फंगल इंफेक्शन से पीडित हैं भारत के पांच करोड़ लोग, पहली बार चला पता

भारत में बार-बार होने वाले यीस्ट संक्रमण से प्रजनन आयु की लगभग 2.4 करोड़ महिलाएं प्रभावित होती हैं

By Dayanidhi

On: Wednesday 04 January 2023
 
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, नेफ्रॉन

एक नए अध्ययन के मुताबिक पांच करोड़ से अधिक भारतीय गंभीर कवक रोग या फंगल डिजीज से प्रभावित हैं। भारत और मैनचेस्टर के शोधकर्ताओं ने बताया कि जिनमें से 10 प्रतिशत खतरनाक एस्परगिलोसिस एक प्रकार का मोल्ड (फंगस) के कारण होने वाले संक्रमण से संक्रमित हैं।

इस अध्ययन में भारत के तीन अस्पतालों के विशेषज्ञ जिनमें नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), पश्चिम बंगाल के एम्स कल्याणी और चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर के साथ-साथ मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी शामिल थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में रहने वाले 1.3 अरब लोगों में से 5.7 करोड़  या 4.4 प्रतिशत लोगों के कवक रोग से प्रभावित होने की आशंका है। साथ ही ओपन फोरम इंफेक्शियस डिजीज नामक पत्रिका में 400 से अधिक प्रकाशित अकादमिक लेखों के आंकड़ों  की व्यापक समीक्षा भी की गई है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि वेजाइनल या योनी से संबंधित छालों जिसे यीस्ट संक्रमण भी कहते हैं, इसने प्रजनन आयु की लगभग 2.4 करोड़ महिलाओं को बार-बार होने वाले संक्रमण ने प्रभावित किया।

बालों पर होने वाला कवक संक्रमण, जिसे टिनिया कैपिटिस के रूप में जाना जाता है, स्कूली उम्र के बच्चों की एक बहुत बड़ी संख्या इससे प्रभावित होती है। इसके कारण सिर की त्वचा में दर्दनाक संक्रमण होता है, इसके कारण सर से बाल झड़ जाते हैं।

मौत के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार फेफड़े और साइनस को प्रभावित करने वाले मोल्ड संक्रमण थे, जो 2,50,000 से अधिक लोगों को प्रभावित करते हैं। अन्य 17,38,400 लोगों को पुरानी एस्परगिलोसिस और 35 लाख खतरनाक फेफड़ों से संबंधित बीमारी से पीड़ित थे। यहां बताते चलें कि एस्परगिलोसिस - ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ कवक ऊतकों को संक्रमित करते हैं। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है

माना जाता है कि यह 10 लाख से अधिक लोगों को अंधा कर देने वाला कवक नेत्र रोग और लगभग दो लाख को म्यूकोर्मिकोसिस ('ब्लैक मोल्ड') था।

मैनचेस्टर विश्वविद्यालय और फंगल रोग के लिए दुनिया भर में काम करने वाले प्रोफेसर डेविड डेनिंग ने कहा, भारत में हाल के वर्षों में प्रमुख नैदानिक ​​सुधार हुए हैं, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं क्षमता के मामले में निजी अस्पतालों की बराबरी कर रहे हैं। हालांकि, कवक रोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है जिसके कारण रोग लगने और मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है, इससे संक्रमित होने वाले लोगों पर काफी सामाजिक आर्थिक बोझ पड़ता हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता तथा दिल्ली में एम्स के डॉ अनिमेष रे ने कहा फंगल रोगों के कारण कुल बोझ बहुत बड़ा है लेकिन इसको नजरअंदाज कर दिया जाता है। हालांकि टीबी या तपेदिक भारत में हर साल 30 लाख से कम लोगों को प्रभावित करता है, वहीं कवक रोग से प्रभावित भारतीयों की संख्या कई गुना अधिक है।

हालांकि, कवक रोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है, यह भारी रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। उन लोगों पर इसका बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ता है जो इससे संक्रमित होते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि, भारत के बड़े हिस्से में नैदानिक या जांच की क्षमता सीमित है, जैसा कि बच्चों में हिस्टोप्लास्मोसिस और फंगल अस्थमा जैसी कुछ महत्वपूर्ण बीमारियों का अनुमान लगाने की क्षमता में कमी है।

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