जानिए क्यों आती है टीबी के मरीजों को खांसी

हर साल यह बीमारी दुनिया भर में करीब 15 लाख लोगों की जान ले लेती है। जबकि भारत में इस बीमारी के 28 लाख मामले सामने आए थे, जिनमें से करीब 4.8 लाख लोगों की मौत हो गयी थी

By Lalit Maurya

On: Friday 06 March 2020
 

 

ट्यूबरक्लोसिस जिसे टीबी, क्षय रोग या तपेदिक भी कहते हैं। जोकि एक ऐसी खतरनाक बीमारी है जिसकी पहचान आसानी से नहीं होती। ऊपर से जिस तरह दुनिया भर में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, इसका होना बहुत आम होता जा रहा है। आप इस बीमारी की गंभीरता का पता इसी बात से लगा सकते हैं कि हर साल यह बीमारी दुनिया भर में करीब 15 लाख लोगों की जान ले लेती है। प्राचीन समय से ही लोग जानते हैं कि खांसी टीबी का एक प्रमुख लक्षण है। आज भी यदि किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक खांसी हो तो उसे टीबी की जांच कराने की सलाह दी जाती है। खांसी के चलते ही यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है। पर टीबी के मरीजों में यह खांसी क्यों होती है, इसके बारे में किसी को भी ठीक-ठीक पता नहीं था।

अब तक यही माना जाता रहा है कि संक्रमण के चलते फेफड़ों में जलन और सूजन आ जाती है, जिससे रोगी को खांसी होने लगती है। पर इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। पर अन्तराष्ट्रीय जर्नल सेल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है, इस खांसी की मूल वजह टीबी पैदा करने वाला बैक्टीरिया होता है। जो अपने प्रसार के लिए रोगी के शरीर में खांसी पैदा करने वाले अणुओं को पैदा करता है। गौरतलब है कि टीबी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलती है जो हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। इस बैक्टीरिया की खोज सबसे पहले रॉबर्ट कोच ने 1882 में की थी। 

हर साल 15 लाख लोगों की जान ले लेती है टीबी

विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2018 में करीब 1 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त थे। जिनमे से 57 लाख पुरुष, 32 लाख महिलाएं और 11 लाख बच्चे थे। अकेले भारत में देखें तो 2015 में इस बीमारी के 28 लाख मामले सामने आये थे। जिनमें से करीब 4.8 लाख लोगों की मौत हो गयी थी। एक ऐसी बीमारी है जिसकी पहचान आसानी से नहीं हो पाती इसलिए इसके लक्षणों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। 

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ माइकल शिलोय और उनके सहयोगी इसके लिए टीबी फैलाने वाले बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम को जिम्मेदार मानते हैं। उनके अनुसार यह बैक्टीरिया एक पदार्थ को बनाता है। जो नसों के जरिये श्वसन तंत्र पर असर डालता है। जिससे खांसी होने लगती है। इसकी मदद से यह बैक्टीरिया एक इंसान से दूसरे में फैल जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए जानवरों पर अध्ययन किया है। जिसमें उन्होंने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के विभिन्न घटकों का अलग-अलग परिक्षण किया । इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने जानवरों पर अध्ययन किया है। जिसमें माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के विभिन्न घटकों की अलग-अलग जांच की गयी है। जिससे उन्हें माइकोबैक्टीरियल सेल की सतह पर बनने वाले एक फैटी पदार्थ 'सल्फोलिपिड -1 (एसएल -1)' का पता चला है। जोकि खांसी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है।

उनके अनुसार यह बैक्टीरिया एसएल -1 को इसलिए बनाता है जिससे वो एक से दूसरे इंसान में फैल सके। उनके अनुसार आमतौर पर कई देशों में टीबी के मरीजों को एंटीबायोटिक दवा देकर छोड़ दिया जाता है। पर उनकी खांसी के साथ यह बीमारी और लोगों में भी फैल जाती है। उनका मानना है कि यदि एसएल -1 को फैलने या बनने से रोक देते हैं, तो इसकी मदद से टीबी के प्रसार को भी रोक सकते हैं। साथ ही उनका मानना है कि इस पदार्थ एसएल -1 का इस्तेमाल सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों मं क्या जा सकता है। जिससे जिन रोगियों में ज्यादा बलगम जमा होता है उसे इसकी मदद से खांसी के जरिये शरीर से बाहर किया जा सकता है।

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