तमिलनाडु में रेबीज से पिछले पांच सालों में 121 मौतें

तमिलनाडु जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन में खुलासा

By Anil Ashwani Sharma

On: Thursday 28 December 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

तमिलनाडु में पिछले कुछ वर्षों में कुत्तों के काटने की संख्याए काफी स्थिर बनी हुई हैं, लेकिन यह स्थितरता भी एक खतरनाक दिशा की ओर संकेत है। क्योंकि इसमें न तो कुत्तों के काटने की संख्या में इजाफा हो रहा है और न कम हो रहा है। यह बात तमिलनाडु जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में सामने आया है। इस अध्ययन का विषय था “तमिलनाडु में रेबीज उन्मूलन-हम कहां खड़े हैं?”। इस अध्ययन में कुत्तों के काटने के बाद राज्य भर में इसके लिए आने वाली तमाम चुनौतियों पर विस्तृत अध्ययन किया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि पशु प्रेमियों और जानवरों के कल्याण के लिए काम करने वाले तमाम संगठनों के पास एक मजबूत नेटवर्क है और उन्हें आवारा कुत्तों के साथ-साथ पालतू जानवरों के लिए टीकाकरण शिविर आयोजित करने में नागरिक निकाय संस्थाओं के साथ काम करना चाहिए।

2023 में चेन्नई के दो प्रमुख सरकारी अस्पतालों, सरकारी स्टेनली मेडिकल कॉलेज अस्पताल और राजीव गांधी सरकारी जनरल अस्पताल (आरजीजीजीएच) ने कुत्ते के काटने पर कम से कम 5,500 से 6,000 मरीजों का इलाज किया है। डॉक्टरों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में संख्याए काफी स्थिर बनी हुई हैं। लेकिन इस संख्या में न तो कमी आ रही है और बढ़ोतरी हो रही है, हालांकि यह एक खतरनाक संकेत है।

अध्ययन में बताया गया है कि तमिलनाडु में 2022 में कुत्तों के काटने की कुल 8.83 लाख घटनाएं दर्ज की गईं। राज्य में 2018 से 2022 तक रेबीज के कारण 121 मौतें दर्ज की गईं जबकि इस दरमियान कुत्तों के काटने के 44 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए। अध्ययन में यह कहा गया है कि पिछले कुछ सालों के मुकाबले राज्य में रेबीज के कारण होने वाली मौतों में गिरावट का रुझान देख जा रहा है, लेकिन यह लक्ष्य से अभी कोसों दूर है।

अध्यययनकर्ता सार्वजनिक स्वास्थ्य और निवारक चिकित्सा के निदेशक टी.एस. सेल्वविनायगम और मद्रास मेडिकल कॉलेज के सुदर्शिनी सुब्रमण्यम का कहना है कि रेबीज उन्मूलन, इससे जुड़ी तमाम चुनौतियों, बाधाओं और आगे के लक्ष्य को पाने के लिए अपनाई गई विभिन्न रणनीतियों पर कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना होगा। तभी हम इस दिशा में कुछ कर सकने की स्थिति में होंगे।

उन्होंने बताया कि इस मामले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर हमें पूर्व की तुलना में अधिक चौकसी बरतनी हेागी, तभी इन मामलों के दर्ज होने की स्थिर संख्या को कम करने में सफल होंगे। उन्होंने कहा कि अध्ययन में यह बात निकलकर आई है कि कुत्ते के काटने के बाद की जाने वाली तैयारी में बहुत अधिक देरी हो जाती है। इसके अलावा कुत्ते के काटने का वर्गीकरण भी सुनिश्चित किए जाने की अहम जरूरत है। उनका कहना था कि कुत्ते के काटने और रेबीज की घटनाओं को सूचित करने के लिए एक मजबूर निगरानी तंत्र की भी बेदह जरूरत है।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि बड़े पैमाने पर कुत्ते के टीकाकरण और पशु जन्म नियंत्रण जैसे उपायों को प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है। साथ ही इस दिशा में कुत्तों की आबादी की गिनती करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा है। अध्ययनकर्ताओं का कहना था कि रेबीज की रोकथाम और नियंत्रण के विभिन्न पहलुओं पर कार्ययोजनाओं का क्रियान्वयन करने के लिए एक कारगर रणनीति की जरूरत है।

आरजीजीजीएच और स्टेनली मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एंटी रेबीज वैक्सीन (एआरवी) की संख्या इस दिशा में यह बताती है कि अभी भी खतरा टला नहीं है। जनवरी से नवंबर 2023 तक आरजीजीएच में कुत्ते के काटने पर 2,219 लोगों का इलाज किया गया था।

स्टैनली अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एस. चंद्रशेखर का कहना है कि वे 2021 से कुत्ते के काटने के संबंध में एक जैसा पैटर्न देख रहे हैं। वह कहते हैं, “हर महीने हम एआरवी की 1,400 से 1,600 खुराक देते हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि एक महीने में कम से कम 300 से 400 व्यक्ति कुत्ते के काटने से पीड़ित होते हैं।” उन्होंने कहा कि प्रत्येक अस्पताल में कुत्तों से काटने के मामले अलग-अलग आते हैं। जैसे स्टैनली अस्पताल के मरीज मुख्य रूप से रोयापुरम, व्यासरपाडी, कोरुक्कुपेट, कलादिपेट, वाशरमैनपेट आदि मोहल्लों से आते हैं।

यहां ध्यान देने की बात है कि इस इलाके में आवारा कुत्तों की भरमार आए दिन देखी जा सकती है। वह कहते हैं, “हमें मामलों की संख्या में वृद्धि नहीं दिख रही है, लेकिन इसका ससबे खतरनाक पहलू यह है कि यह संख्याए लगातार बनी हुई है। हालांकि यह बात देखने और पढ़ने में आई है कि ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (जीसीसी) आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने और रेबीज के टीकाकरण के लिए पुख्ता तैयारी कर रहा है। साथ ही ऐसे कुत्तों की पहचान भी की जा रही है जो बिना उकसावे के ही मनुष्यों को काट देते हैं।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है, “रेबीज 100 प्रतिशत घातक होता है, लेकिन यह भी सही है कि टीकाकरण के माध्यम से इसे 100 प्रतिशत रोका भी जा सकता है। आरजीजीजीएच में जनरल मेडिसिन की प्रोफेसर एस. परिमाला सुंदरी ने इस संबंध में तीन बिंदुओं पर विशेष बल दिया, पहला एआरवी खुराक का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए और साथ ही रेबीज के खिलाफ कुत्तों का टीकाकरण और कुत्तों की आबादी को नियंत्रित किया जाना चाहिए है। उन्होंने कहा, “कुत्ते के काटने के तुरंत बाद चिकित्सकीय सहायता लेना सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारक है और घाव को तुरंत बहते नल के पानी और साबुन से 15 मिनट तक धोना चाहिए। जब लोग एआरवी के लिए आते हैं, तो हम ऐसे लोगों को तुरंत देते हैं।”

डॉ. परिमाला ने कहा कि रेबीज मुख्य रूप से कुत्ते के काटने से ही फैलता है, लेकिन बिल्लियां, बंदर और चमगादड़ भी संक्रमण फैला सकते हैं और साथ ही उन्होंने इस बात की विशेष हिदायत दी कि लोगों को घाव पर हर्बल दवाएं नहीं लगानी चाहिए और साथ ही किसी भी स्थिति में स्वयं ही दवा सुनिचित नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुत्तों द्वारा होने वाले रेबीज के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना का लक्ष्य 2030 तक “शून्य मानव मृत्यु” का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

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