97 फीसदी रेहड़ी-पटरी, फेरीवालों ने माना, लॉकडाउन ने तोड़ दी है उनकी कमर

आइये जानते हैं कैसा है दिल्ली में पटरी पर सामान बेचने वालों का हाल| लॉकडाउन में 54 फीसदी महिला दुकानदारों ने लिया है कर्ज, 37.1 फीसदी के लिए मुश्किल है उसको चुका पाना

By Lalit Maurya

On: Friday 22 May 2020
 

कोरोनावायरस से पहले दिल्ली एक ऐसा शहर था, जहां हर किसी के लिए काम था| यही वजह थी कि दूर-दर्ज के क्षेत्रों से भी लोग काम की तलाश में दिल्ली का ही रुख करते थे| पर इस बीमारी के चलते हुए लॉकडाउन ने न केवल उनके काम-धंधों को छीना है बल्कि उन्हें कर्ज के ऐसे जाल में फंसा दिया है जिससे निकलना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है| इसने पटरी पर अपनी रोजी लगाने वाले लोगों को इस कदर तोड़ दिया है कि शायद उन्हें अपने आप को फिर से खड़ा करने में सालों लग जाएंगे|

भारत भर में करीब 2 से 4 करोड़ फेरीवाले हैं| जिनकी एक तिहाई आबादी महिलाओं की है| दिल्ली में हर दिन पटरी पर चलने वाला व्यापर करीब 80 करोड़ रूपए का है| जिसमें पटरी पर सजी वो छोटी सी दुकान विक्रेता के साथ-साथ औसतन तीन और लोगों का पेट भरती है| नेशनल हॉकर्स फेडरेशन का अनुमान है कि गलियों में सामान बेचने वालों में से करीब 50 फीसदी विक्रेता चाट, छोले-भठूरे, जूस जैसे खाने के सामान का ठेला लगाते हैं| जबकि करीब 35 फीसदी फल और सब्जियां बेचते हैं| वहीँ शेष 15 से 20 फीसदी दुकानदार कपड़े, और प्लास्टिक का छोटा-मोटा सामान जैसे क्रॉकरी, घरेलू सामान, चप्पल-जूते आदि बेचते हैं|

इन पटरी पर सामान बेचने वालों में अच्छी खासी संख्या महिला विक्रेताओं की भी होती है| जो अपनी छोटी सी रोजी के जरिये अपना और अपने परिवार का पेट भरती हैं| इनकी जिंदगी पहले से ही आसान नहीं थी| ऊपर से इस महामारी और लॉकडाउन के चलते इनपर और भी ज्यादा बुरा असर पड़ा है| इन्ही महिला विक्रेताओं की स्थिति को समझने के लिए इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट (आईएसएसटी) ने एक अध्ययन किया हैं| यदि इन महिला विक्रेताओं की स्थिति देखें तो इनमें से 57.2 फीसदी के परिवार में औसतन 5 से 7, 14.4 के घर में 8 से 10 सदस्य हैं| इनमे से 74.3 फीसदी के घर में 14 साल या उससे कम उम्र के बच्चे हैं| 20 फीसदी के घर में 60 साल या उससे ऊपर के बुजुर्ग और 11.4 फीसदी के घर में कोई बेरोजगार या विकलांग सदस्य है| ऐसे में इनपर काम का कितना बोझ है इस बात का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं|

कर्ज में डूबी हैं 57 फीसदी महिला विक्रेता

जिसमें इन महिला विक्रेताओं पर लॉकडाउन का क्या असर पड़ा है और आज उनकी क्या स्थिति है उस पर प्रकाश डाला है| सड़क किनारे फल, फूल, सब्जी, खाने और छोटे-मोठे सामान का उनका यह ठेला महज एक दुकान ही नहीं उनके परिवार का पेट भरने का साधन भी है और उनके बच्चों के सपने पूरा करने का जरिया भी, जो आज बिखर गए हैं| जिनपर यह सर्वे किया गया उनमे से 97 फीसदी से ज्यादा पर इस लॉकडाउन का बुरा असर पड़ा है। 57 फीसदी ने इस स्थिति से निपटने के लिए कर्ज लिया हैं जबकि उनमे से 37.1 फीसदी का मानना है कि वो इस कर्ज को नहीं चुका सकते हैं|

वहीं 65 फीसदी इसका सामना करने के लिए अपनी बचत पर निर्भर हैं|  चूंकि इनमें से ज्यादातर दुकानदार प्रवासी हैं और दिल्ली में किराये के मकान में रहती हैं| ऐसे में 5.7 फीसदी ने माना कि इस अवधि में घर का किराया चुकाना भी एक बड़ी मुसीबत है| उनके सामने खाने पीने कि भी समस्या है| इनमे से ज्यादातर अपने राशन के लिए सरकारी राशन की दुकानों (पीडीएस) पर निर्भर करती हैं| जबकि कई, सरकारी कैंटीन जो मुफ्त राशन देती हैं उनपर निर्भर हैं| जबकि उनमें से केवल 2.85 फीसदी को ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा भोजन मिल पा रहा है| उसमें भी उन्हें लम्बी कतार में लगकर उसे लेना पड़ता है जिसकी क्वालिटी भी इतनी अच्छी नहीं होती है|

इनमें से ज्यादातर पटरी विक्रेताओं के पास राशन कार्ड नहीं है| न ही किसी और तरह का सरकारी दस्तावेज है| इनके जो बैंक खाता, आधार कार्ड और अन्य डॉक्यूमेंट हैं वो भी गांव के पते पर हैं| ऐसे में उनका भी सहारा नहीं है| जिससे सब्सिडी प्राप्त कर सकें| साथ ही इनको मुफ्त भोजन के विषय में जो इ-कूपन जारी किये जाते हैं, उसके विषय में जानकारी भी नहीं है| इनमें से कइयों ने माना की ऐसी स्थिति में उनका परिवार भी उनकी मदद नहीं कर रहा है| जो ठेले में अपना सामान बेच रहीं हैं उनके साथ कॉलोनियों में भी कोई अच्छा बर्ताव नहीं करता| यहां तक की उन्हें कॉलोनी के अंदर भी नहीं घुसने दिया जाता| ऐसे में वो अपना सामान कहां बेचे यह भी एक बड़ी समस्या है|

लॉकडाउन में 50 से 100 रूपए की कमाई भी नहीं हो पाती हर दिन

ऊपर से लॉकडाउन के चलते उन्हें सामान खरीदने जाने में भी दिक्कते आ रही हैं| जिन्हें बार-बार प्रताड़ित किया जाता है| कई बार तो पुलिस वाले उन्हें दूर तक खदेड़ देते हैं| एक फेरी लगाने वाली महिला ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें दिन में एक घंटे ही सामान बेचने की इजाजत है| वो भी सिर्फ फल और सब्जियां बेच सकती हैं| ऐसे में गर्मी के समय दोपहर के समय सामान बेचना और मुश्किल हो जाता है| यही वजह है कि वो दिन में बड़ी मुश्किल से 50 से 100 रूपए ही कमा पाती हैं| ऊपर से पुलिस के द्वारा प्रताड़ना अलग से सहनी पड़ती है| ऐसी ही एक महिला ने फ़ोन पर बताया कि ऐसे समय में उन्होंने अपनी बेटी कि शादी के लिए जो पैसे जोड़े थे अब मज़बूरी में उससे घर चलना पड़ रहा है| जबकि 60 फीसदी महिलाओं में माना की उन्हें घर के काम में पुरुष साथी से कोई मदद नहीं मिलती|

भारत में महिलाओं के काम को उतनी तवज्जो नहीं दी जाती, जितने देनी चाहिए| एक महिला ने फ़ोन पर दिए इंटरव्यू में बताया कि स्थिति उस समय और बुरी हो जाती है जब उन्हें 12 बजे बंटने वाले खाने के लिए 10 बजे से जाकर लाइन में लगना पड़ता है| ऐसे में जिनके छोटे बच्चे हैं उनके लिए उन्हें घर पर छोड़ना एक बड़ी दिक्कत है| उनमें से कई ने बताया कि राशन की दुकान से जिनको राशन मिल रहा है उन्हें भी दाल, चावल और गेंहू मिलता है लेकिन दूध और बच्चे के खाने के लिए कुछ नहीं मिलता है| वहीं 62.8 फीसदी ने माना है कि ऐसे समय में बाजार में भी जरुरी चीजों के दाम बढ़ गए हैं|    

सिर्फ बड़े व्यापारियों पर ही नहीं, फेरीवालों और पटरी विक्रेताओं पर भी है ध्यान देने की जरुरत

रिपोर्ट में मांग की गई है कि फेरीवालों और पटरी विक्रेताओं पर भी ध्यान देने की जरुरत है| जिससे मुश्किल की इस घड़ी में उनको भी सहारा मिल सके और उन्हें भाग कर अपने गावों की और न जाना पड़े| रोटी, मकान और स्वस्थ्य ऐसी बुनियादी जरुरत है जिसपर ध्यान देने की जरुरत है| इसके साथ ही प्रवासियों, महिलाओं और कमजोर तबके के विषय में सटीक जानकारी और डाटा होना चाहिए जिससे उन्हें भी नीतियों और योजनाओं में जगह मिल सके| इनके मदद के लिए स्पेशल पैकेज की घोषणा करनी चाहिए|

स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट (2014) के उचित क्रियान्वयन पर भी ध्यान देना होगा ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित हो सके और देहाड़ी सुनिश्चित हो सके| क्योंकि यह एक ऐसा वर्ग है जो रोज कमाता है और रोज खाता है| बचत तो इनके लिए बड़ी दूर की चीज है| इनके स्वस्थ्य पर ध्यान देना भी जरुरी है, क्योंकि यह लोग खुले में काम करते है जिसमें इनके बीमार होने का खतरा कहीं ज्यादा है| ऐसे में स्वस्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ इनको स्वस्थ्य सम्बन्धी बीमा भी दिया जाना जरुरी है, जिससे वह अपना जीवन सम्मान के साथ गुजर सकें|

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