प्रयागराज के इस गांव में कोरोना लक्षणों से परेशान ग्रामीण, स्वास्थ्य केंद्र पर कोविड संबंधी सुविधाएं नहीं

होलागढ़ की कुल आबादी 182703 है और इसके बीच एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। लेकिन यहां कोरोना मरीजों को भर्ती करने की कोई व्यवस्था नहीं है।

On: Friday 07 May 2021
 

गौरव गुलमोहर

उत्तर प्रदेश का इलाहाबाद (प्रयागराज) लखनऊ के बाद दूसरा सबसे संक्रमित जिला है लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक मई को 1268 संक्रमित सामने आये जबकि पांच दिनों में संक्रमित मरीजों की संख्या घटकर 596 हो गई। वहीं दूसरी ओर शहर से दूर गांवों में संक्रमण का गम्भीर प्रभाव देखने को मिल रहा है। इलाहाबाद से तीस किलोमीटर दूर होलागढ़ गांव में एक सप्ताह में कोरोना संक्रमित कुल 6 लोगों की जान जा चुकी है। वहीं गांव वालों के अनुसार बड़ी संख्या में लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं लेकिन वे अस्पताल तक जाना नहीं चाहते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर और व्हाट्स एप से फैल रही अफवाहों ने लोगों के भीतर कोरोना को लेकर डर पैदा कर दिया है और लोग अस्पताल जाने से डरने लगे हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, होलागढ़ में कार्यरत डॉक्टर अमरेश के अनुसार एक सप्ताह पहले तक प्रतिदिन 100 से 150 लोग कोरोना जांच कराने आते थे वहीं इस समय 40 से 50 लोग आ रहे हैं। इसी तरह एक सप्ताह पहले तक होलागढ़ में 45 साल के ऊपर तक लगभग 150 लोग वैक्सीन लगवाते थे लेकिन दो दिनों से 50 लोग ही वैक्सीन लगवा रहे हैं।

होलागढ़ निवासी सचिन गुप्ता डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि "लोगों में कोरोना के लक्षण तो हैं लेकिन लोग अस्पताल नहीं जा रहे हैं। जो पढ़े लिखे हैं सिर्फ वही कोरोना टेस्ट करा रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि कोरोना पॉजिटिव आए तो उन्हें लम्बे समय के लिए अस्पताल में भर्ती कर दिया जाएगा। गांव के कुछ लोग तो यही भी कहते हैं कि अस्पताल वालों को एक मरीज पर डेढ़ लाख रुपया मिल रहा है अस्पताल वाले जानबूझकर पॉजिटिव कर देंगे।"

होलागढ़ गांव इलाहाबाद शहर से उत्तर दिशा में लगभग तीस किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-330 से बाईं ओर छः किलोमीटर दूरी पर है। होलागढ़ की अनुमानित जनसँख्या 3500 है। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार होलागढ़ ब्लॉक की कुल आबादी 182703 है और इसके बीच एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। हालांकि यहां कोरोना मरीजों को भर्ती करने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही स्वास्थ्य केंद्र पर कोई ऑक्सीजन युक्त एम्बुलेंस है जिससे मरीजों को तीस किलोमीटर दूर जिला अस्पताल तक पहुंचाया जा सके।

देश भर में एक मई से 18 साल से ऊपर के लोग वैक्सीन लगवाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं। वहीं छः दिन बाद तक होलागढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर 18 साल से ऊपर के लोगों को कोरोना टीका लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है। कोरोना मरीजों का उपचार न होने और 18 साल के ऊपर टीकाकरण न होने के सवाल पर केंद्र अधीक्षक ऋतुराज कहते हैं कि "हमारे यहां कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। हम गांव में संक्रमित मरीजों तक दवाओं की किट पहुँचा रहे हैं। जहां तक रही बात 18 साल के ऊपर के लोगों के टीकाकरण की तो हमें अभी निर्देश नहीं मिला है।"

होलागढ़ के पड़ोसी गांव दूबेपुर निवासी प्रेम दूबे (27) कोरोना संक्रमित हो चुके थे। वे शहर के बेली अस्पताल में चार दिन तक भर्ती रहने के बाद दोबारा गांव आ चुके हैं। "मेरी सुगंध लेने की क्षमता जैसे गायब हुई, मैंने तुरन्त होलागढ़ स्वास्थ्य केंद्र पर जांच कराया। मेरा एंटीजन टेस्ट पॉजिटिव आया, मुझे घर में ही आइसोलेट कर दिया गया और कुछ दवाएं भी मिली। लेकिन उसी दिन रात में मुझे घबराहट होने लगी और सांस लेने में ताकत लगानी पड़ रही थी। मुझे लगा अब अस्पताल जाना चाहिए। गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर बताया गया कि एम्बुलेंस तीन वेटिंग में है, लेकिन मैं इंतजार करने की स्थिति में नहीं था इसलिए अपनी निजी गाड़ी से बेली अस्पताल तक गया," ऐसा प्रेम दूबे ने डाउन टू अर्थ को बताया।

प्रेम दूबे आगे कहते हैं कि "गांव में जिससे बता रहा हूँ कि मैं संक्रमित हो गया था वे मुझसे दूर भाग रहे हैं। रास्ते बदल देते हैं। गांव के जो लोग पहले घर पर आते थे लम्बे समय से नहीं आ रहे हैं। पहले जैसे सुनने में आता था कि जिन्हें टीवी हो जाती थी उनका घर छोड़ दिया जाता था, आज लगभग वही स्थिति हो गई है। यही कारण है जो संक्रमित हैं भी वो भी नहीं बता रहे हैं।"

गांव में कोरोना फैलने का कारण लोग पंचायत चुनाव और शादी-विवाह में हुई भीड़ मानते हैं। होलागढ़ निवासी सन्तोष मिश्रा कहते हैं कि "कोरोना की पहली लहर में मेरे गांव में कोरोना बिल्कुल नहीं था। इस बार इतनी हालत खराब है कि हम लोग दूर से ही दुआ सलाम करते हैं। चार से पांच मौत हो चुकी है। पंचायत चुनाव और शादी विवाह में बाहर की भीड़ गांव में आई लेकिन उन्हें क्वारन्टीन नहीं किया गया। गांव में अभी नए प्रधान चुने गए हैं हम कुछ बोल भी नहीं सकते।"

इलाहाबाद शहर के करीब होने के कारण होलागढ़ गांव की अर्थव्यवस्था वृहद स्तर पर शहर से जुड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश में दस दिनों के लॉकडाउन से शहरों में रोज कमाने वालों का काम तो छिना ही साथ ही प्रदेश में पंचायत चुनाव हाल ही में सम्पन्न होने के कारण पिछले तीन महीने से मनरेगा का काम बंद है। जिससे गांव में आमदनी का जरिया पूरी तरह बंद हो चुका है। ऐसे में गांव दोबारा आर्थिक मोर्चे पर जूझते नज़र आ रहे हैं।

होलागढ़ के लल्लू राम पटेल दिहाड़ी मज़दूर हैं। दस दिनों से लॉक डाउन में घर बैठे हैं। "सात लोगों का परिवार है। तीन लोगों का राशन मिलता है। पहले दिनभर में 300 रुपये दिहाड़ी मिल जाती थी काम चल जाता था। इस समय गांव में भी कोई काम नहीं है। परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। आगे क्या होगा कुछ पता नहीं," लल्लू राम ने डाउन टू अर्थ को बताया।

हमने नवनिर्वाचित प्रधान असमा परवीन से होलागढ़ गांव के विषय में फैली बेरोजगारी के बारे में जानने की कोशिश की लेकिन वे कुछ ज्यादा बताने की स्थिति में नहीं थीं, लेकिन वे मानती हैं कि गांव में लगभग घरों में लोगों को बुखार, खांसी, जुकाम की शिकायत है, टायफाइड और निमोनिया से भी लोग ग्रस्त हैं, लेकिन गांवों में टेस्टिंग न्यूनतम स्तर पर है और होलागढ़ के सरकारी अस्पताल रेफर करने के अलावा कोई सुविधा नहीं है।"
 
होलागढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर अमरेश मानते हैं कि कोरोना जांच और टीकाकरण में अभी तक पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग के लोग ज्यादा शामिल हो रहे हैं। डॉक्टर अमरेश बताते हैं कि "पहले प्रतिदिन दस से बार संक्रमित सामने आते थे लेकिन दो दिनों से सिर्फ पांच-छः संक्रमित सामने आ रहे हैं। हमें लगता है कि लोग डर के कारण अस्पताल तक नहीं आ रहे हैं। गांव के लोग चाहते हैं कि उन्हें चोरी-छिपे दवा मिल जाए ताकि गांव में कोई दूसरा न जाने। ऐसा लोग इसलिए करते हैं क्योंकि गांव के लोग उनके साथ भेदभाव का व्यवहार करने लगते हैं। हालांकि हम आशा बहू के माध्यम से बताने की कोशिश कर रहे हैं कि डरने की कोई जरूरत नहीं है।"

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