एंटी-मलेरिया दवा: दुनिया को दवा के मामले में आत्मनिर्भर होना ही होगा

ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी एक देश के संकट में आने से पूरी दुनिया संकटग्रस्त हो जाए

By Kundan Pandey

On: Wednesday 08 April 2020
 
Photo: Needpix

7 अप्रैल, 2020 को विशेषज्ञों ने कहा कि नोवेल कोरोनावायरस रोग (कोविड ​​-19) महामारी ने दवा के लिए देशों के बीच परस्पर निर्भरता को उजागर कर दिया है, जो एक शुभ संकेत नहीं है। विशेषज्ञों की ये राय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा एंटी-मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर 'बदले' की धमकी के बाद आई है। इस धमकी के बाद, भारत ने त्वरित निर्णय लेते हुए दवा आपूर्ति शुरू कर दी।

मलेरिया के इलाज में काम आने वाली ये दवा आजकल सुर्खियों में है। कोविड-19 के इलाज के दौरान, बहुत कम सैंपल में इसके इस्तेमाल ने आशाजनक, लेकिन कोई निर्णायक परिणाम नहीं दिए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने दवा के 29 मिलियन डोज का स्टॉक जमा कर लिया है।

भारत सरकार ने कुछ दिन पहले इस दवा के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध से पहले, 3 मार्च को भारत ने 26 सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों (एपीआई) और इसे निर्मित दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने की भी घोषणा की थी। हालांकि, ट्रम्प के बयान के बाद सरकार ने प्रतिबंध हटा दिया है।

केंद्रीय विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, "महामारी के मानवीय पहलुओं को देखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों को उचित मात्रा में पेरासिटामोल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का लाइसेंस देगा।"

उन्होंने कहा, “हम वैसे कुछ राष्ट्रों को इन आवश्यक दवाओं की आपूर्ति भी करेंगे, जो इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हम इस संबंध में किसी भी तरह के अटकलों या इस मामले का राजनीतिकरण करने के प्रयास की निंदा करते है। ”

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन दिनेश दुआ ने मीडिया को बताया कि इनमें से कुछ प्रतिबंधित एपीआई और दवाइयां, जिनके निर्यात पर भारत ने प्रतिबंध लगाया था, का यूरोप और अमेरिका में व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा था।  

उन्होंने दावा किया कि भारतीय फॉर्म्यूला पर निर्भरता के कारण यूरोप अक्सर भारत से दवाइयां मांगता रहा है। उनका दावा है कि यूरोप के जेनेरिक दवा बाजार का लगभग 26 प्रतिशत हिस्सा भारत के नियंत्रण में है और ये महाद्वीप इस तरह के निर्यात प्रतिबंध से घबरा गया है।

इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक अशोक मदान ने कहा कि जिस तरह भारत एपीआई या थोक दवाओं के लिए चीन पर निर्भर था, दूसरे देश भी चीन और भारत पर निर्भर थे।  

उन्होंने कहा कि अमेरिका 72 प्रतिशत एपीआई के लिए चीन पर निर्भर था, जबकि भारत अपने पड़ोसी देश से लगभग 70 प्रतिशत एपीआई आयात करता था। इसी तरह अमेरिका फॉर्म्यूलेशन के लिए भारत पर निर्भर था और अपनी कुल दवाओं का लगभग 40 प्रतिशत भारत से आयात करता था।

मदान ने कहा कि यूरोपीय संघ, भारत और चीन पर निर्भर था। यूरोपीय देश अपनी 26 फीसदी जेनेरिक दवाओं के लिए भारत पर निर्भर थे। कोविड-19 संकट ने दुनिया भर के सभी देशों की कमजोर स्थिति को सामने ला दिया है, क्योंकि वे सभी दवा के लिए परस्पर दूसरे देशों पर निर्भर थे।

मदान कहते हैं, “सभी देशों को वैश्विक मूल्य श्रृंखला की अवधारणा से बाहर आना होगा और आत्मनिर्भर बनना होगा। हालांकि, देशों के बीच व्यापार होते रहना चाहिए। लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि किसी एक देश के संकट में आने से पूरी दुनिया संकटग्रस्त हो जाए।“

Subscribe to our daily hindi newsletter