कोयला खदानों के बंद होने से 2050 तक 9.90 लाख मजदूरों की हो सकती है छंटनी, भारत में भी दिखेगा असर

आधिकारिक तौर पर भारत अपनी सक्रिय खदानों में करीब 337,400 श्रमिकों को रोजगार देता है। पता चला है कि 2050 तक कोल इंडिया से जुड़ी खदानों के बंद होने से 73,800 मजदूरों की जीविका खतरे में पड़ सकती है

By Lalit Maurya

On: Thursday 19 October 2023
 

कोयले की कालिख से सने चेहरे और कपड़े, यह वो लोग हैं जो अपनी जान जोखिम में डाल हर रोज कोयला खदानों में उतरते हैं, ताकि आपके-हमारे घर रोशन रह सकें। लेकिन जैसे-जैसे कोयला खदाने बंद होती जा रहीं हैं, इन मजदूरों की उम्मीदें भी धूमिल होती जा रही हैं, क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ इनके रोजगार पर मंडराता खतरा और गहराता जा रहा है।  

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा जारी नई रिपोर्ट से पता चला है कि 2050 तक कोयला खदानों के बंद होने से करीब 990,200 श्रमिकों को अपनी जीविका से हाथ धोना पड़ सकता है। रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक करीब 414,200 श्रमिक उन खदानों में काम कर रहे हैं जो 2035 से पहले बंद हो सकती हैं, जिससे हर दिन औसतन 100 श्रमिक प्रभावित होंगें।

रिपोर्ट के मुताबिक कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए की गई जलवायु प्रतिबद्धताओं या नीतियों के बिना भी 2050 तक कोयला उद्योगों के बंद होने से करीब एक तिहाई (37 फीसदी) मजदूरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।

इसका सबसे ज्यादा असर चीन और भारत में सामने आएगा। अनुमान है कि इसकी वजह से चीन का शांक्सी प्रांत सबसे अधिक रोजगार खो सकता है, जहां 2050 तक कोयला खनन से जुड़ी करीब लगभग 241,900 नौकरियां खत्म हो जाएंगी। यदि भारत की बात करें तो देश में कुल 337,000 श्रमिक कोयला खनन से जुड़े हैं। यदि किसी एक कंपनी द्वारा की जाने वाली छंटनी की बात करें तो इसमें कोल इंडिया सबसे ऊपर है जो सदी के मध्य तक 73,800 नौकरियों में कटौती कर सकता है।

बता दें कि यह रिपोर्ट ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर द्वारा साझा किए गए आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें इस बात की जानकारी दी गई है कि यह कोयला खदाने कितने लम्बे समय तक काम करती रहेंगी। यह आंकड़े बताते हैं कि कोयला कंपनियां ने मौजूदा पट्टों, परमिट, उपलब्ध कोयला भंडार और अन्य आर्थिक कारकों के आधार पर किसी विशेष साइट पर कितने समय तक कोयला निकालने की योजना बनाई है।

देखा जाए तो साल दर साल कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों पर रोजगार खोने का खतरा बढ़ता जा रहा है, ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया भर में कोयला खदाने बंद हो रहीं हैं और धीरे-धीरे ऊर्जा बाजार अधिक किफायती सौर और पवन ऊर्जा की तरफ रुख कर रहा है। हालांकि साथ ही रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ता की उनके देश ने कोयला को फेज-आउट करने की नीति को अपनाया है या नहीं।

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर, 2030 तक कोयला उद्योग से जुड़े सात फीसदी या 195,200 खनिक अपनी नौकरी खो देंगे। वहीं 2035 तक, यह आंकड़ा बढ़कर 15 फीसदी (414,200) पर पहुंच जाएगा, जबकि 2040 तक 22 फीसदी (581,800) मजदूरों की जीविका छिन सकती है।

देखा जाए तो दूर-दराज के क्षेत्रों में कोयला खनन से मिलने वाले रोजगार की बड़ी भूमिका होती है। यह न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार देती है साथ ही आर्थिक गतिविधियों में भी योगदान देती हैं।

यदि वैश्विक आंकड़ों पर गौर करें तो कोयला खनन उद्योग मौजूदा समय में भारत सहित 70 देशों के 27 लाख मजदूरों को रोजगार देता है। यह मजदूर 3,232 सक्रिय कोयला खदानों में काम कर रहे हैं जो पूरी दुनिया का 90 फीसदी कोयला उत्पादन करती हैं। इनमें से करीब 80 फीसदी खनिक एशिया में काम कर रहे हैं। इनमें भी चीन, भारत और इंडोनेशिया शीर्ष पर हैं जहां अन्य सभी देशों की तुलना में तीन गुणा अधिक कोयला खनिक हैं।

आंकड़ों के अनुसार करीब 22 लाख श्रमिक एशिया में हैं। इनमें से 15 लाख से अधिक कोयला खनिक चीन में हैं। जो दुनिया का करीब आधा कोयला उत्पादित करते हैं। वहीं यदि भारत की बात करें तो वो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है। आधिकारिक तौर पर भारत अपनी सक्रिय खदानों में करीब 337,400 श्रमिक को रोजगार देता है। हालांकि कुछ शोधों से पता चला है कि स्थानीय खनन क्षेत्र में एक औपचारिक श्रमिक पर चार 'अनौपचारिक' खनिक हो सकते हैं। कोयला उत्पादन के मामले में इंडोनेशिया तीसरे स्थान पर है, जहां करीब 159,900 मजदूर कोयला खदानों में काम कर रहे हैं।

भारत ने 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन को हासिल करने का रखा है लक्ष्य

भारत का पूर्वी क्षेत्र, जिसे कोयला बेल्ट के रूप में भी जाना जाता है, बिजली उत्पादन के लिए देश का अधिकांश कोयला पैदा करता है। झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में, कोयला खनन से जुड़े रोजगार, राज्य के श्रमबल का करीब एक से दो फीसदी हिस्सा हैं। इसमें अनौपचारिक श्रमिकों के साथ बिजली संयंत्रों और भारी उद्योगों में कोयले से संबंधित श्रमबल का हिसाब शामिल नहीं है।

गौरतलब है कि भारत ने 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने का वादा किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए कोल इंडिया अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। पर्यावरण पर पड़ते अपने प्रभावों को कम करने और शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए 2025-2026 तक तीन-गीगावाट सौर ऊर्जा कार्यक्रम को सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर रही है। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भारत धीरे-धीरे अपने कोयला आधारित ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा में बदलने के लिए काम कर रहा है।

भारत के लिए अच्छी बात यह रही कि 2022 तक देश में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र करीब 9.88 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। इनमें अकेले हाइड्रोपावर 4.66 लाख लोगों को रोजगार देता है, जबकि 2.82 लाख लोग सोलर पीवी के क्षेत्र से जुड़े हैं।

गौरतलब है कि कोयला खदानों में काम करने वाले इन मजदूरों के लिए वैसे भी जीवन आसान नहीं है ऊपर से रोजगार छिनने का खतरा इनकी कमर हो तोड़ देगा। ऐसे में इन मजदूरों को बेरोजगारी का सामना न करना पड़े इससे लिए पहले ही इन श्रमिकों को दूसरे रोजगारों और काम धंधों के लिए तैयार करना जरूरी है। इसमें सरकारों को भी सक्रिय तौर पर योगदान देने की जरूरत है।

इस बारे में  ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर परियोजना के प्रबंधक डोरोथी मेई का कहना है कि कोयला खदानों का बंद होना अनिवार्य है, लेकिन मजदूरों को होने वाली आर्थिक कठिनाईयों और सामाजिक मुद्दों को रोका जा सकता है। प्रभावी बदलाव की योजनाएं पहले ही बनाई जा रही है, उदाहरण के लिए स्पेन में जहां डीकार्बोनाइजेशन के प्रभावों का नियमित रूप से आंकलन किया जा रहा है। ऐसे में उनका कहना है कि सरकारें अपनी निष्पक्ष ऊर्जा परिवर्तन रणनीतियों की योजना बनाते समय स्पेन की सफलता से सीख सकती हैं।

इसमें कोई शक नहीं की जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए कोयले के उपयोग को बंद करना जरूरी है। लेकिन साथ ही हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि इस क्षेत्र से लाखों करोड़ लोग भी जुड़े हैं, जिनके हितों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। इनको भी सही प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए, जिससे वो भी अपने भविष्य को लेकर निश्चित रह सके। 

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