गया। यही नहीं इस सरकार ने जब आंध्रप्रदेश का विभाजन हुआ तो पिछली सरकारों द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए शुरू की गई सभी योजनाओं को बंद कर दिया और नीतियों में बदलाव के कारण राज्य में लगभग 65 लाख युवाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार से वंचित कर दिया गया।

बिस्वाल समिति द्वारा उल्लेखित सरकारी विभागों में 1.91 लाख रिक्तियां हैं। यही नहीं बीआरएस सरकार उच्च शिक्षा क्षेत्र में 24,000 शिक्षक रिक्तियों और अतिरिक्त 12,000 रिक्तियों को भरने में विफल रहा है। उच्च शिक्षा में रिक्तियाँ चिंताजनक रूप से 64.9 प्रतिशत तक पहुंच गई हैं जो शिक्षा के प्रति राज्य सरकार की ईमानदारी और प्रतिबद्धता की कमी को दर्शाता है।

देखना होगा नई सत्तारुढ़ कांग्रेस सरकार राज्य के युवाओं के लिए रोजगार सृजन कर पाती है या नहीं। हालांकि उसने अपनी चुनावी घोषणा पत्र में इस बात का दावा किया है कि वह हर साल दो चरणों में 2 जून और 17 सितंबर को नौकरी कैलेंडर की घोषणा करेगी। और टीएसपीएससी का पुनर्गठन किया जाएगा और इसमें ईमानदार लोगों को नियुक्त की जाएगी।

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