2015 से अब तक 326 गीगावाट क्षमता की थर्मल पावर परियोजनाओं को रद्द कर चुका है भारत
हालांकि अभी भी देश में करीब 21 गीगावाट क्षमता की कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं, जबकि 34 गीगावाट क्षमता की परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं
On: Thursday 16 September 2021
2015 से अब तक भारत करीब 326 गीगावाट क्षमता की थर्मल पावर परियोजनाओं को रद्द कर चुका है, जोकि पर्यावरण के दृष्टिकोण से एक अच्छी खबर है। अनुमान है कि इसके चलते 2015 से प्रस्तावित थर्मल पॉवर परियोजनाओं में करीब 92 फीसदी की गिरावट आई है। इसमें 250 गीगावाट की वो क्षमता भी शामिल है, जिसे पहले ही बंद कर दिया गया था। इस लिहाज से देखें तो भारत में एक गीगावाट थर्मल पावर क्षमता के निर्माण के साथ ही करीब 7 गीगावाट क्षमता को बंद कर दिया गया है।
हालांकि अभी भी भारत का कोयला आधारित ऊर्जा से मोह पूरी तरह भंग नहीं हुआ है। जिसका नतीजा है कि अभी भी देश में करीब 21 गीगावाट क्षमता की कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं निर्माण से पूर्व के चरणों में हैं। वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो यह कुल प्रस्तावित परियोजनाओं का करीब 7 फीसदी हैं, जोकि चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा हैं।
वहीं यदि उन परियोजनाओं की बात करें जो अभी भी निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं तो उनकी कुल क्षमता करीब 34 गीगावाट है। जो यह स्पष्ट करता है कि भारत अभी भी कोयला आधारित बिजली से पूरी तरह दूर नहीं हुआ है। यह जानकारी हाल ही में जलवायु परिवर्तन के लिए काम कर रहे संगठन ई3जी द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।
यदि देखा जाए तो भले ही राष्ट्रीय स्तर पर भारत कोयले से धीरे-धीरे दूर जा रहा है, लेकिन कई राज्यों में इस मामले में अच्छी खासी प्रगति हुई है। उदाहरण के लिए 2019 से 2021 के बीच देश के चार राज्यों गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और कर्नाटक के सरकारी अधिकारियों ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वो भविष्य में कोई नया कोयला आधारित बिजली संयंत्र नहीं बनाएंगे।
वहीं यदि भारत की यदि कुल थर्मल पावर क्षमता को देखें तो वो करीब 234.8 गीगावाट है, जोकि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का करीब 60.9 फीसदी है। यह विश्व की कुल थर्मल पावर का करीब 11.3 फीसदी है। इसमें अकेले कोयले से बिजली पैदा करने की क्षमता करीब 2.02 गीगावाट है।
2019 में छपे एक अध्ययन से पता चला है कि कई और राज्यों में कोयला आधारित ऊर्जा से दूर जाने की क्षमता है। ऐसा काफी हद तक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण सम्बन्धी कारकों के कारण मुमकिन हो सकता है। जैसे-जैसे रिन्यूएबल एनर्जी की लागतों में कमी आ रही है, वो कोयला आधारित ऊर्जा को कड़ी टक्कर दे सकती है।
बिजली की लागत को लेकर इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी द्वारा जारी रिपोर्ट रिन्यूएबल पावर जेनेरेशन कॉस्टस इन 2020 से पता चला है कि भारत की मौजूदा 91 फीसदी कोयला आधारित बिजली क्षमता को चलाने की लागत सौर और पवन ऊर्जा की लागत से कहीं ज्यादा महंगी है। इसकी कुल उत्पादन क्षमता करीब 193 गीगावाट है। ऐसे में यदि इस कोयला आधारित क्षमता को सौर और पवन ऊर्जा से बदल दिया जाए तो इससे देश को न केवल हर वर्ष करीब 47,468 करोड़ रुपए की बचत होगी। साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भी 64.3 करोड़ टन की गिरावट आएगी।
दुनिया के कई देशों से सस्ती है भारत में रिन्यूएबल एनर्जी की कीमत
देखा जाए तो भारत में अक्षय ऊर्जा की कीमत दुनिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले कम है। जो दिसंबर 2020 में 1.99 रुपए प्रति किलोवाट-घंटा दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि यह देश के ज्यादातर मौजूदा और नई कोयला परियोजनाओं द्वारा पैदा की जा रही ऊर्जा के मुकाबले सस्ती है। इसी का नतीजा है कि देश की कई सरकारी और निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां अब रिन्यूएबल एनर्जी की ओर रुख कर रही हैं।
ऐसे में इस बदलाव का फायदा न केवल आर्थिक रूप से होगा बल्कि समाज और पर्यावरण के दृष्टिकोण से यह बदलाव देश के लिए फायदेमंद होगा। इससे एक तरफ जहां देश में सस्ती ऊर्जा उपलब्ध हो सकेगी। वहीं दूसरी तरफ जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले प्रदूषण में भी गिरावट आएगी। जिससे स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में गिरावट आएगी।
अनुमान है कि हर साल देश में असमय होने वाली करीब 9.8 लाख मौतों के लिए कहीं न कहीं वायु प्रदूषण जिम्मेवार है। जिसकी यदि कीमत आंकी जाए तो वो करीब 2.14 लाख करोड़ रुपए बैठती है। ऐसे में प्रदूषण में आने वाली यह कमी इस कीमत को लगभग आधा कर देगी। यही नहीं इससे पर्यावरण के गिरते स्वास्थ्य में भी सुधार आएगा जिसका फायदा आने वाली पीढ़ियों को भी मिलेगा।