10 सवाल: दर्द की दवा बनेगी यूनिवर्सल बेसिक इनकम!

यूबीआई समर्थकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि भुखमरी और गरीबी कम करने में यह योजना मददगार साबित होगी 

By Bhagirath Srivas

On: Thursday 28 March 2019
 

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) क्यों चर्चा में है?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी साल जनवरी के आखिरी हफ्ते में छत्तीसगढ़ में ऐलान किया कि लोकसभा चुनाव जीतने पर कांग्रेस यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करेगी। इसके अलावा हाल में ही पेश अंतरिम बजट में पीयूष गोयल ने किसानों के लिए यूबीआई से मिलती-जुलती घोषणा की गई है जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 6,000 रुपए दिए जाएंगे। बजट में इसके लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बनाने की घोषणा की गई है।

यूबीआई योजना क्या है?

यह एक ऐसी योजना है जिसके तहत हर नागरिक के खाते में एक निश्चित राशि भेजी जाती है ताकि उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें। इस योजना का लाभ लेने के लिए आय की कोई शर्त नहीं होती।

भारत के लिए यह योजना क्यों अहम है?

भारत में विश्व के एक तिहाई अति गरीब निवास करते हैं। भूख से मौत की खबरें विभिन्न राज्यों से लगातार आती रहती हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भूख से होने वाली मौतें एक बड़ा धब्बा है। यूबीआई लागू होने पर इन गरीबों को एक निश्चित आय सुनिश्चित होगी और भुखमरी में कमी आने की संभावना है।

भारत में यूबीआई का विचार कहां से आया?

साल 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में यूबीआई का विचार सामने आया था। इस सर्वेक्षण में यूबीआई पर एक अध्याय था जिसमें इसका विस्तृत खाका था। उस समय मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था कि यूबीआई सामाजिक न्याय दिलाने के साथ मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

यूबीआई को लागू करने के पीछे क्या तर्क है?

आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में कहा गया था कि भारत सरकार की 950 कल्याणकारी योजनाओं पर जीडीपी का 5 फीसदी हिस्सा खर्च होता है। इसके बावजूद लोगों को पूरा लाभ नहीं मिल पाता। यूबीआई को इन सभी योजनाओं के विकल्प के रूप में देखा गया।

यूबीआई के आलोचकों का क्या कहना है?

कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि यूबीआई से बिना मेहनत किए आय होगी और यह राशि जरूरतों के बजाय नशे आदि बुरी आदतों पर खर्च होगी। इसके अलावा लोगों की काम में दिलचस्पी कम हो जाएगी जिससे जीडीपी में गिरावट की आशंका है। विरोध का एक तर्क यह भी है कि इससे करदाताओं पर दबाव बढ़ेगा और सरकार नए कर लगा सकती है जिससे महंगाई दर बढ़ेगी।

इस योजना के समर्थकों की क्या दलील है?

समर्थकों का एक बड़ा वर्ग है जो मानता है कि भुखमरी और गरीबी कम करने में यह योजना मददगार साबित होगी। माना जाता है कि गरीबों के लिए चल रही योजनाओं का 60 प्रतिशत लाभ अमीर उठा लेते हैं। साथ ही इससे बैंकों की स्थिति में सुधार होगा क्योंकि एक बड़ी धनराशि चलन में आ जाएगी। इसके अलावा लोगों के हाथ में पैसा आने पर मांग का भी सृजन होगा जिससे अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी।

क्या किसी राज्य में यूबीआई लागू हुआ है?

अभी किसी राज्य ने इसे लागू करने की हिम्मत नहीं दिखाई है लेकिन सिक्किम पहला राज्य है जिसने इसे लागू करने की घोषणा की है। सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग ने घोषणा की है कि अगर उनकी सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में वापस आई तो अगले तीन साल में यूबीआई को लागू कर दिया जाएगा।

क्या किसी राज्य में यूबीआई से संबंधित प्रयोग हुआ है?

मध्य प्रदेश के इंदौर में सेवा (सेल्फ एम्प्लॉयड वुमेंस एसोसिएशन) ने इस संबंध में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत आठ गांवों में लोगों के खातों में पैसे भेजे गए। शुरुआत में वयस्कों के खातों में 200 रुपए और बच्चों के खातों में 100 डाले गए जिसे बाद में बढ़ाकर क्रमश: 300 और 150 रुपए कर दिया गया। 12 महीने तक खातों में पैसे डाले गए। जब अध्ययन किया गया तो पता चला कि लोगों ने इन पैसों को स्वच्छता और पीने के पानी पर खर्च किया। बहुत से लोगों ने बिजली पर पैसा लगाया। दूसरे शब्दों में कहें तो यूबीआई के सकारात्मक नतीजे सामने आए।

दूसरे देशों में यूबीआई की क्या स्थिति है?

विश्व के अलग-अलग देशों में यूबीआई पर मंथन चल रहा है। स्विट्जरलैंड में इसे संवैधानिक अधिकार बनाने के लिए जनमत संग्रह हुआ जिसे लोगों ने खारिज कर दिया। वर्ष 2017 में फिनलैंड में दो साल का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जिसमें 25 से 58 साल के 2,000 बेरोजगार युवकों को 560 यूरो प्रति महीने दिए गए। फिनलैंड की सरकार इस प्रयोग पर 20 मिलियन यूरो खर्च कर रही है। इस तरह के प्रयोग इटली, फ्रांस और नीदरलैंड में भी हुए हैं। केन्या के 200 गांवों में सबसे बड़ा प्रयोग चल रहा है।

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