जलवायु में आते बदलावों से बढ़ सकता है हैजे का प्रकोप, डब्लूएचओ ने किया आगाह

इस साल भारत सहित करीब 30 देशों में हैजे के मामले सामने आए है। वहीं पिछले पांच वर्षों में औसतन 20 से कम देशों ने इसके संक्रमण की सूचना दी थी

By Lalit Maurya

On: Tuesday 20 December 2022
 
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ में लोगों को हैंडपंप से ज्यादा नदी के पानी की गुणवत्ता पर है भरोसा; फोटो: श्रेष्ठा बनर्जी/ सीएसई

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते दुनिया भर में हैजे का प्रकोप बढ़ सकता है। एजेंसी का कहना है कि इस साल पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रकोप सामने आए हैं, जो पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा घातक थे।

इस बारे में प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि इस साल करीब 30 देशों में हैजे के मामले सामने आए है। वहीं पिछले पांच वर्षों में औसतन 20 से कम देशों ने इसके संक्रमण की सूचना दी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हैजा और डायरिया से जुड़े अन्य रोगों के टीम हेड डॉक्टर फिलिप बारबोजा का इस बारे में कहना है कि नक्शे में हर जगह इसके खतरे की जद में है।

उनके अनुसार यह स्थिति काफी हैरान करने वाली है क्योंकि न केवल हम पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हैं। पिछले कई वर्षों में इनके हैजे के मामलों और उससे होने वाली मौतों में कमी आ रही थी। लेकिन अब हैजे के प्रकोप में वृद्धि दर्ज की गई है।

डॉक्टर बारबोजा का कहना है कि संघर्ष और विस्थापन के साथ-साथ कई सामान्य कारकों ने भी 2022 में हैजे के वैश्विक प्रकोप में हुई वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा है कि इसपर जलवायु परिवर्तन का असर भी बहुत स्पष्ट था। 

उनका कहना है कि इनमें से ज्यादातर बड़े प्रकोप एक साथ घट रहे हैं जो स्थिति को कहीं ज्यादा जटिल बनाते हैं। देखा जाए तो यह जलवायु में आते बदलावों और उनसे बढ़ रही समस्याओं का प्रत्यक्ष प्रभाव हैं। उनके अनुसार हॉर्न ऑफ अफ्रीका और साहेल क्षेत्र में हैजे का प्रकोप बाढ़, अभूतपूर्व मानसून और चक्रवातों के साथ फैल रहा है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस साल सिर्फ अफ्रीका ही नहीं कई अन्य देश भी इस बीमारी से प्रभावित हुए हैं, जिनमें हैती, लेबनान, भारत, पाकिस्तान और सीरिया शामिल हैं। इनमें से कई देशों में तो इनका प्रकोप कहीं ज्यादा व्यापक था।

हर साल 143,000 लाख लोगों की जान ले रहा है हैजा

गौरतलब है कि पाकिस्तान में जहां पिछले वर्षों में इस बीमारी के केवल छिटपुट मामले ही देखे गए थे, वहां इस वर्ष हुई भीषण गर्मी और बाढ़ ने इनकी संख्या में तेजी से इजाफा किया है। बाढ़ के बाढ़ पाकिस्तान में दस्त के पांच लाख से ज्यादा मामले सामने आए थे, लेकिन हैजा के कुछ हजार से भी कम मामलों की पुष्टि हुई है।

डब्ल्यूएचओ का अनुमान कहीं ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि 2023 में भी स्थिति जल्द बदलने वाली नहीं है। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि जलवायु से जुड़ी घटना ला नीना लगातार तीसरे वर्ष भी बनी रह सकती है। इन घटनाओं से लम्बे समय तक सूखा, बारिश और चक्रवातों जैसी आपदाओं का कहर जारी रह सकता है। डॉक्टर बारबोजा का कहना है कि ऐसे में हमें वैसी ही स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जैसी 2022 की शुरआत में देखी गई थी। उनके अनुसार इससे पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका, कैरेबियन के साथ एशिया के सबसे ज्यादा प्रभावित होने की आशंका है।

हैजा, जिसे एशियाई महामारी के रूप में भी जाना जाता है। यह विब्रियो कॉलेरी नामक बैक्टीरिया से फैलने वाली बीमारी है। यह बीमारी दूषित पानी या भोजन के माध्यम से फैलती है। इस बीमारी में रोगी को दस्त और उल्टियां होती हैं जिससे वो अपने शरीर का सारा पानी खो देता है। ऐसे में साफ पानी न मिलने पर मरीज की चंद घंटों में मौत हो सकती है। 

यह बीमारी कितनी घातक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर साल इस बीमारी के 40 लाख तक मामले सामने आते हैं। वहीं 143,000 लोगों की मौत इस बीमारी से हो जाती है।

हैजा एक ऐसी बीमारी है जिसे रोका जा सकता है। हालांकि इसके टीकों की वैश्विक कमी अभी भी बनी हुई है। इसके दो सबसे बड़े निर्माता भारत और दक्षिण कोरिया पहल ही क्षमता का अधिकतम उत्पादन कर रहे हैं जो हर वर्ष 3.6 करोड़ खुराक है। डॉक्टर बारबोजा ने जानकारी दी है कि टीकों के उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीकी में भी एक पहल जारी है, लेकिन उसे अमलीजामा पहनने में अभी भी कुछ साल लग सकते हैं।

उनके अनुसार यह टीके इतने दुर्लभ हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समूह (आईसीजी) को हैजा के प्रकोप से निपटने के लिए अक्टूबर में अपनी वैश्विक टीकाकरण रणनीति को दो खुराक से घटाकर एक करने का निर्णय लेना पड़ा था।

हालांकि टीके की कमी के बावजूद, डब्ल्यूएचओ अधिकारी ने जोर देकर कहा है कि अन्य बीमारियों जिनके ईलाज के लिए वेंटिलेटर या विशेष गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है, उनकी तुलना में हैजा का इलाज आसान है। हालांकि यह तभी मुमकिन हो सकता है जब रोगियों को सही समय पर देखभाल और एंटीबायोटिक्स दिए जाएं।

डॉक्टर बारबोजा के अनुसार एक बात तो स्पष्ट है कि हैजा गरीबों की बीमारी हैं, क्योंकि किसी भी देश की सबसे कमजोर आबादी ही इसका सबसे ज्यादा शिकार बनती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उनके पास साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच सीमित हैं।

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