पहली बार अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में मिले माइक्रोप्लास्टिक के सबूत

माइक्रोप्लास्टिक के यह कण भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकते हैं

By Lalit Maurya

On: Wednesday 23 December 2020
 

पहली बार अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा (गर्भनाल) में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है, जोकि एक बड़ी चिंता का विषय है। हालांकि प्लेसेंटा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है माइक्रोप्लास्टिक के यह कण विषाक्त पदार्थों के वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। इनमें पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम जैसे जहरीले भारी धातु और कार्बनिक यौगिक शामिल हैं। लम्बी अवधि के दौरान यह विषाक्त पदार्थ स्वास्थ्य के लिए काफी गंभीर हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक के यह कण भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही शिशुओं के इम्यून सिस्टम पर भी असर डाल सकते हैं, जिससे भविष्य में उनके रोगों से लड़ने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। यह शोध रोम के फेटबेनेफ्राटेली हॉस्पिटल और पोलेटेक्निका डेल मार्श यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया है, जोकि जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी मां की सांस के जरिए अजन्मे बच्चे के अंदर ब्लैक कार्बन के कण पहुंचने के सबूत मिले थे। लेकिन यह पहला मौका है जब मां के साथ-साथ भ्रूण में भी माइक्रोप्लास्टिक के होने के सबूत मिले हैं।

इस शोध में 18 से 40 वर्ष की आयु की छह स्वस्थ महिलाओं के प्लेसेंटा का विश्लेषण किया गया था। जिनमें से 4 में माइक्रोप्लास्टिक के कृत्रिम कण पाए गए थे। उनमे कुल मिलकर 5 से 10 माइक्रोन आकार के 12 माइक्रोप्लास्टिक (पीएम) के टुकड़े पाए गए। यह उतने छोटे थे की जो आसानी से रक्त के जरिए शरीर में पहुंच सकते थे। इनमें से 5 टुकड़े भ्रूण में, 4 मां के शरीर में और 3 कोरियोएम्नियोटिक झिल्ली (वह स्थान जहां भ्रूण का विकास होता है) में पाए गए थे। अनुमान है कि यह कण मां की सांस और मुंह के जरिए भ्रूण में पहुंचे थे।

इन 12 टुकड़ों में से 3 की पहचान पॉलीप्रोपाइलीन के रूप में की गई हो जो कि प्लास्टिक की बोतलों का निर्माण करने के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि 9 सिंथेटिक पेंट सामग्री थी, जिनका उपयोग क्रीम, मेकअप या नेल पॉलिश के लिए किया जाता है। साथ ही वैज्ञानिकों का मानना है यह गोंद, एयर फ्रेशनर, परफ्यूम और टूथपेस्ट के भी हो सकते हैं।

चूंकि प्लेसेंटा की भ्रूण के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वो बच्चे और बाहरी वातावरण के बीच सम्बन्ध का एक जरिया होता है। ऐसे में यदि उसमें माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए हैं तो यह सचमुच चिंता का विषय है।

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  गौरतलब है कि प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जिसका मतलब है कि यह इतने छोटे होते हैं कि आसानी से रक्त के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं।

हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है, एक अन्य शोध से पता चला है कि हम 1950 से लेकर अब तक 830 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं। जिसके 2025 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है । दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख पीने के पानी की बोतलें खरीदी जाती हैं जो कि प्लास्टिक से बनी होती है। जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि अब प्लास्टिक के छोटे अंश और रेशे बड़ी मात्रा में कणों के रूप में टूट रहे हैं और पानी की स्रोतों और पाइपों के जरिये अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं।

आज जिस तरह से दुनिया भर में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है और वो वातावरण को दूषित कर रहा है, वो पहले ही एक बड़ी समस्या बन चुका है। ऊपर से जिस तरह शरीर में इसके पहुंचने के सबूत मिल रहे हैं, वो एक बार फिर बड़े खतरे की ओर इशारा है। जिस पर तुरंत कार्रवाई करने की जरुरत है।

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