भारत में बच्चों में बढ़ रही है टीबी की बीमारी, अध्ययन में शामिल आधे से ज्यादा बच्चे मिले संक्रमित

अध्ययन में 686 बच्चे शामिल किए गए थे, जिनकी आयु 15 वर्ष से कम थी, इनमें से 50 फीसदी बच्चे संक्रमित पाए गए, जबकि तीन फीसदी में संक्रमण बीमारी में तब्दील हो गया था

By Dayanidhi

On: Wednesday 11 October 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, जे पी डेविडसन

राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत बच्चों में टीबी संक्रमण को लेकर 2021 से 2022 में भारत के कर्नाटक राज्य के दो जिलों में एक अध्ययन किया गया था।  

यह अध्ययन बेंगलुरु के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (केएमसी), मणिपाल, और ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च, राजाजीनगर तथा उडुपी जिलों में स्टेट ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) डिवीजन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया।  

अध्ययन में बच्चों में टीबी, तपेदिक या क्षय रोग के संक्रमण की भारी दर पाई जाने की बात सामने आई है।   

अध्ययन में 686 बच्चे शामिल किए गए थे, जिनकी आयु 15 वर्ष से कम थी, इनमें से 50 फीसदी बच्चे संक्रमित पाए गए, जबकि तीन फीसदी में संक्रमण बीमारी में तब्दील हो गया था। इनमें से लगभग 80 फीसदी मामले छह से 15 वर्ष आयु वर्ग के थे।

अध्ययन का शीर्षक 'भारत में बाल चिकित्सा घरेलू संपर्कों के लिए टीबी की जांच, राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत नई रणनीतियों को अपनाने का समय' हैं। यह हाल ही में ओपन एक्सेस जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित हुआ है

यह अध्ययन केएमसी से किरण चावला और शरथ बी.एन. के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन का उद्देश्य 15 वर्ष से कम आयु के शून्य, तीन, छह, नौ  और 12 महीने के अंतराल में  मौखिक स्क्रीनिंग, ट्यूबरकुलिन त्वचा परीक्षण (टीएसटी) और छाती की रेडियोग्राफी के द्वारा टीबी के लिए बाल चिकित्सा घरेलू संपर्कों की स्क्रीनिंग के असर का मूल्यांकन करना है। 

अध्ययनकर्ता के मुताबिक, मौजूदा एनटीईपी के दिशानिर्देशों में टीबी उपचार शुरू होने पर छह साल से कम उम्र के संपर्कों के लिए केवल मौखिक जांच की जरूरत पड़ती है। अध्ययन का उद्देश्य इस जानकी की कमी को पूरा करना और भारत में बाल चिकित्सा घरेलू संपर्कों में टीबी की जांच में सुधार के लिए अहम जनकरी देना है।

जनवरी 2021 से दिसंबर 2022 तक आयोजित इस शोध में एनटीईपी के तहत जांच किए गए इंडेक्स टीबी मामलों के संपर्कों को नामांकित करने के लिए एक समूह अध्ययन डिजाइन का उपयोग किया गया।

कोविड-19 महामारी के कारण चुनौतियां

प्रमुख अध्ययनकर्ता तथा कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (केएमसी) के डॉ. चावला ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण टीबी की नियमित जांच के लिए भारी चुनौतियां सामने आई, जिससे इससे जुड़े मामलों का समय पर आकलन और इलाज करना मुश्किल हो गया। दिखाई न देने वाले लक्षणों के कारण बड़ी संख्या में माता-पिता ने अपने बच्चों की जांच नहीं कराई, जो कई जांचों के महत्व पर प्रकाश डालता है।

अध्ययन में घरों में सम्पर्क करके जांच करने की नीति में संशोधन की सिफारिश की गई है, जिसमें लक्षणों की जांच, छाती की रेडियोग्राफी और टीएसटी या अन्य गैर-आक्रामक परीक्षणों को शामिल करते हुए वर्ष में कम से कम तीन बार जांच करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

अध्ययन के हवाले से डॉक्टर डॉ. चावला ने कहा, अध्ययन से महत्वपूर्ण रुकावटों का पता चलता है, खासकर जब बाल चिकित्सा मामलों की बात आती है।

लिंग संबंधी असमानताएं

अध्ययनकर्ता तथा टीबी विशेषज्ञ ने बताया कि, छह साल से अधिक उम्र की महिलाओं में समान आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में टीबी होने का खतरा 22 फीसदी अधिक पाया गया।

अध्ययन में बताया गया है, यह शोध मौजूदा जांच करने की नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने और बाल चिकित्सा टीबी मामलों की शीघ्र पहचान और उपचार को प्राथमिकता देने का सुझाव देता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, साल 2021 में टीबी से 16 लाख लोगों की मौत हुई। दुनिया भर में, टीबी मौतों का 13वां प्रमुख कारण है और कोविड-19 के बाद दूसरा प्रमुख संक्रामक हत्यारा है।

2021 में, दुनिया भर में लगभग 1.06 करोड़ लोग तपेदिक (टीबी) से बीमार हुए, जिसमें 60 लाख पुरुष, 34 लाख महिलाएं और 12 लाख बच्चे शामिल थे। टीबी सभी देशों और आयु समूहों में मौजूद है। लेकिन टीबी का इलाज और रोकथाम संभव है।

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