बजट 2022-23: भविष्य की आधारशिला कितनी मजबूत?

केंद्रीय बजट 2022-23 में मौजूदा साल तक निर्धारित विकास लक्ष्यों पर बात नहीं की गई, लेकिन देश को 2047 तक एक नई यात्रा पर ले जाने की रूपरेखा बना दी गई

By Richard Mahapatra

On: Monday 07 March 2022
 
इलस्ट्रेशन: सोरित गुप्तो / सीएसई

केंद्रीय बजट 2022-23 में उज्ज्वल भविष्य का विचार है, लेकिन इस विचार के लिए आवंटित धनराशि भावी लक्ष्य से मेल नहीं खाती। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद के पटल पर अब तक के सबसे छोटे बजट भाषण के बाद सोशल मीडिया पर “अमृतकाल” शब्द लगातार ट्रेंड होता रहा। वित्तमंत्री ने अपने भाषण के दौरान कहा, “यह बजट अगले 25 वर्षों (2047 तक) के लिए अमृतकाल की नींव रखने और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए एक ब्लूप्रिंट देने का प्रयास करता है।” प्रस्तावना में कोई भी भविष्य के संदर्भ में बजट को पढ़ या विश्लेषण कर सकता है, जिसे स्वयं भी परिभाषित नहीं किया गया है।

इस बजट से उम्मीदें इसलिए भी थीं, क्योंकि आजादी के 75वें साल में नया भारत बनाने का वादा था। यह वह साल है जब नीति आयोग के “स्ट्रेटजी फॉर न्यू इंडिया@75” दस्तावेज में निर्धारित लक्ष्यों को सरकार द्वारा पूर्ण किया जाना है। दस्तावेज में 4 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के साथ-साथ महिलाओं के लिए रोजगार सृजन, किसानों की आय दोगुनी करना और गरीबी हटाने सहित 41 लक्ष्य निर्धारित हैं। इनमें से 17 लक्ष्यों की समयसीमा 2022 है।

डाउन टू अर्थ द्वारा प्रकाशित “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022” रिपोर्ट में प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, अब तक हुई धीमी प्रगति के कारण लगभग सभी लक्ष्यों से चूकने की संभावना है। केंद्रीय बजट 2022-23 और आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 का लोगों को बेसब्री से इंतजार था क्योंकि वे जानना चाहते थे कि इन लक्ष्यों की क्या स्थिति है। लेकिन ऐसा लगता है कि लक्ष्यों की समीक्षा को दरकिनार कर सरकार हमें सीधे अमृतकाल में ले जा रही है। माना जा रहा है कि “न्यू इंडिया” के लक्ष्यों को स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक बढ़ा दिया गया है। न तो बजट भाषण और न ही आवंटन तालिका में “इंडिया@75” रणनीति के तहत निर्धारित लक्ष्यों का उल्लेख है। सीतारमण ने किसानों की आय को दोगुना करने की बात तक नहीं की, जो इस साल पूरा होने वाला सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य था। अर्थव्यवस्था के आकार के बारे में भी बात नहीं की गई। हालांकि वित्तमंत्री ने बाद में विभिन्न मीडिया मंचों से कहा कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।

लक्ष्य के आसपास भी नहीं

“इंडिया@75” विजन का मुख्य लक्ष्य 2017-18 में प्रति व्यक्ति आय 1,900 डॉलर से बढ़ाकर 2022-23 में 3,000 डॉलर करना है। नए भारत के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आय में यह वृद्धि बुनियादी शर्त है। विजन दस्तावेज के अनुसार, आय की यह वृद्धि ही सामान्य भारतीयों को गंदगी, गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, कुपोषण और खराब कनेक्टिविटी से आजादी देगी। केंद्र सरकार के 2021-22 के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग 1,258 डॉलर (93,973 रुपए) है जो 2017-2018 के स्तर से भी कम है। पिछले दो वर्षों में महामारी ने 2016 में शुरू हुई आर्थिक मंदी को तेज कर दिया है। प्रति व्यक्ति आय के 3,000 डॉलर के वादे तक पहुंचने के लिए हमें मौजूदा आंकड़े को दोगुना से अधिक करना होगा। इसके लिए असाधारण आर्थिक विकास की जरूरत है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है।

“इंडिया@75” विजन में कहा गया है कि प्रति व्यक्ति आय और संपूर्ण अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ाने के लिए रोजगार के स्तर को बढ़ाना होगा। खासकर 2022-23 तक महिला श्रम भागीदारी दर को कम से कम 30 प्रतिशत करना होगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी-मार्च 2021 में यह आंकड़ा सिर्फ 16.9 प्रतिशत था। गैर लाभकारी संगठन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के दिसंबर 2021 के आंकड़ों के अनुसार, देश में सक्रिय रूप से 35 मिलियन बेरोजगार लोगों में से 23 प्रतिशत महिलाएं नौकरी की तलाश में हैं। प्रति व्यक्ति आय में लक्षित वृद्धि के लिए जरूरी है कि 31 मार्च 2023 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़कर 4 ट्रिलियन डॉलर हो जाए। यह वित्त वर्ष 2021 के अंत तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर कम है। भले ही 2011 से कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन भारत में गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई है। पिछले साल दिसंबर में नीति आयोग ने एक सूचकांक जारी किया जिसमें गरीबी के स्तर और गंभीरता को मापने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के आंकड़ों का उपयोग किया गया था। यह सूचकांक कहता है कि भारत की 25.01 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी से पीड़ित है।



“न्यू इंडिया” का दूसरा अहम वादा है 2015-16 के स्तर के मुकाबले 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना। हाल ही में जारी “लैंड एंड लाइवस्टोक होल्डिंग्स ऑफ हाउसहोल्ड्स” और “सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चर हाउसहोल्ड्स” रिपोर्ट में शामिल राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 77वें दौर के आंकड़ों से इस लक्ष्य की प्रगति को समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 से कृषि परिवारों की मासिक आय में 59 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यानी 7.8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से आय बढ़ी है। लेकिन इस वृद्धि की वास्तविकता को समझने के लिए वार्षिक मुद्रास्फीति दर को ध्यान में रखना होगा। आय में मुद्रास्फीति-समायोजित करने पर यह वृद्धि केवल 2.5 प्रतिशत रह जाती है।

एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) ने एक बयान में कहा है कि 2022 तक दोगुनी आय के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मासिक आय 21,146 रुपए (मुद्रास्फीति समायोजित करने के बाद) होनी चाहिए। “सिचुएशन असेसमेंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चर हाउसहोल्ड्स” रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में कृषि से किसान परिवार की अनुमानित मासिक आय 10,218 रुपए थी। जय किसान आंदोलन के संस्थापक योगेंद्र यादव के अनुसार, “किसानों की आय दोगुनी करने का यह छठा वर्ष था। पिछले पांच बजट में इस लक्ष्य के बारे में लंबी चौड़ी कविताएं थीं, लेकिन अब जब छह वर्षों का हिसाब देने का समय आया, तब सन्नाटा है।”

केंद्रीय बजट 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए कुल आवंटन 2021-22 के संशोधित अनुमान (आरई) 126,807.86 करोड़ रुपए के मुकाबले 132,513.62 करोड़ रुपए हो गया। हालांकि, बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन योजना (एमआईएस-पीएसएस) को पिछले वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमान के 3,959.61 करोड़ रुपए से 62 प्रतिशत कम 1,500 करोड़ रुपए ही आवंटित हुए हैं। प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) में और भी बड़ी कटौती हुई है। इसे 2021-22 में 400 करोड़ रुपए के खर्च के मुकाबले सिर्फ 1 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। उपरोक्त दोनों योजनाएं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मुख्यत: दलहन और तिलहन की खरीद सुनिश्चित करती हैं।

जलवायु कार्रवाई का बजट

2022-23 के बजट ने 2047 तक भारत के विकास के “परिवर्तनकारी” चरण के मूल में जलवायु कार्रवाई को रखा है। बजट में ऊर्जा ट्रांजिशन, जलवायु कार्रवाई और विद्युतीकरण पर ध्यान उत्साहजनक है, लेकिन इसके लिए प्रतिबद्ध रणनीति और बेहतर वित्त पोषण की आवश्यकता है। बजट में कई पहलू हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर लागू किया जाता है तो स्वच्छ हवा और कम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य में मदद मिल सकती है। सीतारमण ने अपने बजट भाषण में चार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की घोषणा की है। ये क्षेत्र हैं- उत्पादकता वृद्धि और निवेश, नवीन मौके, ऊर्जा ट्रांजिशन और जलवायु कार्रवाई। स्वच्छ ऊर्जा को महिलाओं के सशक्तिकरण, डेटा केंद्रों की स्थापना और दूरदराज के सीमावर्ती गांवों के विद्युतीकरण जैसे विविध संदर्भों से जोड़ा गया है।

सीतारमण ने कहा, “2030 तक 280 गीगावाट के सौर ऊर्जा का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने हेतु उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल के उत्पादन के लिए 19,500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन होगा। इसमें पॉलीसिलिकॉन से सोलर पीवी मॉड्यूल बनाने वाली एकीकृत विनिर्माण इकाइयों को प्राथमिकता मिलेगी।” लेकिन बजट दस्तावेजों पर करीबी नजर डालने के बाद घोषणाएं बहुत प्रभावी नहीं दिखतीं। 2022-23 के लिए केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के बजट अनुमान से पता चलता है कि सौर ऊर्जा पर काम करने वाले एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) में निवेश लगभग आधा हो गया है। यह 1,800 करोड़ रुपए से घटकर 1,000 करोड़ रुपए से भी कम हो गया है।

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर काफी उम्मीदें थीं और बजट में अच्छी मंशा जाहिर भी होती है। दिलचस्प बात यह है कि इलेक्ट्रिक वाहन कार्यक्रमों को स्पष्ट रूप से शून्य उत्सर्जन सार्वजनिक परिवहन और कम उत्सर्जन क्षेत्रों की शहरी नियोजन रणनीतियों से जोड़ा गया है। शहरों में भूमि की कमी को दूर करने के लिए बैटरी स्वैपिंग रणनीति भी प्रस्तावित की गई है। निजी क्षेत्र से इलेक्ट्रिक वाहन पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए “सेवा के रूप में बैटरी या ऊर्जा” के लिए व्यावसायिक मॉडल विकसित करने की उम्मीद है। ऊर्जा भंडारण, अक्षय ऊर्जा और डेटा केंद्रों के लिए ग्रिड स्केल बैटरी सिस्टम के लिए सामंजस्यपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास के हिस्से के रूप में घने चार्जिंग बुनियादी ढांचे का प्रस्ताव किया गया है। हालांकि यह उत्साहजनक है, लेकिन बजट शून्य उत्सर्जन लक्ष्य पर चुप है।

अब यह समझा जा रहा है कि प्रस्तावित योजनाओं के लिए निजी क्षेत्र के बड़े निवेश की आवश्यकता है। यह तभी व्यवहारिक हो सकता है जब निवेश निर्णयों में अधिक निश्चितता लाने के लिए बाजार की मांग को लक्ष्यों से लगातार प्रेरित किया जाए। ग्लास्गो में शून्य उत्सर्जन वाहन प्रतिज्ञा पर भारत के हस्ताक्षर के अनुरूप होने की भी आवश्यकता है। लक्ष्य और शून्य उत्सर्जन की अनिवार्यता के अगर बेहतर नतीजे नहीं निकलते हैं तो लेकिन निजी निवेश बेहद अनिश्चित भी हो सकता है।

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