सरकारी सर्वे में कोरोनावायरस से लड़ने की तैयारियों की खुली पोल

पीपीई की कमी, वेंटिलेटर और समग्र अस्पताल की तैयारी प्रमुख चिंताओं के रूप में सर्वे में दर्ज की गई

By Banjot Kaur

On: Saturday 04 April 2020
 

केंद्र सरकार ने 410 भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों के बीच किए गए ऑनलाइन सर्वे में यह उजागर किया है कि भारत में नोवेल कोरोनावायरस (कोविड-19) से लड़ने के लिए स्वास्थ्य संरचनाओं की जबरदस्त कमी है।

यह सर्वे भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के उस दावे का खंडन करता है जिसमें कहा गया था कि भारत में पर्याप्त बेड, वेंटिलेटर और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) हैं।

सर्वे में 71 फीसदी जवाब देने वालों ने कहा है कि उनके क्षेत्र में पर्याप्त वेंटिलेटर्स नहीं हैं। सर्वे में भागीदारी करने वाले कुल 266 जवाबकर्ताओं ने पर्याप्त वेंटिलेटर होने के सवाल पर 100 असहमति और 91 पूर्ण रूप से असहमति जाहिर की है। जबकि 23 लोग उदासीन रहे और 9 जवाबकर्ता ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि उनके यहां पर्याप्त वेंटिलेटर्स हैं। यह सर्वे 25 से 30 मार्च, 2020 को  जिलाधिकारियों और भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (2014-2018 बैच) के बीच किया गया। इसमें 266 जवाब हासिल हुए।  

जिलों और उप-जिलों में 66 फीसदी अधिकारी पर्याप्त आईसीयू बेड होने को लेकर या तो असहमत या पूर्ण असहमत हैं। करीब 50 फीसदी अधिकारियों ने अपने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पीपीई की पर्याप्त उपलब्धता न होने की बात कही। सर्वे में कहा गया है कि कई राज्यों के तमाम जिलों में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पीपीई की तरह मास्क और दास्ताने की कमी चिंता का विषय है।

80 फीसदी जवाबकर्ता सहमत हैं कि स्थानीय प्रशासन के पास एक काम करने का तंत्र है जो पहचान, जांच और संक्रमित मरीजों को क्वारंटाइन (एकांत) कर सकता है। हालांकि, सर्वे में राज्य स्तर पर जांच करने की क्षमता के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस बारे में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने कहा है कि उपयोगिता का राष्ट्रीय औसत 35 फीसदी है। कुछ जिलों ने यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया है कि उनके यहां जांच किटों की कमी है।

“द कोविड-19 प्रीपेयर्डनेस सर्वे” ने यह पाया है कि जिलों और उपजिलों के अस्पतालों में तैयारी को बढ़ाने की आवश्यकता है। 60 फीसदी जवाबकर्ता अधिकारियों ने यह कहा है कि अस्पताल उचित तरीके से तैयार नहीं है। जवाब देने वालों में केवल आधे अधिकारी हैं जो इस बात से सहमत हैं कि उनके यहां पर्याप्त आइसोलेशन बेड मौजूद हैं।  

सर्वे में कहा गया है, “देश के अधिकांश जिलों ने स्वास्थ्य कर्मियों, उपकरणों और सुविधाओं की कमी जैसे आईसीयू -बेड्स, वेंटिलेटर्स, एंबुलेंस, ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी पर प्रकाश डाला है।” वहीं सर्वे में यह भी कहा गया है कि उपजिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों ने अपनी तत्परता और उत्साह दिखाया है, खासतौर से उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में ऐसा दिखा है। हालांकि यह महसूस किया गया है कि जिलास्तर पर स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले वर्कर्स में कोविड-19 के लिए क्षमताओं के निर्माण प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

राज्यों की स्थिति

बिहार के सात जिलों के सर्वे में पाया गया कि वहां चिकित्सा उपकरणों की कमी प्रमुख चिंता का विषय है। कुछ ने मास्क न होने की भी रिपोर्ट की है जबकि अन्य ने बुनियादी चिकित्सा संसाधनों जैसे सेनिटाइजर्स तक की कमी बताई है।

दिल्ली के अधिकारी ने कहा है कि संदिग्धों की जांच को बढ़ाए जाने की जरूरत है। इसके लिए बेहतर उपकरणों की आवश्यकता है। गुजरात ने राज्य के भीतर बड़ी संख्या में जारी पलायन और पीपीई की कमी को राज्य के भीतर के लोगों लिए खतरा बताया है।  

असम के सात जिलों के अधिकारियों ने कहा है कि लोग लॉकडाउन के नियमों का उचित तौर पर पालन नहीं कर रहे हैं। साथ ही पीपीई उपकरणों की अनुपलब्धता के कारण चिकित्सक और चिकित्साकर्मी में संक्रमण फैलाव होने का संदेह भी है। मिजोरम जैसे राज्य में पलायन के कारण लोगों का आना-जाना भी संक्रमण को बढ़ा सकता है।  

कुछ परीक्षण किट और लोगों की आवाजाही से हिमाचल प्रदेश अस्त-व्यस्त है। चंबा के अधिकारी ने कहा, “मेडिकल परीक्षण किट और अन्य बुनियादी ढांचे की कमी के कारण प्रभावी परीक्षण के बाद ट्रैकिंग या ट्रेसिंग नहीं हो रही है।”

यही चिंता हरियाणा के झज्जर जिले के अधिकारी ने भी जाहिर की। इस राज्य के पांच सर्वेक्षण वाले जिलों की प्रमुख चिंता श्रमिकों का आवागमन थी। प्रवासियों की आमद को ट्रैक करना एक चुनौती थी, क्योंकि पीपीई और वेंटिलेटर की अनुपलब्धता के साथ उनका परीक्षण किया गया था।

मध्य प्रदेश के दो जिलों में अधिकारियों ने पीपीई और वेंटिलेटर्स की उपलब्धता के साथ ही सामान्य खराब स्वास्थ्य सरंचना को कोविड-19 की लड़ाई के विरुद्ध एक सीमित कारक के तौर पर गिना। पन्ना के अधिकारी ने कहा कि स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा खराब हालत में है। जिले में कोई भी निजी अस्पताल या डॉक्टर नहीं हैं। कुल बोझ सरकारी स्वास्थ्य ढांचे पर है और केवल एक वेंटिलेटर उपलब्ध है।

महाराष्ट्र के पांच जिलों ने जहां अब तक के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, उन जिलों ने कहा कि चिकित्सा आपूर्ति की उपलब्धता और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी ने उन्हें चिंता के हालत में छोड़ दिया है। आदिवासी जरूरतों पर बेहतर विचार किया जाना चाहिए। पालघर के कलेक्टर ने कहा कि इन क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना और अधिक जटिल है, खासतौर से तब जब शहर की आपूर्ति-श्रृंखलाएं प्रभावित होती हैं।

नागालैंड के तीन जिलों में दर्ज किया गया कि पूरे राज्य में कोई परीक्षण केंद्र नहीं है और एम्बुलेंस और ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी भी है। सर्वे में यह दर्ज किया गया है, “अधिकारियों के पास आवश्यक वस्तुओं की कमी है क्योंकि इनका राज्य के बाहर से आना है और अंतर-राज्यीय सीमाओं को सील करने के परिणामस्वरूप वाहनों को जांच चौकियों में आवश्यक वस्तुओं को ले जाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।”

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