कोरोनावायरस से 38 साल के युवक की क्यों हुई मौत, कौन जिम्मेवार?
कतर से लौटे बिहार के एक युवक की मौत के बाद पता चला कि उसे कोरोनावायरस संक्रमण का शिकार था
On: Monday 23 March 2020
कतर से लौटे एक 38 वर्षीय युवक की मौत और उसका शव परिजनों को सौंप देने के घंटों बाद उसे कोरोनावायरस से संक्रमित होने की पुष्टि ने बिहार में कोरोनावायरस से निबटने की व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।
मृतक मूल रूप से मुंगेर जिले का रहने वाला था। शव को दफना देने के बाद 20 घंटे से भी ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन उसके परिजनों की जांच के लिए सैंपल नहीं लिया गया है।
युवक 12 मार्च की रात कतर से दिल्ली और फिर दिल्ली से मुंगेर लौटा था। वह घर पर 3-4 दिन तक था। ऐसे में संभव है कि कोरानावायरस का संक्रमण मृतक के परिजनों में भी हो गया हो।
इस संबंध में मुंगेर के डीएम राजेश मीना ने डाउन टू अर्थ को बताया, “कोरोनावायरस की जांच के लिए सैंपल लेने वाली टीम भागलपुर से आएगी। भागलपुर की टीम ही सैंपल लेकर जांच के लिए भेजेगी। मृतक के परिजनों की मेडिकल हिस्ट्री लेने के लिए एक टीम भेजी गई है और हमलोगों ने उन सभी लोगों की शिनाख्त कर ली है, जिनसे मृतक ने मुलाकात की थी।”
इधर, पूरे मामले को लेकर अस्पताल के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं।
नियम के अनुसार, कोरोना से प्रभावित देश से लौटने वालों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए और 14 दिनों तक आइसोलेशन में रखा जानी चाहिए। लेकिन, इस युवक के मामले में ऐसा नहीं हुआ। बल्कि जब उनका इलाज पटना एम्स में चल रहा था, तो वहां के डॉक्टरों ने समय रहते कोरोना के संक्रमण की जांच करने के लिए सैंपल भी नहीं लिया। हैरानी की बात ये भी है कि एम्स में भर्ती होने से पहले वह मुंगेर के सदर अस्तपाल में भी गया था और पटना के पीएमसीएच में भी इलाजरत था, लेकिन कोरोना की जांच के लिए किसी ने भी सैंपल नहीं लिया।
मृतक के परिजनों ने बताया, “किडनी में तकलीफ की शिकायत पर कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद 19 मार्च को सैफ को पटना एम्स में भर्ती कराया गया था। 21 मार्च की दोपहर युवक की मौत हो गई, तो अस्पताल प्रबंधन ने डिस्चार्ज पेपर देकर कहा कि बॉडी ले जाएं। जब हमलोगों ने कहा कि बॉडी ले जाने से पहले वे कोरोनावायरस जांच की रिपोर्ट दे दें, क्योंकि अगर कोरोनावायरस होगा, तो वे लोग भी चपेट में आ जाएंगे।”
उनके परिजनों ने आगे कहा, “...इस पर डॉक्टरों ने कहा हमलोगों से कहा कि हमलोग 6-7 दिन से मरीज के साथ थे। अगर उसे कोरोना हुआ रहता तो हमलोग जिंदा थोड़े रहते।”
परिजनों के इन आरोपों को लेकर डाउन टू अर्थ ने पटना एम्स के प्रबंध निदेशक और सुपरिंटेंडेंट को फोन किया गया, लेकिन वे मीटिंग में व्यस्त थे। (उनसे बात होने के बाद रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा।)
गौरतलब हो कि बिहार में कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच पटना स्थित राजेंद्र मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएमआरआई) में होती है जबकि बिहार भर में महज चार मेडिकल कॉलेजों में ही सैंपल लेने की व्यवस्था है। आरएमआरआई के एक विज्ञानी ने कहा, “हमारे यहां एक साथ 100 सैंपलों की जांच की जा सकती है और एक दिन में ही रिजल्ट मिल जाता है।”
लेकिन, मृतक के मामले में रिजल्ट आने में लगभग 24 घंटे कैसे लग गए हैं, इस सवाल पर आरएमआरआई के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “हमारे पास सैंपल देर से आया था। रिजल्ट आते ही हमने मुख्य सचिव, डीएम और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च को इसकी जानकारी दी।”
बिहार में अब तक कुल 143 सैंपल को जांच के लिए भेजा जा चुका है। इनमें से 96 सैंपल की रिपोर्ट नेगेटिव है। अन्य सैंपल की रिपोर्ट आनी बाकी है। कोरोना से संक्रमित एक महिला का इलाज चल रहा है।