हरियाणा की अव्याहारिक कृषि नीति से कृषि उत्पादन में कमी के संकेत

हरियाणा के आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के मुताबिक राज्य में गेहूं का उत्पादन वर्ष 2022-23 में 110 लाख टन रहा, जो 2010-11 के मुकाबले कम है

By Virender Singh Lather

On: Monday 26 February 2024
 
फोटो: विकास चौधरी

हरित क्रांति के दौर (वर्ष 1970) से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले प्रमुख राज्यों में शामिल हरियाणा के कृषि उत्पादन में ठहराव प्रदेश और देश दोनों के लिए चिंता का विषय है।

बजट सत्र में प्रस्तुत किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 (टेबल 3.3 एवं 3.4) के अनुसार प्रदेश की लगभग 24 लाख हेक्टेेयर भूमि पर उगाई जाने वाली प्रमुख फसल गेहूं का उत्पादन वर्ष 2022-23 में 110 लाख टन रहा, जो वर्ष 2010-11 के 115.8 टन उत्पादन से भी कम रहा है।

यानि पिछले 12 वर्षोंं में प्रदेश में सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद गेहूं उत्पादन (लगभग 110 लाख टन) और उत्पादकता (46 किवंटल प्रति एकड़) में कोई सुधार नही हुआ है। जो हरियाणा में कृषि उत्पादन और उत्पादकता में ठहराव सरकार की कृषि नीति की विफलता का सूचक है।

इसी तरह, पिछले 5 वर्षोंं में प्रदेश की लगभग 6 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाई जा रही प्रमुख व्यावसायिक फसल कपास का उत्पादन भी 24.6 लाख बेल (170 किलोग्राम) से घटकर 10 लाख बेल वार्षिक से कम हो गया। जो सरकार और किसानों के लिए चिन्ता का विषय है।

इसके विपरीत पिछले 5 वर्षों में प्रदेश में धान के रकबे को कम करने के सरकार द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल रहे, क्योकी किसानो ने वर्ष 2019- 20 में 15.59 लाख हेक्टेयर के मुकाबले वर्ष 2022- 23 में ज्यादा भूमि 16.6 लाख हेक्टेयर पर धान उगाकर 59.2 लाख टन उत्पादन किया, जो वर्ष 2019-20 के उत्पादन 51.9 लाख टन उत्पादन के मुकाबले 14 प्रतिशत ज्यादा धान उत्पादन हुआ, जो सरकारी तंत्र की कृषि समस्या के बारे में नासमझ और गलत नीतियों को लागू करने पर बड़ा सवाल है।

पिछले 5 वर्षों में, सरकारी नीतिकारों की नासमझी से लागू की गई कृषि नीति की 'धान छोड़ो किसान', 'मेरा पानी-मेरी विरासत योजना' व मक्का फसल आदि से अव्याहवारिक फसल विविधिकरण को किसानों ने सिरे से नकार दिया है, क्योंकि ये अव्याहवारिक सरकारी नीतियां सरकारी फाइलों तक सीमित रही और बिल्कुल हितेषी नही है और सिर्फ सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी मात्र साबित हुई है, जिसकी राष्ट्रिय हित में उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।

बजट-2024 में सरकार का 4.4 प्रतिशत की दर से कृषि सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) वृद्धि का दावा अपने आप में भ्रमित और आंकड़ों का खेल मात्र है, क्योंकि कृषि और संबंधित क्षेत्रो में कुल कृषि सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) वर्ष 2019-20 में 86,043 करोड़ रुपए था और वर्ष 2023-24 में 90,956 करोड रुपए हो गया, जो पिछले 5 वर्षों में कुल 4.07 प्रतिशत बढ़ा, यानि कृषि सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) की औसत वार्षिक वृद्धि दर एक प्रतिशत से भी कम रही है।

निसंदेह, पर्यावरण हितेषी - भूजल और संसाधन संरक्षण करने वाली धान की सीधी बिजाई विधि को किसानों ने वर्ष 2023 में बड़े स्तर पर लगभग दो लाख एकड भूमि (प्रदेश के धान क्षेत्र का 5 प्रतिशत से ज्यादा भूमि) पर कामयाबी से अपनाया, जिसे कम अवधि की धान किस्मों के साथ बढ़ावा देने से प्रदेश में भूजल संरक्षण के साथ, सदाबाहार और टिकाऊ हरित क्रांति सुनिश्चित की जा सकेगी और पराली दहन से होने वाले वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा।

भूजल संरक्षण के लिए बजट में 1,027.6 करोड़ रुपए का प्रावधान तकनीकी तौर पर अव्याहवारिक योजना सूक्षम सिंचाई आदि के लिए रखा गया है।  इस राशि से भूजल संरक्षण वाली सीधी बिजाई वाली धान की तकनीक को प्रोत्साहन देकर प्रदेश में भाविष्य की पीढ़ियों के लिए भूजल संरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 

(लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सेवानिवृत प्रधान वैज्ञानिक हैं। लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं) 

 

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