पर्यावरण की दशा-दिशा 2020: कोविड-19 के असर से वैश्विक विकास दर 2 प्रतिशत कम होगी

कोविड-19 के प्रभाव से विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में 2020 में 6.1 प्रतिशत की गिरावट आएगी। भारत की विकास दर में 1.9 प्रतिशत कमी की आशंका जताई गई है

By Bhagirath Srivas

On: Monday 01 June 2020
 
फोटो: विकास चौधरी

डाउन टू अर्थ द्वारा प्रकाशित “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2020” रिपोर्ट 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जारी होने वाली है। यह रिपोर्ट आंकड़ों के माध्यम से पर्यावरण और हमारे अस्तित्व से जुड़ी समस्याओं और उनकी गंभीरता का एहसास कराएगी। यह रिपोर्ट पर्यावरण से हमारे संबंधों पर भी रोशनी डालेगी। अक्सर कहा जाता है कि समस्या का माप जरूरी है, तभी उसका समाधान किया जा सकता है। यह रिपोर्ट समस्या के इसी माप से परिचय कराएगी और हर आंकड़ा समस्या की गंभीरता बताएगा। इस रिपोर्ट को हम आज से एक सीरीज के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। पहली कड़ी में पढ़ें कोरोनावायरस का वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर असर-

कोविड-19 महामारी अप्रैल 2020 तक पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन गई। मार्च के मध्य तक इसने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया और दुनिया को अभूतपूर्व संकट में धकेल दिया। दुनियाभर में 62 लाख से अधिक लोग कोरोनावायरस के संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 3.74 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

वैश्वीकृत दुनिया में यह महामारी व्यापार के लिए एक से दूसरी जगह में जाने वाले लोगों के माध्यम से फैली है। यह 1919-20 में विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों के माध्यम से फैले स्पेनिश फ्लू महामारी से भिन्न है। इस महामारी ने स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है। इतिहास में पहली बार गतिशीलता पर अंकुश लगा है।

सेंटर फॉर इकॉनोमिक पॉलिसी रिसर्च के अर्थशास्त्रियों के समूह का अनुमान है कि विश्व के दो तिहाई देशों का उत्पादन और आमदनी कंटेनमेंट नीतियों से जुड़ी है। इंटरनेशनल माइग्रेशन ऑर्गनाइजेशन ने महामारी को गतिशीलता का संकट बताया है जो अप्रत्याशित प्रकृति का है। आधुनिक अर्थव्यवस्था हर व्यक्ति किसी न किसी का आर्थिक हित या निवेश है। गतिशीलता के बिना इस अर्थव्यवस्था की सांसें रुक जाएंगी।

संक्रमण रोकने के लिए महामारी के कर्व को फ्लैट करना या इसके फैलाव की दर को कम करना हर देश का मकसद बन गया है। इसके लिए देश लंबे समय तक लॉकडाउन लागू कर रहे हैं। व्यापक पाबंदियों द्वारा जितनी तेजी से हम कर्व को फ्लैट करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, अर्थव्यवस्था भी उतनी ही तेजी से पंगु बनती जाएगी। यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट के अनुसार, 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर दो प्रतिशत घट सकती है। इसका मतलब है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा।

ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए किए गए उपायों से वैश्विक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में हर महीने 2 फीसदी की कमी आएगी। यानी साल में 24 प्रतिशत जीडीपी कम होगी। यह 1930 की महामंदी के बाद सबसे बुरी आर्थिक स्थिति है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। 2021 में इसके 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वहीं, वैश्विक व्यापार में 11 प्रतिशत और तेल की कीमतों में 42 प्रतिशत गिरावट होगी। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में 2020 में 6.1 प्रतिशत की गिरावट आएगी। भारत की विकास दर में 1.9 प्रतिशत कमी की आशंका जताई गई है।

ओईसीडी के अनुसार, लॉकडाउन और कंटेनमेंट के कारण थोक एवं फुटकर व्यापार, निर्माण क्षेत्र और पेशेवर सेवाओं पर असर रहेगा। विभिन्न देशों पर इसका अलग- अलग असर होगा। उत्पादन बंद होने से विकसित एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 15 प्रतिशत या इससे अधिक व्यापार बंद हो सकता है। अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन 25 प्रतिशत कम हो सकता है।

इसके अलावा पर्यटन पर निर्भर देशों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। बड़े पैमाने पर कृषि और खनन क्षेत्र पर निर्भर देशों पर गंभीर असर नहीं होगा। ओईसीडी के अनुसार, विभिन्न देशों में बचाव के उपायों और संक्रमण की स्थिति को देखते हुए आर्थिक प्रभाव भिन्न हो सकते हैं।

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