भारतीय अर्थव्यवस्था की मुसीबत बढ़ा सकता है बढ़ता तापमान: ग्लोबल रिपोर्ट

मैक्किंजे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में 2030 तक भारत को 2.5 से 4.5 फीसदी तक जीडीपी के नुकसान की आशंका जताई गई है  

By Pushp Bajaj

On: Tuesday 11 February 2020
 

लगातार बढ़ता तापमान श्रमिकों की कार्यक्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। अगले तीन दशकों के दौरान भारत में लगभग 75 प्रतिशत श्रम शक्ति यानि लगभग 38 करोड़ कार्यबल गर्मी से होने वाले तनाव के संपर्क में होंगे। यह तथ्य मैक्किंजे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की हलिया रिपोर्ट में सामने आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक दिन के उजाले के काम के घंटों के अनुपात में भारत को 2.5 से 4.5 फीसदी तक जीडीपी का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस रिपोर्ट में अगले तीन दशकों में दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के भौतिक जोखिमों और सामाजिक व आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। 

 रिपोर्ट के मुताबिक, अगर जलवायु परिवर्तन की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया तो भारत के एक बड़े हिस्से में बाहर काम करने का माहौल अत्यधिक गर्म हो जाएगा। बढ़ती गर्मी और आद्रर्ता के स्तर के चलते आगामी 2030 तक 16 से 20 करोड़ लोगों को बाहर के गर्म मौसम में जोखिम भरी परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मानव शरीर 100 प्रतिशत आद्रता पर 35 डिग्री सेल्सियस से उपर के तापमान पर पसीना और ठंडा होने की अपनी प्राकृतिक क्षमता खो देता है। इसीलिए इस तापमान के दृष्टिकोण में कुछ ही घंटे बाहर काम किया जा सकता है, लिहाजा, इसका असर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने के चलते कार्यक्षमता पर पड़ेेगा। 

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2050 में 70 करोड़ लोग घातक गर्मी के लहरों के गैर-शून्य अवसरों वाले क्षेत्रों में रहेंगे। उच्च तापमान और निरंतर गर्मी की लहरें श्रमशक्ति की बाहरी कार्य क्षमता में बाधा उत्पन्न करेंगी। अनुमान बताते हैं कि अत्यधिक गर्मी के कारण आज के काम के खोए हुए घंटों की संख्या के मुकाबले 2050 तक 10 प्रतिशत से बढ़कर 15 से 20 प्रतिशत तक हो जाएगी, जिसका आर्थिक विकास पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा।

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि पुराने कई अध्ययनों से पता चला है कि विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में निम्न स्तर पर जीडीपी वाले देश स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से प्रभावित हो रहे हैं, लिहाजा ऐसे देश आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन के आर्थिक झटकों से सबसे बुरी तरह से प्रभावित होंगे। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि समुद्र के बढ़ते तापमान की वजह से कम हो रही मछली की आबादी मत्सय उद्योगों को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा, इसका असर 67 से 80 करोड़ लोगों की आजिविका को प्रभावित करेगा।

दूसरी तरफ, रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से कुछ हद तक ठंडे और अमीर देशों को आर्थिक रूप से बढ़ावा मिलने की उम्मीद जताई गई है। खासकर, उत्तरी यूरोप के क्षेत्रों में पर्यटन और कनाडा में कृषि क्षेत्र में बढ़ते तापमान से कुछ हद तक लाभ देखने को मिल सकता है। रिपोर्ट में सरकारी सिस्टम और व्यापार जगत के प्रतिनिधियों को सतर्क करते हुए बताया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को ठीक करने के लिए सही उपकरण, प्रक्रियाओं को बेहतर तरीके से समझें और इन जोखिमों को और कम करने के लिए कार्बोनेटाइज करें, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।

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