फास्ट फूड कंपनियां मुनाफे में और दांव पर मोटापे से जूझते बच्चों की जिंदगी

भारत मोटे बच्चों की संख्या के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। भारत में 1 करोड़ 44 लाख बच्चों में मोटापा की समस्या है 

By Vivek Mishra

On: Tuesday 17 December 2019
 

Photo credit: Body burden

सेहत के लिए लाभकारी होने का दावा करने वाली जंक फूड कंपनियां आपके और आपके बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। सर्वाधिक चिंताजनक यह है कि जंक फूड के चलते बेहद कम उम्र में बच्चों का शरीर मोटापा और उससे उपजने वाली बीमारियों का घर बनता जा रहा है। बच्चे रेकमंडेड डायटिरी अलाउंस (आरडीए) की तय सीमा से कई गुना शुगर, अत्यधिक नमक और ट्रांसफैट जंक फूड के जरिए खा रहे हैं। इन पैकेटबंद फास्ट फूड के डिब्बों और पैकेट पर बताए गए मानक न सिर्फ आपसे धोखा कर रहे हैं बल्कि बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। ज्यादातर व्यस्क भी कंपनियों के दावे और उन पर लिखे आधे-अधूरे मानकों पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं।

सीएसई लैब रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 35 ग्राम नट क्रैकर्स खाते ही आरडीए मानकों की तय सीमा का करीब 35 फीसदी नमक और 26 फीसदी वसा खपत हो जाती है। वहीं, चीज से लबरेज पिज्जा के चार बराबर टुकड़े खाने पर आप एक दिन की जरूरत भर का 99.9 फीसदी नमक व 72.8 फीसदी वसा खा लेते हैं। इसके बाद जो कुछ भी खाने और नाश्ते में आप खाते हैं उसमें वसा और नमक की मात्रा सीमाओं से कई गुना ज्यादा शरीर में बढ़ती चली जाती है। ऐसे ही विराट कोहली के जरिए प्रचार किया जाने वाला टू यम चिप्स हो या फिर ग्रीन सैंडविच और पिज्जा हट का ग्रीन पिज्जा सभी उत्पादों में वसा, नमक और शुगर की मात्रा ज्यादा मिली है।  

बच्चों में होने वाली बीमारियों में सबसे ऊपर है मोटापा। भारत दुनिया में मोटापे से ग्रसित बच्चों की संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर हैं। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 44 लाख बच्चों में मोटापा की समस्या है। भारत मोटापे के मामले में चीन से (1.53 करोड़ बच्चे मोटापा ग्रसित) बस एक कदम पीछे है। शोध के मुताबिक 1980 से लेकर अभी तक 70 देशों में मोटापे की समस्या दोगुनी बढ़ चुकी है। बच्चों में मोटापे की समस्या से जुड़ा यह शोध 195 देशों की 6 करोड़ 80 लाख  आबादी से जुटाया गया था।

अभी तक उपलब्ध सरकारी आंकड़ों में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-4) 2015-16 के मुताबिक मोटापे के मामले में भारत की स्थिति काफी चिंताजनक है। 2005 से 2015 तक अधिक वजन या मोटापे वाले लोगों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है। सर्वे में 20.7 फीसदी महिलाएं और 18.6 फीसदी पुरुष ओवरवेट या मोटापे से ग्रसित पाए गए। 2005-06 के एनएफएचएस-3 सर्वे में 12.6 फीसदी महिलाएं और 9.3 फीसदी पुरुष मोटापे से ग्रसित पाए गए थे।

वहीं, सीएसई लैब रिपोर्ट ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की 2016 में आई एक रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि यह बेहद चिंताजनक प्रवृत्ति है। आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक चिप्स नमकीन और बर्गर व पिज्जा जैसे पैकेटबंद फास्टफूड के कारण बीमारियों का बोझ, उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, उच्च कोलेस्ट्रोल और मोटापे में 1990 से अब तक 10 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, अक्सर इन बीमारी से पीड़ित होने वालों को आधी-अधूरी ही जानकारी होती है।

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक भले ही बच्चों में व्यस्कों के मुकाबले मोटापे की समस्या अभी कम हो लेकिन बच्चों में मोटापा बढ़ने की गति व्यस्कों से ज्यादा है। 2015 में दुनिया में 2 अरब से ज्यादा बच्चे अपनी वजन से ज्यादा पाए गए। इनमें 10.8 करोड़ बच्चे और 60 करोड़ बच्चों का बॉडी मास इंडेक्स 30 से अधिक पाया गया। यह मोटापे की सीमा रेखा है।  

स्कूलों में जंक फूड पर रोकथाम लगाने के लिए कई बार आवाज भी उठी है लेकिन अभी तक संजीदगी नहीं दिखाई गई है। फास्ट फूड कंपनियां मुनाफे में हैं और बच्चों की सेहत दांव पर है।

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