ब्रिटेन का संक्रमित रक्त घोटाला : 50 साल बाद रिपोर्ट में आया भयावह सच

पूर्व न्यायाधीश ब्रायन लैंगस्टाफ के नेतृत्व में संक्रामक रक्त जांच में डॉक्टरों और तब से अब तक कि सरकारों की विफलताओं को उजागर किया है। इसके कारण ब्रिटेन में दशकों तक उपचार संबंधी आपदाए हुईं

By Anil Ashwani Sharma

On: Friday 24 May 2024
 
लाल रक्त कोशिकाएं, फोटो साभार: आईस्टॉक

पचास साल बाद एक जांच रिपोर्ट ने ब्रिटेन की कुख्यात चिकित्सा त्रासदी पर प्रकाश डाला है। ब्रिटेन में 1970 और 1990 के दशक के बीच, अमेरिका से आयातित दूषित रक्त और रक्त उत्पाद प्राप्त करने के बाद 30,000 से अधिक लोग एचआईवी, हेपेटाइटिस सी और हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हो गए थे। इस रिपोर्ट ने ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के इतिहास में “सबसे खराब उपचार आपदा” बना दिया है। जांचकर्ताओं की टीम के अध्यक्ष ब्रायन लैंगस्टाफ ने इस रिपोर्ट की घोषणा करते हुए कहा कि यह आपदा कोई दुर्घटना नहीं थी। सत्ता में बैठे लोगों, डॉक्टरों, रक्त सेवाओं और सरकारों ने स्वास्थ्य देखभाल और उपचार के मामलों में भारी मूर्खता की। यही नहीं उन्होंने रोगी की सुरक्षा को प्राथमिकता पर नहीं रखा।

छह साल की लंबी जांच के बाद यह  रिपोर्ट जारी की गई है। यह एक सुनियोजित साजिश की तुलना में एक ऐसी स्थिति को उजागर करती है जो अपने निहितार्थों में अधिक सूक्ष्म, अधिक व्यापक और अधिक भयावह था। यह घटना अपनी इज्जत बचाने और खर्च बचाने के लिए किया गया था। आपदा को सरकार की रक्षात्मकता नीति के कारण और दशकों से इसकी सार्वजनिक जांच कराने से इनकार के कारण और अधिक विनाशकारी बना दिया गया था।

रिपोर्ट सरकारी विफलताओं की सूची में पहली बार, जीवित बचे लोगों और मरने वालों के परिवारों के विनाशकारी हृदयविदारक और दुःख की पुष्टि करती है। ब्रायन लैंगस्टाफ कहते हैं कि इतनी सारी मौतें और संक्रमण क्यों हुए, इसका जवाब अब तक किसी के पास नहीं था।

यह सार्वजनिक जांच यूके में की जाने वाली अपनी तरह की सबसे बड़ी जांच थी। यह 2017 में उन परिस्थितियों की जांच करने के लिए शुरू की गई थी जिनमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा इलाज किए गए 1970 से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को संक्रमित रक्त और संक्रमित रक्त उत्पाद दिए गए थे। पिछले दशकों में संक्रमित रक्त प्राप्त करने के कारण कम से कम 3,000 लोगों की मृत्यु हो गई है। हीमोफीलिया सोसायटी का अनुमान है कि जांच शुरू होने के बाद से 680 अन्य लोगों की मौत हो चुकी है। एक अनुमान के अनुसार यू.के. में अभी भी हर चार दिन में एक संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। दूषित रक्त से जुड़ी मौतें और संक्रमण ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांस, आयरलैंड, इटली, जापान, पुर्तगाल और अमेरिका में भी दर्ज किए गए।

पहले प्रकाशित एक अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्त घोटाले ने व्यक्तिगत, सामूहिक और प्रणालीगत स्तर पर की गई विफलताओं को उजागर किया।

विश्व  स्वास्थ्य संगठन ने 1974 और 1975 में हेपेटाइटिस की उच्च दर वाले देशों से रक्त उत्पादों के आयात के खिलाफ चेतावनी दी थी, जैसे कि 1983 में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला सेवा के यू.एस. स्पेंस गैलब्रेथ ने स्वास्थ्य विभाग को एक पत्र भेजा था, जिसमें आग्रह किया गया था कि सभी रक्त 1978 के बाद यू.एस. में दान किए गए रक्त से बने उत्पादों को तब तक उपयोग से हटा दिया जाना चाहिए जब तक कि इन उत्पादों द्वारा एड्स संचरण के जोखिम को स्पष्ट नहीं किया जाता है।

जांच से पता चला कि अमेरिका से आयातित दूषित रक्त प्लाज्मा उत्पादों का उपयोग हीमोफिलिया से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए किया गया था। जनवरी 1982 में प्रमुख विशेषज्ञ आर्थर ब्लूम ने हीमोफीलियाक केंद्रों को एक चेतावनी भरा पत्र लिखा, जिसमें सुझाव दिया गया कि नए उपचारों की संक्रामकता का परीक्षण करने का सबसे स्पष्ट तरीका उन रोगियों पर था जो पहले बड़े-पूल सांद्रता के संपर्क में नहीं आए थे। जिनमें बच्चे भी शामिल थे। लैंगस्टाफ हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों के लिए एक विशेषज्ञ स्कूल, हैम्पशायर के ट्रेओलर कॉलेज में होने वाले कार्यक्रमों का विवरण देते हैं। बच्चों को “अनुसंधान की वस्तु” के रूप में इस्तेमाल किया गया और “सुरक्षित उपचार चुनने के बजाय अनावश्यक रूप से सांद्रण के साथ इलाज किया गया।” बीबीसी की एक जांच में पाया गया कि 1974 और 1987 के बीच ट्रेलोर में भाग लेने वाले 122 विद्यार्थियों में से 75 की एचआईवी और हेपेटाइटिस सी संक्रमण से मृत्यु हो गई। जांच में यह भी पाया गया कि ब्लूम जोखिमों से अवगत थे और उन्होंने आंतरिक एनएचएस दिशानिर्देशों को खारिज कर दिया था जो बच्चों पर फैक्टर VIII उपचार के परीक्षण को हतोत्साहित करते थे।

क्लिनिकल परीक्षण इस सबूत के बावजूद जारी रहे कि फैक्टर VIII रक्त सांद्रण प्राप्त करने वाले लोगों को एचआईवी संक्रमण का खतरा था। उनमें से अधिकांश की बाद में एड्स-संबंधी बीमारी से मृत्यु हो गई।

1970 के दशक की शुरुआत में रोगियों का इलाज करने वाले हीमोफिलिया विशेषज्ञ एडवर्ड टुडेनहैम ने स्काई न्यूज को बताया, “निश्चित रूप से, हमें पता चलता है कि इसके कारण बहुत से लोग संक्रमित हुए और परिणामस्वरूप बहुत से लोग मर गए। उस समय जोखिम भरे लाभ के हमारे संतुलन के बारे में गंभीर रूप से गलत जानकारी दी गई थी।” जांच का अनुमान है कि यूके में रक्तस्राव विकारों से पीड़ित 4 से 6,000 लोगों में से लगभग 1,250 लोगों में एचआईवी और हेपेटाइटिस सी दोनों विकसित हुए। उनमें से 380 बच्चे थे। इनमें से तीन-चौथाई व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है। जिन लोगों को सर्जरी के दौरान रक्त चढ़ाया गया, उनमें भी संक्रमण विकसित हो गया। जांच का अनुमान है कि उनमें से 80 से 100 एचआईवी से संक्रमित थे और लगभग 27,000 हेपेटाइटिस सी से संक्रमित थे।

रिपोर्टों से पता चला है कि दो दशकों में हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई और 1990 के दशक तक लगभग 3,000 लोगों की मृत्यु हो गई थी। कई अवसरों पर, सरकारी अधिकारियों ने व्यावसायिक रूप से उत्पादित रक्त उत्पादों के आयात को निलंबित नहीं करने का निर्णय लिया। उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि लोगों को सर्वोत्तम उपलब्ध उपचार मिले और प्रौद्योगिकी उपलब्ध होने पर रक्तदान का परीक्षण किया जाए। जांच में पाया गया कि दोनों दावे झूठे थे।

छह साल तक चली जांच में सरकार, एनएचएस, दवा कंपनियों और राष्ट्रीय रक्त सेवाओं के साक्ष्यों की समीक्षा की गई। इसमें प्रभावित लोगों और परिवारों के 4,000 से अधिक मौखिक और लिखित बयानों को भी ध्यान में रखा गया। जांच में पता चलता है कि मरीज की सुरक्षा की अनदेखी की गई, निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी और लंबी थी, लोगों की स्वायत्तता और निजता की उपेक्षा की गई, सरकारें और एनएचएस अधिकारी रक्षात्मक रुख अपनाया हुआ था, पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी ने उन लोगों के साथ अन्याय और बढ़ गया जिनका जीवन संक्रमण से नष्ट हो गया था।

अमेरिकी आयात के लिए लाइसेंस 1973 और उसके बाद के दशकों में दिए गए थे, इस सबूत के बावजूद कि व्यावसायिक रूप से निर्मित रक्त उत्पाद एनएचएस कॉन्संट्रेट या क्रायोप्रेसीपिटेट की तुलना में कम सुरक्षित थे। रोगी की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई।  

इसके अलावा रिपोर्ट में पाया कि व्यक्तिगत रोगी की स्वायत्तता के लिए सम्मान की अत्यधिक अनैतिक कमी थी। चिकित्सक, लोगों को संक्रमण के खतरों, वैकल्पिक उपचारों की उपलब्धता या एचआईवी या हेपेटाइटिस सी के लिए परीक्षण किए जाने के बारे में बताने में विफल रहे। रोगियों को संक्रमण के बारे में सूचित करने में कभी-कभी वर्षों तक देरी होती थी। रिपोर्ट में पाया कि सरकार की कार्रवाई और निष्क्रियता पर लीपापोती कर दी गई। साथ ही यह भी पाया गया कि दस्तावेजों को जानबूझकर नष्ट करना, सरकार ने दशकों तक मुआवजा देने से भी इनकार किया और सार्वजनिक जांच कराने से इनकार कर रक्षात्मक रुख अपनाए रखा।

यह जांच रिपोर्ट मरीज के दृष्टिकोण से विश्वास और चिकित्सा नैतिकता के उल्लंघन के परिणामों का वर्णन करती है। साक्ष्यों से पता चला कि कैसे लोगों के व्यक्तिगत जीवन पर हेपेटाइटिस बी, सी और एचआईवी के संक्रमण का व्यापक प्रभाव पड़ा है और स्वास्थ्य देखभाल में विश्वास की हानि। हीमोफीलिया सोसाइटी के अध्यक्ष क्लाइव स्मिथ ने संवाददाताओं से कहा कि यह घोटाला उस भरोसे को चुनौती देता है जो हम लोगों पर हमारी देखभाल करने, अपना सर्वश्रेष्ठ करने और हमारी रक्षा करने के लिए रख जाते हैं।

डरहम विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य देखभाल कानून की प्रोफेसर एम्मा केव कहती हैं कि जब कुछ गलत होता है और गलतियां की जाती हैं तो न्याय के लिए निवारण की आवश्यकता होती है और निवारण कई रूप लेता है। एक रूप इस बात का स्पष्टीकरण है कि क्या हुआ और क्यों हुआ। प्रभावितों ने भयानक अन्याय के निवारण और मान्यता के लिए अभियान चलाया है और जांच उन्हें तत्काल मान्यता और पुष्टि प्रदान करती है।

यूके के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक ने 20 मई 2024 को कहा कि सरकार और सार्वजनिक निकायों ने लोगों को सबसे कष्टदायक और विनाशकारी तरीके से विफल कर दिया है और उन्होंने इसे और पिछली सरकारों की ओर से पूर्ण माफी की पेशकश की। सरकार ने प्रभावित लोगों को पूर्ण मुआवजे के अलावा, जीवित संक्रमित लोगों और मरने वालों के लिए 2,10,000 पौंड की अंतरिम भुगतान की घोषणा की।

आपराधिक अभियोजन पर सवाल अभी बने हुए हैं। जांच में नागरिक या आपराधिक दायित्व निर्धारित करने की शक्ति नहीं है। फ्रांस में तीन मंत्रियों पर हत्या का आरोप लगाया गया। बाद में दो को बरी कर दिया गया और एक अधिकारी को चार साल की जेल की सजा मिली। जापान ने 2000 में एक स्वास्थ्य अधिकारी को पेशेवर लापरवाही का दोषी पाया। इसके अलावा, जो लोग सत्तर और अस्सी के दशक में अपनी निष्क्रियता के लिए उत्तरदायी पाए गए थे, वे अब मर चुके हैं। हालांकि जांच में गलत काम की पुष्टि हुई है और क्या यह गलत काम आपराधिक मुकदमा चलाने की सीमा तक पहुंचता है, यह देखना अभी बाकी है।

लैंगस्टाफ ने सरकार को अपने निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देने के लिए एक वर्ष का समय दिया है, यह देखते हुए कि जांच अभी खत्म नहीं हुई है। इसकी सिफारिशों में तत्काल मुआवजा, सार्वजनिक स्मारक और चिकित्सा, सरकार और सिविल सेवाओं में शिक्षा को शामिल करना शामिल है ताकि त्रासदी दोबारा न हो। रक्त उत्पादों का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब आवश्यक हो और ज्ञात वायरस के लिए नियमित रूप से जांच की जानी चाहिए। जांच में कहा गया है कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जो उत्पाद हम अभी उपयोग करते हैं वे यथासंभव सुरक्षित हैं।

संक्रमित रक्त जांच की सिफारिशों में प्रमुख है कि एक अच्छा वातावरण तैयार करना, जहां रोगी की आवाज सुनी जाए। डॉ. खैर कहती हैं, “हमें मरीजों की राय और चिंताओं से जुड़ना होगा और उन्हें सुनना होगा और उन पर कार्रवाई करनी होगी। हम इससे सीख सकते हैं और हमें सीखना भी चाहिए, हम जो भी देखभाल करते हैं उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए।”

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