अंतरिम बजट 2024: आर्थिक वृद्धि के पीछे छिपी अग्रिम चेतावनी को समझना क्यों जरूरी?

2023-24 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 1.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है - जो वित्त वर्ष 2022-23 की 4 प्रतिशत वृद्धि के मुकाबले काफी कम है

By Richard Mahapatra

On: Wednesday 31 January 2024
 
फोटो: विकास चौधरी

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 2023-24 के लिए राष्ट्रीय आय का अपना पहला अग्रिम अनुमान जारी किया है। एनएसओ का अनुमान है कि सभी  अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जाएगी।

लेकिन यह अच्छी खबर एक आर्थिक वास्तविकता को छुपा रही है, जो देश के सबसे बड़े नियोक्ता माने जाने वाले कृषि क्षेत्र के लिए बहुत अच्छी खबर नहीं है। 2023-24 (2011-12 की कीमतों के आधार पर) में कृषि क्षेत्र (पशुधन, वानिकी और मछली पकड़ने सहित) 1.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 4 प्रतिशत थी। 

एनएसओ के अनुमान में शामिल आठ आर्थिक गतिविधियों में कृषि की विकास दर सबसे कम है। यह हाल के वर्षों में सबसे कम कृषि वृद्धि में से एक है। 2021-22 में कृषि विकास दर 2020-21 के 3.3 प्रतिशत की तुलना में गिरकर 3 प्रतिशत रह गई।

2021 से पहले छह वर्षों तक कृषि क्षेत्र में औसतन 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई (भले ही छह में से तीन वर्षों में यह दर 4 प्रतिशत से नीचे थी, जबकि बाकी तीन वर्षों में यह लगभग 6 प्रतिशत थी) क्योंकि  आधार तुलना का वर्ष 2015-16 था, जिस साल गंभीर सूखे के कारण कृषि वृद्धि 0.6 प्रतिशत थी।

चालू वर्ष की कम वृद्धि का कारण अनियमित मॉनसून और अल नीनो प्रभाव के चलते बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान है। एनएसओ के अनुसार, 2022-23 की तुलना में 2023-24 में चावल का उत्पादन 5.4 प्रतिशत कम हो रहा। वित्त वर्ष 2022-23 में चावल उत्पादन में 2021-22 की तुलना में 0.5 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई। 

इसका मतलब है कि देश के किसानों के एक बड़े हिस्से को रोजगार देने वाले मुख्य उत्पाद का दो साल से अधिक समय तक कम उत्पादन हुआ है। इसका मतलब यह भी है कि पिछले एक दशक से किसानों की कमाई स्थिर रही है या 1.3 प्रतिशत की मामूली कृषि मजदूरी वृद्धि दर से बढ़ रही है, जो 2014 से शुरू होने वाली मौजूदा सरकार के दो कार्यकालों के साथ मेल खाता है। तो इस कम वृद्धि का देश की अर्थव्यवस्था के लिए क्या मतलब है?

कृषि, देश के 45 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार देती है। उनकी कमाई राष्ट्रीय जीडीपी को परिभाषित करती है। कम वृद्धि का अनुमान ऐसे समय में आया है जब व्यक्तिगत उपभोग देश की जीडीपी का लगभग 61 प्रतिशत है (इसे एनएसओ लेखांकन में निजी अंतिम उपभोग व्यय या पीएफसीई कहा जाता है)।

यदि इतने प्रतिशत उपभोक्ताओं के पास खर्च करने की क्षमता नहीं होगी तो जीडीपी पर असर पड़ना स्वाभाविक है। इसके अलावा, इतने लंबे समय तक इतनी परेशानी का मतलब यह भी होगा कि लोग कर्ज में डूब रहे हैं, या गरीबी के जाल में फंस रहे हैं। 

2023-24 में प्रति व्यक्ति निजी अंतिम उपभोग व्यय  1,29,400 रुपये (मौजूदा कीमतों पर या मुद्रास्फीति दर को शामिल किए बिना) होने का अनुमान है, जो 2022-23 की तुलना में सिर्फ 10,123 रुपये अधिक है। 

व्यय को आम तौर पर आय के प्रॉक्सी (प्रतिनिधि) के रूप में माना जाता है, क्योंकि लोग अपनी आय के अनुसार खर्च करते हैं। यह अल्प व्यय वृद्धि कम आय की स्थिति का संकेत देती है। पीएफसीई डेटा के पिछले कुछ वर्षों में स्थिरता दिखाई देती है, और यदि मुद्रास्फीति को इसमें शामिल किया जाए, तो यह नकारात्मक वृद्धि वर्ग में जा सकता है।

एनएसओ के अग्रिम अनुमानों के बावजूद शीतकालीन फसलों के कम रकबे और सितंबर 2023 के बाद से अनियमित और चरम मौसम की घटनाओं के कारण फसल के नुकसान को देखते हुए, वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कृषि विकास उतना उत्साहजनक नहीं है। जैसा कि संशोधित अनुमान है आने वाले कुछ हफ्तों में साफ तस्वीर सामने आ जाएगी।

लेकिन यह अनुमान बदले हुए माहौल में कृषि क्षेत्र के व्यवहार को दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि कृषि पर निर्भर अधिकांश भारतीय किस प्रकार नुकसान झेलते रहेंगे। इसका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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