जलवायु परिवर्तन से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है बुरा असर

जलवायु परिवर्तन हमारे भोजन में पोषक तत्व कैसे कम करता है? इसके विज्ञान को संक्षेप में समझते हैं

By Kanhaiya Lal

On: Tuesday 07 December 2021
 

जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन के विविध आयामों को प्रभावित कर रहा है। आमजन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बेखबर हैं। सूखा, बाढ़, गर्मी-सर्दी की निरंतर बढ़ती घटनाएं तो जलवायु परिवर्तन के सीधे प्रभाव हैं, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन  का प्रभाव हमारे भोजन तक पहुंच चुका है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से वैज्ञानिकों ने चावल गेहूं, दालें और सब्जियों में अतिआवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे आयरन जिंक कैल्शियम विटामिन आदि मात्रा में निरंतर कमी पायी है। जिसका मतलब है कि अगर आप भरपेट खा भी रहे तो भी बहुत संभावना है भोजन से हमारे शरीर को सूक्ष्म पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नही मिल रहे। हैं।

भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कम होती मात्रा खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से गंभीर चिंता का विषय है। भारत जैसे देश के लिए यह अधिक चिंता का विषय है क्योंकि 2021 के वैश्विक भूख-सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत 116 देशों में 101 स्थान पर है।

जिसका सीधा निष्कर्ष है कि भारत में एक बड़ी आबादी को उचित मात्रा में संतुलित आहार उपलब्ध नही है और जो भी है उसमें अतिआवश्यक सूक्ष्म तत्व कमतर हैं । बच्चे गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं पोषण की दृष्टि से सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं ।

जलवायु परिवर्तन हमारे भोजन में पोषक तत्व कैसे कम करता है? इसके विज्ञान को संक्षेप में समझते हैं। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है जो दानों में कार्नबिक और अकार्बनिक वितरण को प्रभावित करती है।

बढ़ी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा सूक्ष्म तत्वों की जैव-उपलब्धता को परिवर्तित कर देती है साथ ही साथ पेड़-पौधों में सूक्ष्म तत्वों को बढ़ाने वाली गतिविधियों को भी कम कर देती है। अतः पैदा हुए गेहूं-चावल में अकार्बनिक अंश (आयरन, जिंक, कैल्शियम, आदि) कमतर होता है।

टेरी की पर्यावरण एवं स्वास्थ्य (एनवायरनमेंट एंड हेल्थ) टीम के हाल ही के एक शोध-पत्र में इसी तथ्य को उजागर किया गया है। इस शोध पत्र में जलवायु परिवर्तन की कृषि भेद्यता और बाल स्वास्थ्य सूचकांक के आधार पर देश के उन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है जहां खाद्य सुरक्षा का खतरा सबसे अधिक है।

कृषि भेद्यता सूचकांक (VI) के मूल्यांकन के लिए नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएन्ट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) द्वारा विकसित मॉडल प्रयोग किया गया। तथा बाल स्वास्थ्य सूचकांक का मूल्यांकन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा उपलब्ध नाटापन, निर्बलता, कम वजन, खून की कमी, और दस्त के आंकड़ों के आधार पर किया गया।

इस अध्ययन में देश के 572 जिलों (मुख्यतः ग्रामीण) में से 230 जिले कृषि भेद्यता की दृष्टि से अधिक संवेदनशील पाए गए। वहीं बाल स्वास्थ्य सूचकांक की दृष्टि से 162 जिले अधिक संवेदनशील पाए गए। दोनों सूचकांकों को एक साथ मिलाकर देखने पर 135 ऐसे जिले चिह्नित किये, जिन पर जलवायु परिवर्तन बाल स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है।

ये जिले मुख्यतः मध्यप्रदेश राजस्थान, उत्तर-प्रदेश गुजरात महाराष्ट्र बिहार  झारखंड और कर्नाटक राज्यों से है। इनमें से 35 जिले तो बहुत अधिक संवेदनशील चिन्हित किये गए जिनमें से सबसे ज्यादा नौ जिले मध्यप्रदेश से हैं। इसके अलावा राजस्थान और उत्तरप्रदेश के छह-छह जिले, गुजरात के पांच और बिहार के तीन जिले हैं।

बाल एवं महिला स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को कम करने के लिए सरकारों द्वारा इन जिलों अधिक ध्यान देने की जरूरत है। मोटे अनाज वाली फसलें (मिलेट्स) जैसे ज्वार  बाजरा, मकरा आदि  जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित रहती हैं अतः इनको नियमित भोजन में प्रोत्साहित करके महिला एवं बाल स्वास्थ्य स्वास्थ्य को संरक्षित और संवर्धित किया जा सकता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में मिलेट्स को शामिल करके गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन यापन कर रहे परिवारों के स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार लाया जा सकता है।

मिलेट्स को पीडीएस में लाने के कई दूरगामी प्रभाव संभावित हैं - जिसमें धान जैसी पानी-प्रधान फसलों को हतोत्साहित करना जो कि भूजल का समुचित स्तर बनाने, तथा दिल्ली समेत उत्तर भारत में पराली जनित प्रदूषण को कम करने में मददगार होगा।

जलवायु परिवर्तन सिर्फ पर्यावरणविदों की चिंता ही नही हम सबकी चिंता का विषय होना चाहिए ।

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