भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया नया ऐसा फेस मास्क, जो अपने आप हो सकता है कीटाणुरहित

सूती कपड़े और तांबे के नैनोपार्टिकल्स से बना यह फेस मास्क न केवल स्व-कीटाणुनाशक है, साथ ही यह पहनने में सुविधाजनक और बायोडिग्रेडेबल भी है। जो इसे पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर बनाता है

By Lalit Maurya

On: Saturday 05 February 2022
 

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया फेस मास्क बनाया है जो कोरोनावायरस जैसी वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों से बचाव में मददगार हो सकता है। इस मास्क की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह स्वयं ही कीटाणुरहित हो सकता है।

इस फेस मास्क पर तांबा आधारित नैनोपार्टिकल की कोटिंग है, जो इसे कहीं ज्यादा कारगर बनाती है। इतना ही नहीं यह एक बायोडिग्रेडेबल मास्क है, जिस वजह से यह पर्यावरण अनुकूल भी है। मास्क लगाने पर सांस न फूले इसका भी ध्यान रखा गया है, साथ ही इस मास्क को धोया भी जा सकता है। यह जानकारी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में सामने आई है। 

जब से कोविड-19 महामारी आई है, तब से फेस मास्क हमारी रोजमर्रा की जरुरत बन गया है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि इसने न जाने कितने लोगों की जान बचाई है। वैज्ञानिक शोधों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि फेस मास्क इस बीमारी से बचने और फैलने से रोकने का एक आसान और कारगर उपाय है। 

गौरतलब है कि सार्स-कॉव-2 पॉजिटिव सेंस सिंगल स्ट्रेन आरएनए वायरस है, जो हवा और सांस के माध्यम से फैलता है। ऐसे में फेस मास्क इसे रोकने में काफी हद तक मदद कर सकता है। हालांकि भारतीय बाजार में कई तरह के फेस मास्क की भरमार  है, लेकिन इनमें से कई में जीवाणु और विषाणुरोधी विशेषताएं नहीं होती हैं।

ऐसे में इन मास्क के सहारे भीड़-भाड़ वाले इलाकों में इस वायरस से बचना मुश्किल है, जहां इस वायरस के फैलने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। इसके साथ ही जितनी तेजी से इस वायरस में म्युटेशन हो रही है उसे देखते हुए कम कीमत में उपलब्ध एंटीवायरल मास्क इससे बचाव में कारगार हो सकता है। 

इसी को ध्यान में रखते हुए सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीएसआईआर-सीसीएमबी) और बेंगलुरू स्थित कंपनी रेसिल केमिकल्स की मदद से इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फोर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है। यह संस्थान भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान व विकास केंद्र है। इस कॉपर-आधारित नैनोपार्टिकल-कोटेड एंटीवायरल फेस मास्क को डीएसटी की कोविड-19 के खिलाफ बनाई नैनो मिशन परियोजना के तहत तैयार किया गया है। वहीं इस परियोजना में साझेदार बैंगलोर की कंपनी रेसिल केमिकल्स अब बड़े पैमाने पर ऐसे दोहरी परत वाले मास्क का निर्माण कर रही है। 

ऐसा क्या है जो इस मास्क को बनाता है खास

वैज्ञानिकों के अनुसार यह मास्क कोविड-19 के 99.9 फीसदी वायरस को रोकने में सक्षम है। साथ ही इसपर की गई तांबे की नैनो कोटिंग इसे जीवाणुओं के खिलाफ कहीं ज्यादा दक्षता देती है। गौरतलब है कि मौजूदा फेस मास्क वायरस को केवल फिलटर करते हैं वो उन्हें खत्म नहीं करते हैं।

यदि मास्क को ठीक से न पहना जाए या फिर फेंकने के बाद उनका ठीक से निपटान न हो तो वायरस के फैलने का खतरा बना रहता है। ऐसे में यह स्व-कीटाणुनाशक फेस मास्क काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। 

इसके साथ ही फेस मास्क के उपयोग ने दुनिया भर में बढ़ते कचरे की एक नई समस्या पैदा कर दी है, जिससे निपटने के लिए मास्क और अन्य जरुरी सामान का लम्बे समय तक चलना और बायोडिग्रेडेबल होना जरुरी है जिससे पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को भी कम किया जा सके।

हाल ही में  विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि देश में महामारी की पहली लहर के दौरान हर रोज 710 टन मेडिकल कचरा पैदा हो रहा था, जिसका करीब 17 फीसदी हिस्सा कोविड-19 से जुड़ा कचरा था। इस मामले में भी यह मास्क कहीं ज्यादा बेहतर है, यह सूती कपड़े से बना है, जोकि प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाला घटक है।

इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फोर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों से भी tata@arci.res.in, director@arci.res.in पर संपर्क कर सकते हैं। 

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