आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: यहां पढिए सरकार ने सतत विकास, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के लिए क्या कहा

समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक के दौरान भारत के वन क्षेत्र में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है।

By Vivek Mishra

On: Monday 31 January 2022
 

आम बजट 2022-23 से पूर्व सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश कर दी है। इसमें कहा गया है कि बीते वर्ष 2020-2021 के आर्थिक सर्वेक्षण दृष्टिकोण को बताता था, जबकि यह आर्थिक सर्वेक्षण केंद्रीय भाव वाला है। सरकार ने अपने सर्वेक्षण में कई मामलों में कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए स्थितियों को जटिल बताया है, हालांकि वन एवं पर्यावरण, सतत विकास लक्ष्यों और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर खुद की पीठ थपथपाई है।

इस बार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट का एक हिस्सा जो सरकार के कामकाज पर आलोचनात्मक समझ देता है वह नहीं तैयार किया गया। बहरहाल यह रिपोर्ट के कुछ चुनींदा बिंदुओं को देखिए जो सरकार ने गिनाए हैं :

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश किया। उन्होंने बताया कि नीति आयोग के सतत विकास लक्ष्य  (एसडीजी) इंडिया इंडेक्स एंड डैशबोर्ड पर भारत का स्‍कोर 2018-19 में 57 और 2019-20 में 60 से बढ़कर 2020-21 में 66 हो गया, जो सतत विकास लक्ष्‍यों (एसडीजी) को हासिल करने की दिशा में उसकी प्रगति को दर्शाता है। 

सतत विकास लक्ष्‍यों की दिशा में भारत की प्रगति

समीक्षा में नीति आयोग एसडीजी इंडिया इंडेक्‍स, 2021 पर राज्‍यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन के बारे में निम्‍नलिखित टिप्‍पणी की गई है –

  1. फ्रंट रनर (65-99 स्‍कोर वाले) राज्‍यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों की संख्‍या वर्ष 2020-21 में 22 हो गई, जो 2019-20 में 10 थी।
  2. केरल और चंडीगढ़ अग्रणी राज्‍य और केन्‍द्रशासित प्रदेश रहे।
  3. पूर्वोत्‍तर भारत में 64 जिले फ्रंट रनर और 39 जिले परफॉर्मर रहे (पूर्वोत्‍तर क्षेत्र जिला एसडीजी इंडेक्‍स 2021-22)

पर्यावरण की स्थिति

    आर्थिक समीक्षा में संरक्षण, पारिस्थितिक सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ त्‍वरित आर्थिक विकास के साथ संतुलन के मुद्दे पर सरकार ने गिनाया है : 

  • भूमि वन

समीक्षा में बताया गया है कि पिछले एक दशक के दौरान भारत के वन क्षेत्र में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है और वह वर्ष 2010 से 2020 के बीच वन क्षेत्र के औसत वार्षिक शुद्ध लाभ में वैश्विक स्‍तर पर तीसरे स्‍थान पर है। इसी समय,  2011 से 2021 के दौरान भारत के वन क्षेत्र में 3 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई। ऐसा मुख्‍यत: बहुत घने जंगलों में वृद्धि के कारण हुआ, जिनमें इस अवधि के दौरान 20 प्रतिशत तक वृद्धि हुई।

  • प्‍लास्टिक अवशिष्‍ट प्रबंधन तथा एकल उपयोग वाली प्‍लास्टिक

समीक्षा में प्रधानमंत्री की इस घोषणा को दोहराया गया है कि वर्ष 2022 तक भारत एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्‍त कर देगा। इस मामले पर वैश्विक समुदाय द्वारा कदम उठाए जाने की आवश्‍यकता को स्‍वीकार करते हुए 2019 में आयोजित संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण सभा में भारत ने एक प्रस्‍ताव- एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक उत्‍पादों से होने वाले प्रदूषण से निपटना पारित किया।

घरेलू स्‍तर पर प्‍लास्टिक अवशिष्‍ट प्रबंध संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया गया, जिसका उद्देश्‍य एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक को चरणबद्ध रूप से समाप्‍त करना है। प्‍लास्टिक पैकेजिंग हेतु विस्‍तारित उत्‍पादक उत्‍तरदायित्‍व पर विनियमन का मसौदा भी अधिसूचित किया गया। यह कदम प्‍लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्‍ट की सर्क्‍युलर अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करने,  प्‍लास्टिक और टिकाऊ पैकेजिंग के नये विकल्‍पों के विकास को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया।

  • जल

भूजल संसाधन प्रबंधन और मूल्‍यांकन इस ओर संकेत करते हैं कि राज्‍यों/केन्‍द्रशासित प्रदेशों को पुनर्भरण, भूजल संसाधनों के अत्‍यधिक दोहन पर रोक लगाने सहित अपने भूजल संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करने की आवश्‍यकता है। समीक्षा में उल्‍लेख किया गया है कि आकलनों में भारत के पश्चिमोत्‍तर और दक्षिणी भागों में भूजल संसाधनों के अत्‍यधिक दोहन की बात सामने आई है।

समीक्षा में कहा गया है कि मानसून के महीनों के दौरान जलाशय का लाइव भंडारण अपने चरम पर होता है और गर्मियों के महीनों में सबसे कम होता है। इसलिए जलाशयों के भंडारण, रिलीज और उपयोग की सावधानीपूर्वक योजना बनाने तथा समन्‍वय करने की आवश्‍यकता है।

नमामि गंगे मिशन की स्‍थापना के बाद से उसके अंतर्गत अनेक सीवेज अवसंरचना परियोजनाएं बनाए जाने को रेखांकित करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित अत्‍यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) के अनुपालन में सुधार होने पर प्रकाश डाला गया है, जो 2017 में 39 प्रतिशत से 2020 में 81 प्रतिशत हो गया। अपशिष्‍ट निर्वहन में भी कमी आई है। यह 2017 के 349.13 एमएलडी से कम होकर 2020 में 280.20 एमएलडी हो गया।

  • वायु

देशभर में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता में 20-30 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया था। सर्वेक्षण  में उल्‍लेख किया गया है कि यह कार्यक्रम 132 शहरों में लागू किया जा रहा है। समीक्षा में यह भी बताया गया है कि देश में विभिन्‍न स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण पर काबू पाने और उसमें कमी लाने के लिए कई अन्‍य कदम भी उठाए जा रहे हैं, जिनमें वाहन से होने वाला उत्‍सर्जन, धूल और कचरे को जलाने से होने वाला प्रदूषण तथा परिवेषी वायु गुणवत्‍ता की निगरानी शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन

भारत ने उत्‍सर्जन में कमी लाने के लिए 2015 में पेरिस समझौते के अंतर्गत अपना प्रथम राष्‍ट्रीय स्‍तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) घोषित किया और 2021 में 2030 तक हासिल किये जाने वाले महत्‍वकांक्षी लक्ष्‍यों की घोषणा की। समीक्षा में वन-वर्ड-मूवमेंट: लाइफ शुरू करने की आवश्‍यकता रेखांकित की गई है, जिसका आशय है पर्यावरण के लिए जीवन शैली, जो बिना सोचे-समझे और विनाशकारी खपत के स्‍थान पर सावधानीपूर्वक और सोद्देश्यीपूर्ण उपयोग का अनुरोध करती है।

समीक्षा में इस बात का कभी उल्‍लेख किया गया है कि भारत ने जलवायु के संबंध में अंतर्राष्‍ट्रीय सौर सहयोग (आईएसए), आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) और उद्योग संक्रमण के लिए नेतृत्‍व समूह (लीड आईटी समूह) के अंतर्गत वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकारी प्रदर्शन करता आ रहा है। वित्‍त मंत्रालय, आरबीआई और सेबी ने भी संधारणीय वित्‍त के क्षेत्र में कई कदम उठाए हैं।  

Subscribe to our daily hindi newsletter