ये हैं कोरोना से लड़ने वाले गुमनाम योद्धा

कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में भारत के 1.5 करोड़ सामुदायिक कार्यकर्ता अपने जीवन को दांव पर लगाकर बेहतरी के लिए जुटे हैं

By Megha Prakash, Vivek Mishra, Ajit Panda, Shagun

On: Monday 25 May 2020
 
केरल के कुन्नूर में महिलाओं के इस समूह ने लोगों को भूख से बचाने के लिए गरीबी उन्मूलन मिशन कुडुंबश्री के तहत सामुदायिक रसोई शुरू की है (फोटो: एस के मोहन)

नोवेल कोरोनावायरस ने पूरे देश को एक जगह ठहरा दिया है। इस खतरनाक वायरस के खिलाफ बड़ी तादाद में लोग एकजुट हुए, जिसने एक उम्मीद जगाई कि भारत बहुत कम दुर्घटनाओं और नुकसान के साथ इस युद्ध को जीत सकता है। जैसे ही देश में कोरोनावायरस के मामले बढ़ने शुरू हुए, राज्य सरकारों ने बचाव के लिए 1.5 करोड़ से ज्यादा सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधाएं, स्वास्थ्य कर्मी और पंचायत प्रतिनिधियों को पहली कतार का योद्धा बनाकर तैनात कर दिया ताकि स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा चरमरा न जाए। अगर इन्हें एक साथ मिलाया जाए तो यह इटली की एक-छठवीं आबादी होगी, जिसे इस महामारी की सबसे ज्यादा चोट लगी है। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए इन श्रम शक्तियों की अहमियत से सरकार बखूबी वाकिफ है।

इनमें खासतौर से सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशा कार्यकर्ता शामिल हैं, जो सीधा समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र के बीच की अहम कड़ी के तौर पर जुड़ी हैं। कर्नाटक सरकार ने जब 10,000 आशा कार्यकर्ताओं को उनके 15 महीने का बकाया वेतन चुकाने के लिए अचानक हामी भरी तो इसने हमें अचरज में नहीं डाला। यह आशा कार्यकर्ता जनवरी से बंगलुरु की सड़कों पर अनिश्चितकालीन धरना दे रहीं थीं। सेवाएं बंद करने से पहले इन्हें विषाणु के संबंध में जागरुकता फैलाने का दबाव बनाया जा रहा था, साथ ही संभावित कोरोना पॉजिटिव के आंकड़े और सूचनाएं भी जुटाने को कहा गया था। कर्नाटक में संयुक्त आशा वर्कर्स एसोसिएशन की सचिव डी नागलक्ष्मी ने कहा कि हमारी रिपोर्ट के आधार पर ही आज राज्य में महामारी से लड़ाई लड़ी जा रही है। यहां तक कि समूचे देश में आशा कार्यकर्ता बिना किसी छुट्टी के अतिरिक्त श्रम कर रही हैं। जबकि 2018 में प्रधानमंत्री ने आशा कार्यकर्ताओं के पारिश्रमिक को 60 फीसद बढ़ाने का वादा किया था, जो अब तक अधूरा है।

इसी तरह 19 मार्च को भारत के लॉकडाउन में प्रवेश करने के कुछ दिन पहले तमिलनाडु मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी ने सफाई कर्मियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को मान लिया। थूइमाई पनियालारगल या सफाई कर्मचारियों को फिर से संगठित कर उन्हें सम्मानित किया गया। अब, कोरोनावायरस के खिलाफ राज्य की लड़ाई में सबसे आगे शहरी और ग्रामीण नागरिक निकायों द्वारा नियोजित 60,000 से अधिक स्वच्छता कर्मचारी ही हैं। वहीं चेन्नई नगर निगम ने उन्हें निगरानी के लिए लगाया है। प्रत्येक दिन, कचरे को इकट्ठा करने के अलावा, ये पैदल सैनिक घर-घर जाकर परिवारों में लक्षणों की पहचान के लिए सर्वेक्षण करते हैं।

इसके बाद निगम के चिकित्सा अधिकारी डेटा का विश्लेषण करके अगले हस्तक्षेप की योजना बनाते हैं। सबसे ज्यादा भयभीत करने वाला है कि बिना बचाव उपायों के ही यह श्रम शक्ति बड़े पैमाने पर संचालित हो रही है। मास्क, सेनिटाइजर, दस्तानों और विशेष प्रशिक्षण के बिना ही संभावित संक्रमित व्यक्तियों के बीच इनका काम जारी है। कोयंबटूर की मानवाधिकार कार्यकर्ता एस बाला मुरूगन ने कहा कि पूरे तमिलनाडु में 2,00,000 सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं, इनमें ज्यादातर के पास बुनियादी बचाव के सामान जैसे दस्ताने, मास्क और ओवरकोट नहीं हैं। लॉकडाउन लागू होने के तुरंत बाद, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के लिए सबसे आगे रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए एक मार्गदर्शिका जारी की। इसमें कहा गया कि भारत में पोषण देखभाल के लिए आशा, एएनएम (सहायक नर्स दाई, एक गांव-स्तर महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और एडब्ल्यूएम (आंगनवाड़ी कार्यकर्ता) स्वास्थ्य के तीन आधार हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संगठन राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान और पंचायती राज ने पंचायतों को संकट से लड़ने में मदद करने के लिए एक ई-लर्निंग पोर्टल, ग्राम स्वराज भी लांच किया लेकिन बहुत कम लोग इनसे लाभान्वित हुए। डाउन टू अर्थ ने ऐसे ही सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मुलाकात की जो मुंह पर कपड़ा लपेटे और बैग में एक साबुन रखकर निर्भीकता से कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।

अग्नि रेखा पर खड़े पहरेदार

देश में पूरी तरह से लॉकडाउन लागू होने से पहले ही तमिलनाडु में अंतर राज्य वाहनों और श्रमिकों का मूवमेंट प्रतिबंधित था, आशा कार्यकर्ता सीमाओं पर पहरेदारी कर रही थी। वहीं पुलिस यह सुनिश्चित कर रही थी कि सिर्फ वही वाहन चेक पोस्ट पार करे जो जरूरी सामान ढो रहे हैं। आशा कार्यकर्ता हर संदिग्ध यात्रियों की स्क्रीनिंग कर रहीं थीं और पूरे वाहनों पर रसायन का छिड़काव किया जा रहा था। तमिलनाडु में स्वास्थ्य सेवाओं के उपनिदेशक जी रमेश कुमार ने कहा कि पांच सदस्यीय टीमें विभिन्न और प्रमुख चेकपोट्स पर मौजूद रहीं। एक टीम में एक हेल्थ इंस्पेक्टर और चार आशा कार्यकताएं शामिल हैं। यह जांच टीम तमिलनाडु-केरल सीमा के साथ ही वालायर, नाडुप्पुनी, अनिकट्टी, मुथलामडा और मीनाक्षीपुरम में काम कर रही हैं।

केरल सीमा के पास तमिलनाडु के थेनकासी में ड्यूटी कर रहीं के मलारविझी ने कहा कि लॉकडाउन की घोषणा जिस दिन से हुई तब से स्थितियां काफी सजग करने वाली हो गईं। प्रतिदिन हम केरल से निकलने वाली सब्जियों से लदे ट्रकों को स्कैन कर रहे हैं, कम से कम 25 बसें 1,000 पलायन करने वाले श्रमिकों के साथ वापस आई हैं। अब जाकर कुछ हलचल थमी है और हम पहले से काफी सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। फिर भी उन्होंने बचाव के लिए विशेष कपड़े पहन रखे हैं। मलारविझी उन कुछ भाग्यशालियों में एक हैं जो कोरोनावायरस के विरुद्ध लड़ाई लड़ रही हैं।

बेंगलुरू के बाह्य क्षेत्र में स्थित कनकपुरा में आशा कार्यकर्ता प्रभावती को कोरोनावायरस के भय के साथ ही हैजा (कॉलरा) के प्रसार से भी लड़ना पड़ रहा है। उनके क्षेत्र में मार्च के पहले दो हफ्तों में 80 गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस के मामले आए, इनमें कुल 17 मामलों में हैजा की पुष्टि हुई। पूरे दिन वह कोरोनावायरस के संदिग्धों की जांच और घरों में क्वारंटाइन होने वालों की जानकारी के लिए दौड़ती हैं और जरूरतमंद घरों को खाने का सामान और दवाइयां भी पहुंचा रही हैं। प्रभावती इतने पर नहीं रुकती हैं बल्कि उन्हें उन क्षेत्रों में भी लोगों को खाना-पानी इत्यादि की स्वच्छता संबंधी जागरुकता के लिए जाना पड़ता है जहां हैजा के मामले पता चल रहे हैं। वह कहती हैं कि कोरोनावायरस से जुड़े भ्रामक तथ्यों और अफवाहों को खत्म करने में उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, आम लोगों में एक तरह का मानसिक भय है और वे उन लोगों के साथ विभेद कर रहे हैं जो किसी खास स्थानों से लौटे हैं। खासतौर से हज से लौटे लोगों को यह विभेद झेलना पड़ रहा है।

हालांकि, केरल में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने मिसाल पेश की है, जहां जल्दी शुरू हुई जांच और मरीजों की पहचान ने कोरोनावायरस संक्रमण से जुड़े मामलों को बढ़ने से रोका है, वहीं देश में सबसे ज्यादा रोगियों की रिकवरी भी इसी राज्य में हुई है। केरल के स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि जनवरी में ही जब पहला मामला सामने आया था, हमारे विभागों ने जमीनी स्तर पर प्राथमिकता के साथ नेटवर्किंग को मजबूती देने का काम शुरू कर दिया था। हमने आशा, आंगनवाड़ी और कुडुंबश्री कार्यकर्ता, जूनियर हेल्थ इंस्पेक्टर, जूनियर पब्लिक हेल्थ नर्स, वार्ड मेंबर्स और आवासीय कॉलोनियों के संगठनों के बीच सामंजस्य को सुनिश्चित किया।

केरल में गरीबी उन्मूलन मिशन के लिए महिला सशक्तिकरण का काम करने वाली महिलाएं कुडुंबश्री हैं। आशा और कुडुंबश्री कार्यकर्ताओं ने एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग सुविधाओं की खामियों को अच्छी तरह से दूर किया। उन्होंने उनका पीछा किया जो स्क्रीनिंग सुविधाओं से बचकर जा रहे थे। वे उनकी पहचान कर सूची भी बना रही थीं जो कोरोना संक्रमण के संपर्क में आए थे। स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा कि हमने कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों के लिए एक रूट मैप भी बनाया था। इसके अलावा 6,000 डॉक्टर और 9,000 नर्स, केरल पब्लिक हेल्थ सिस्मट के 15,000 स्वास्थ्य कार्यकर्ता जिसमें आशा कार्यकर्ता, कुडुंबश्री कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, अस्पताल विकास समिति के सदस्य, निजी कार्यकर्ता और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता शामिल थे।

आखिरी व्यक्ति तक पहुंच

ऐसे क्षेत्र जहां स्वास्थ्य सुविधाएं और कल्याण के फायदों तक लोगों की पहुंच मुश्किल हो, साथ ही जहां सड़कें बेहद खराब हों, दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र हों और बुनियादी संरचनाओं का पूरी तरह अभाव हो, वहां सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों की सेवा विशेष अहमियत वाली हो जाती है। ऐसा ही एक क्षेत्र है उड़ीसा के पश्चिमी भाग में बसा नौपाडा। उड़ीसा का यह जिला लोगों के पलायन को लेकर कुख्यात है। अनाधिकारिक अनुमान प्रदर्शित करते हैं कि 2018 में करीब 1,28,000 लोग वित्तीय संसाधनों और काम के अवसरों के अभाव में पलायन करके राज्य से बाहर गए। जिले के ही मुंडोसिल गांव में आशा कार्यकर्ता कमला टांडी कोरोनावायरस से लड़ने वाली एक योद्दा हैं। जब उन्हें कोरोनावायरस के विभिन्न राज्यों में फैलने का पता चला तो वे कुछ पल के लिए सिहर गईं। हाल ही में उन्होंने सुना था कि जनवरी में ही 15 युवक मुंबई से गांव लौटे हैं। टांडी को डर हुआ कि कहीं इन लोगों में कोरोना विषाणु प्रसार की बीमारी तो नहीं! वह आशा कार्यकर्ता सुभाषिनी पन के साथ युवाओं के घर गई। जिनमें 13 युवक मुंडोसिल गांव के थे जबकि दो पास के ही छोटे से गांव चचराभाटा के थे।

टांडी ने याद कर कहा कि उन्होंने सभी के नाम और उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा और उसे दर्ज किया था, एक लड़के में सर्दी और जुकाम के लक्षण थे और सभी को घर के भीतर ही रहने की सलाह दी गई थी। इसके बाद उनका अगला कदम गांव के सरपंच और खरियर ब्लॉक स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सूचित करना था। हालांकि युवाओं ने दी गई सलाहों पर अमल नहीं किया। टांडी मंडोसिल गांव में करीब 30 वर्षों से काम करती हैं, उन्होंने बताया कि हमने कई बार युवाओं को अलग-अलग रहने को कहा लेकिन उनके अभिभावकों ने उनके हमारे साथ बदसलूकी की और कहा कि उनके बच्चों का स्वास्थ्य एकदम ठीक है। हमने इसे दिल पर नहीं लिया। सीएचसी के डॉक्टर्स ने हमें प्रशिक्षण दिया है कि ऐसी स्थितियों में हमें कैसे शांत रहना चाहिए। पास के ही बादी गांव में आशा कार्यकर्ता जानकी साहू भी कोविड-19 से लड़ाई लड़ रही हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दरमियान कुछ मजदूर गांव लौटे थे और डॉक्टर्स ने हमें उन पर कड़ी निगरानी रखने को कहा था। हालांकि युवाओं ने खुद ही अपने आप को आइसोलेट कर रखा था। जानकी ने बताया कि गांव के लोग खुद ही कोरोनावायरस के खिलाफ बचाव में कड़ाई से नियमों का पालन कर रहे हैं। यहां तक कि कुछ लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग, साबुन से हाथ धोना और नहाने जैसी आदतें बन गई हैं। जानकी ने बताया कि गांव में दिखाई दे रहा यह बदलाव टीवी पर दिखाए जा रहे प्रचार और हमारे मोटिवेशन का नतीजा है। हालांकि, वह कहती हैं कि इस बीमारी के खिलाफ कुछ मानसिक परेशानियां भी दिखाई दे रही हैं। लोगों ने गांव के तालाबों और नहरों में नहाना बंद कर दिया है क्योंकि उन्हें भय है कि इससे उन्हें भी कोरोनावायरस हो जाएगा।


इन सावधानियों के साथ मध्य प्रदेश के पन्ना जिला प्रशासन ने आशा कार्यकर्ताओं को चौकन्ना बने रहने के लिए कहा था। भूख, गरीबी और हालिया सूखे के कारण बहुत से परिवारों ने जिले से दूसरे शहरों को पलायन किया था। फैक्ट्रियों के बंद होने से वे वापस गांवों को लौट आए। जारहोबा गांव में आशा कार्यकर्ता रेखा शिवरेतो ने कहा कि उन्होंने गांव में दिन में दो बार दौरा करके रीयल टाइम आंकड़े जुटाए। परिवार के सभी सदस्यों को मास्क न होने अथवा सेनिटाइजर्स की अनुपस्थिति में चेहरे पर मोटा तौलिया बांधने और हाथों को साबुन से लगातार धुलने की सलाह भी दी।


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