बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के बाद पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ फूटा लोगों का गुस्सा

किन्नौर और लाहौल-स्पीति में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ शुरू किया अभियान, प्रोजेक्टों को पंचायतें नहीं देंगी एनओसी

By Rohit Prashar

On: Monday 02 August 2021
 
हिमाचल प्रदेश के जिले किन्नौर के मूरंग गांव में पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ आवाज बुलंद करते लोग। फोटो: रोहित पराशर

हिमाचल प्रदेश में दिनों-दिन बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं के बाद किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ लोगों को गुस्सा एक आंदोलन का रूप ले रहा है। पहले चमोली और बाद में किन्नौर और लाहौल की प्राकृतिक आपदाओं के बाद इन लाहौल और किन्नौर के जनजातीय लोगों ने एकजुट होकर प्रोजेक्टों के खिलाफ "नो मीन्स-नो" अभियान चलाया है। जिसमें प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों को किसी भी सूरत में न लगने देने की घोषणा की गई है। इस अभियान में सबसे अधिक विरोध जगरंग वैली में सतलुज जल विद्युत निगम के 804 मेगावाट वाले जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट का किया जा रहा है।

पिछले माह कंपनी के अधिकारी वैली में लोगों को पावर प्रोजेक्ट के फायदे बताकर उन्हें मनाने के लिए पहुंचे थे, लेकिन लोगों ने उनकी एक न सुनी और "नो मीन्स नो" (नहीं का मतलब नहीं) अभियान शुरू किया। वहीं लाहौल-स्पीति में चंद्रभागा और चिनाब नदी पर प्रस्तावित 50 से अधिक पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ पूरे जिला की संघर्ष समितियों को मिलाकर एक लाहौल स्पीति एकता मंच का गठन किया गया है। इस मंच के बैनर तले अब लाहौल-स्पीति में बनने वाले पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ आंदोलन के रूप में काम किया जा रहा है।

हाल ही में हुई प्राकृतिक आपदाओं के बाद पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ किन्नौर में क्यंग संस्था की ओर से छेड़े गए "नो मीन्स नो" अभियान के साथ पहली बार किन्नौर के सभी वर्गाें और क्षेत्र के लोग जुड़ रहे हैं। इस अभियान में शामिल किन्नौर के युवा सुंदर नेगी ने बताया कि किन्नौर जिला पावर प्रोजेक्टों की वजह से बहुत नुकसान उठा चुका है। किन्नौर में जब से पावर प्रोजेक्ट आए हैं तब से प्राकृतिक आपदाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है, जिनमें सैकडों परिवार बेघर हो चुके हैं।

हिमाचल में पावर प्रोजेक्टों के कारण पर्यावरण और स्थानीय जनता के उपर पड़ने वाले प्रभावों पर काम करने वाली संस्था हिमधारा के सदस्य सुमित महर ने बताया कि किन्नौर और लाहौल-स्पीति दोनों ही जिले प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं। इन दोंनों जिलों में हमारी संस्था की ओर से की गई रिसर्च में निकलकर आया है कि यहां पावर प्रोजेक्ट बनने के बाद पारिस्थितिकी पर असर से लोग चिंतित हैं और अब लोग यहां और अधिक पावर प्रोजेक्टों को नहीं चाहते हैं। उन्होंने बताया कि पावर प्रोजेक्ट बनने के बाद भूस्खलन की घटनाओं से लोग सहमे हुए हैं। इसलिए अब लोग मिलकर पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।

लाहौल-स्पीति एकता मंच के कोर्डिनेटर शाम आजाद ने बताया कि लाहौल-स्पीति जिले में प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ लड़ाई के लिए अब डेढ़ दर्जन संघर्ष समितियों को मिलाकर एक सांझा मंच तैयार किया गया है। यह मंच लोगों को पावर प्रोजेक्टों से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरूक कर रहा है। लाहौल-स्पीति क्षेत्र पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ प्रभावित पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सरकार पर दबाव डालने का काम किया जा रहा है।

यूं तो हिमाचल प्रदेश में पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ दो दशकों से लोगों के विरोध को देखा जा रहा है, लेकिन आपस में एकजुटता न होने के कारण यह आंदोलन सिरे नहीं चढ़ पाए। जबकि इस बार के आंदोलन में गजब की एकता देखी जा रही है। अब जो आंदोलन किया जा रहा है उसमें सभी स्थानों के लोग स्थानीय मुद्दों और राजनीति से उपर उठकर काम कर रहे हैं। लोगों ने जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ सभी पंचायतों को एक साथ ग्राम सभा से प्रस्ताव भेजने की सहमति भी बनाई है। इसी तरह लाहौल-स्पीति क्षेत्र के लोग भी अब स्थानीय मांगों से उपर उठकर पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट हुए हैं।

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