इम्यून सिस्टम से बचने के लिए क्या तकनीक अपनाता है मलेरिया परजीवी 'प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम'

वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझा लेने का दावा किया है कि किस तरह मलेरिया परजीवी 'प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम' इम्यून सिस्टम को चकमा देने में सफल हो जाता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 14 April 2020
 

हमारे शरीर की संरचना ऐसी है, जिसमें यदि कोई रोग लगता है तो प्रतिरक्षा प्रणाली अपने आप हमें उससे बचाने के लिए काम करने लगती है। ऐसा ही मलेरिया और अन्य बीमारियों के समय भी होता है। पर इसके बावजूद किस तरह से मलेरिया परजीवी हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली से बच जाते हैं। उसके बारे में एक विस्तृत शोध जर्नल नेचर माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन के अनुसार पीड़ित के शरीर में मौजूद यह मलेरिया परजीवी प्रोटीन की मदद से रक्त को चिपचिपा बना देते हैं। जिससे रक्त का थक्का जम जाता है और मानव अंग काम करना बंद कर देते हैं। यहां तक कि इससे मृत्यु भी हो सकती है। जिसके कारण इम्यून सिस्टम के लिए इस परजीवी को नष्ट करना मुश्किल हो जाता है।

विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में मलेरिया के करीब 22.8 करोड़ मामले सामने आये थे। जिनमे 4 लाख से अधिक मरीजों की मौत हो गयी थी। गौरतलब है कि मलेरिया मादा मच्छर एनाफिलीज के काटने से फैलता है। इस मच्छर में प्लासमोडियम नाम का परजीवी होता है। जिसके कारण मच्छर के काटने से ये रक्त में कई गुणा बढ़ जाता है और मरीज को बीमार कर देता है।

दुनिया में मलेरिया के ज्यादातर मामलों के लिए यही प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम नामक परजीवी जिम्मेदार होता है, जोकि मलेरिया से मरने वाले 95 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार होता है। इसके अलावा प्लास्मोडियम वाइवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल और प्लास्मोडियम मलेरी से भी मलेरिया फैलता है। इस शोध से पता चला है कि किस तरह यह परजीवी, प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने में सफल हो जाता है।

कैसे हो जाता है सफल यह परजीवी

रक्त में प्रवेश करने के बाद यह परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में एक प्रोटीन छोड़ता है। जोकि कोशिकाओं की बाहरी सतह पर मौजूद रहता है। यह प्रोटीन अन्य रक्त कोशिकाओं और रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर चिपक जाता है। जिसके कारण संक्रमित कोशिकाएं शरीर के चारों ओर प्रवाहित न होकर प्लीहा या तिल्ली से होकर गुजरती हैं। जिसके कारण यह परजीवी इम्यून सिस्टम से बच जाता है। गौरतलब है कि प्लीहा पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने का कार्य करता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा होता है। यह संक्रमित कोशिकाओं को तो नष्ट कर देता है पर परजीवी इससे बचा रह जाता है। इसके कारण रक्त भी चिपचिपा हो जाता है जिस कारण उसका प्रवाह बाधित होने लगता है और थक्का जम जाता है। परिणामस्वरूप शरीर के जरुरी अंगों तक रक्त नहीं पहुंच पता। यह मुख्यतः दिमाग और प्लेसेंटा के लिए ज्यादा खतरनाक होता है।

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता हेल्ड डेविस ने बताया कि "यह मलेरिया परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं को चिपचिपा बनाने के लिए जिस प्रोटीन का इस्तेमाल करता है, वह उसका अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर सकता है। जब हमारा इम्यून सिस्टम इसके एक वैरिएंट को रोक देता है तो यह दूसरी प्रकार से शरीर पर असर करने लगता है। इस तरह से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसे पूरी तरह नहीं रोक पाती है।"

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन प्रोटीन 'किनेसेस' की भी पहचान की है जो कोशिकाओं में रक्त को चिपचिपा कर देते हैं। आमतौर पर यह प्रोटीन 'किनेसेस' एक तरह के एंजाइम होते हैं, जो कई अन्य प्रोटीनों को शुरू या बंद कर सकते हैं। यह अक्सर सेल्स के महत्वपूर्ण कार्यों को नियमित करते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि हमने यह समझने का प्रयास किया है कि जब इन प्रोटीन 'किनेसेस' को परजीवियों से अलग किया जाता है तो क्या होता है। जबकि यह प्रोटीन मानव रक्त में ही रहते हैं। हमें पता चला कि उनमें से एक प्रोटीन कोशिकाओं में चिपचिपाहट को नियंत्रित करने का काम करता है। जबकि अन्य प्रोटीन क्या करतें हैं उनका अभी भी पता नहीं चल पाया है। यदि हम इन प्रोटीन को भी समझ पाते हैं तो यह जीव विज्ञानं के दृष्टिकोण से बहुत रोमांचक होगा और इस मलेरिया को बेहतर ढंग से समझने में भी मदद करेगा।"

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