सुअर पालन के तौर तरीकों में बदलाव से दुनिया में फैला यह जानलेवा बैक्टीरिया

20वीं सदी में सूअर पालन के तौर तरीकों में हुए बदलावों ने दवा प्रतिरोधी साल्मोनेला को दुनिया भर में फैलने में मदद की

By Lalit Maurya

On: Tuesday 14 May 2024
 
साल्मोनेला आमतौर पर खाद्य श्रृंखला के माध्यम से फैलता है। सूअर का मांस (पोर्क) इसके संक्रमण का एक प्रमुख स्रोत है; फोटो: आईस्टॉक

क्या आप जानते हैं कि वो कौन सी वजहें थी जिसकी वजह से दवा प्रतिरोधी साल्मोनेला बैक्टीरिया पूरी दुनिया में फैल गया। इसको लेकर की गई नई रिसर्च से पता चला है कि समय के साथ 20वीं सदी में सूअर पालन के तौर तरीकों में हुए बदलावों से दवा प्रतिरोधी साल्मोनेला बैक्टीरिया दुनिया भर में फैल गया।

इसके लिए मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोप जिम्मेवार थे। गौरतलब है कि साल्मोनेला एंटरिका एक ऐसा बैक्टीरिया है जो भोजन, पानी और प्रसंस्करण सुविधाओं को दूषित करके सालाना 10.8 करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से हर साल 291,000 लोगों को असमय मृत्यु हो रही है।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक डायरिया संबंधी बीमारियों के चार प्रमुख कारणों में से साल्मोनेला एक है। इतना ही नहीं साल्मोनेला उन सूक्ष्मजीवों में से एक है जिसमें कुछ दवा प्रतिरोधी सीरोटाइप उभरे हैं, जो खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर रहे हैं।

दुनिया भर में खाद्य पदार्थं से फैलती बीमारियां एक बड़ी समस्या बन चुकी हैं, जो सालाना दस में से एक लोगों को प्रभावित कर रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक इसकी वजह से स्वस्थ जीवन के औसतन साढ़े तीन करोड़ साल नष्ट हो रहे हैं। यह बीमारियां विशेष तौर पर छोटे बच्चों के लिए गंभीर हो सकती है। इसी तरह डायरिया खराब खान-पान और दूषित भोजन के कारण होने वाले सबसे आम बीमारी है।

इसकी वजह से हर साल 55 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं, जिनमें पांच वर्ष से कम उम्र के 22 करोड़ बच्चे भी शामिल हैं। चूंकि साल्मोनेला दुनिया भर में डायरिया संबंधी बीमारियों के चार प्रमुख कारणों में से एक है।

साल्मोनेला आमतौर पर खाद्य श्रृंखला के माध्यम से फैलता है। सूअर का मांस (पोर्क) इसके संक्रमण का एक प्रमुख स्रोत है। अनुमान है कि यूरोप में साल्मोनेलोसिस के करीब 31.1 फीसदी मामलों के लिए सूअर और उनका मांस जिम्मेवार है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक साल्मोनेला सूअरों से मनुष्यों में फैल सकता है, जिससे गंभीर और घातक बीमारी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने अपने इस नए अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है गहन कृषि और फैलते वैश्विक व्यापार ने साल्मोनेला और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को कैसे प्रभावित किया है। यह अध्ययन वारविक विश्वविद्यालय के नेतृत्व में चीन, अमेरिका, जर्मनी और यूके के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित हुए हैं।

यह बैक्टीरिया आंतों को प्रभावित करता है। इसकी चलते रोगी के शरीर में उलटी और डायरिया की वजह से पानी की कमी हो जाती है। यह बैक्टीरिया संक्रमित जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है। वहीं इंसानों में इसके फैलने की वजह कच्चा मांस, अंडा, बीफ, पोर्क या उससे बने प्रोडक्ट्स होते हैं।

कैसे दुनिया भर में फैला दवा प्रतिरोधी साल्मोनेला बैक्टीरिया

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक पिछली शताब्दी में खेती के गहन तरीकों ने साल्मोनेला बैक्टीरिया को दुनिया भर में फैलने की अनुमति दी। इसके साथ ही, एंटीबायोटिक दवाओं के बेतहाशा उपयोग के चलते यह बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बन गए हैं, जो दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एंटरोबेस सिस्टम का उपयोग करके बैक्टीरिया के 362,931 उपभेदों में डीएनए का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण से साल्मोनेला की नौ समूहों की पहचान की गई जो आमतौर पर सूअरों में पाई जाती हैं।

वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया के प्रसार को बीसवीं सदी की दो ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़ा है। इसमें पहली घटना 20वीं सदी की शुरूआत में व्यवसायिक तौर पर सघन रूप से सुअर पालन का उदय थी। वहीं दूसरी घटना साठ के दशक के बाद एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर शुरू हुए उपयोग से जुड़ी थी। रिसर्च के मुताबिक इस दौरान यूरोप और अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैक्टीरिया को फैलने में प्रमुख रूप से योगदान दिया।

इस बारे में वारविक मेडिकल स्कूल और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर साशा ओट ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे वैश्विक पोर्क व्यापार ने साल्मोनेला के विकास को प्रभावित किया है। इसकी वजह से दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए सीधे तौर पर खतरा पैदा हो गया है।"

शोधकर्ताओं के मुताबिक इनमें से साल्मोनेला के अधिकांश जीनोम विकसित देशों से लिए गए थे। ऐसे में विकासशील देशों, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका से जुड़े बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं। भविष्य में इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है। इससे साल्मोनेला के विकास के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध होगी साथ ही इस बैक्टीरिया के कारण होने वाली बीमारियों को रोकने में भी मदद मिलेगी।

डॉक्टर लौरा बैक्सटर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “यह शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि इंसानी गतिविधियां साल्मोनेला जैसे रोगजनकों के विकास और प्रसार को कैसे प्रभावित करती हैं।“ उनके मुताबिक साल्मोनेला कृषि के तौर तरीकों में हुए बदलावों से प्रभावित होने वाला एकमात्र रोगजनक नहीं है। ऐसे में अन्य रोगजनकों के विकास की भी जांच महत्वपूर्ण है।

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