गुटखा-खैनी के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय मिशन जरूरी : शोध

विश्व तंबाकू निषेध दिवस: भारत में मुंह के कैंसर का 90 फीसदी कारण गुटखा और खैनी जैसे तंबाकू उत्पाद हैं।

By Umashankar Mishra

On: Monday 08 April 2019
 

Credit : Meeta ahlawat

गुटखा और खैनी जैसे तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने वाले दुनिया के 65 प्रतिशत लोग भारत में हैं और यहां मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामले इन उत्पादों के उपयोग की वजह से ही होते हैं। इसीलिए तंबाकू उपयोग के नियंत्रण के लिए एक समग्र नीति की जरूरत है। एक ताजा अध्ययन में ये बातें उभरकर आई हैं।

सिर्फ छह देश ऐसे तंबाकू उत्पादों की जांच और विनियमन करते हैं और केवल 41 देश इन उत्पादों पर सचित्र स्वास्थ्य चेतावनी देते हैं। धूम्रपान के मुकाबले धुआं रहित तम्बाकू से जुड़े नुकसान के बारे में जागरूकता भी कम हैं। सिर्फ 16 देशों ने धुआं रहित तंबाकू के विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजकों पर व्यापक रूप से प्रतिबंध लगाया है।

शोध पत्रिका द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में 181 देशों में तंबाकू नियंत्रण उपायों से जुड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के दिशा निर्देशों के कार्यान्वयन की स्थिति को रेखांकित किया गया है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव ने कहा कि भारत में धुआं रहित तम्बाकू उत्पादों के उपयोग से जुड़े विभिन्न आयामों को देखते हुए इसके नियंत्रण के लिए सभी हितधारकों को एकजुट करके एक राष्ट्रीय मिशन शुरू करने की जरूरत है।

डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के मुताबिक मांग और आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए एक सामान्य दृष्टिकोण पर सहमत होने के बावजूद कई देशों में धुआं रहित तम्बाकू उत्पादों से जुड़े नियम नहीं हैं। सिर्फ 138 देशों ने अपने नियमों में धुआं रहित तंबाकू को परिभाषित किया है और 34 देशों ने ही ऐसे तंबाकू उत्पादों पर कर लगाने की सूचना दी है।

इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम और अनुसंधान संस्थान (एनआईसीपीआर) के निदेशक प्रोफेसर रवि मेहरोत्रा ने बताया कि “सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में धुआं रहित तंबाकू के उपयोग से जुड़ी जिन चुनौतियों की पहचान इस अध्ययन में की गई है उनसे निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। एनआईसीपीआर इस अध्ययन की सिफारिशों को भारत समेत विभिन्न देशों में लागू करने में मदद के लिए तैयार है।” 

धुआं रहित तम्बाकू से तात्पर्य ऐसे तम्बाकू उत्पादों से है जो धूम्रपान के बिना सेवन किए जाते हैं। भारत में प्रचलित इन तम्बाकू उत्पादों में पान, खैनी, सूखा तम्बाकू, जर्दा, तम्बाकू के पत्ते, गुल, खर्रा, किवाम, मिसरी, मावा, दोहरा, नसवार, तपकीर, मैनपुरी और लाल मंजन आदि शामिल हैं।

ये तंबाकू उत्पाद अत्यधिक नशीले होते हैं और मुंह तथा गले के कैंसर, हृदय रोगों का कारण बनते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए ये उत्पाद अधिक नुकसानदायक हो सकते हैं। इनमें उच्च स्तर के निकोटीन के साथ-साथ कैंसर पैदा करने वाले जहरीले रसायन होते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इन उत्पादों में 3000 से अधिक रसायन होते हैं जिनमें से लगभग 30 कैंसर पैदा करने वाले हैं।

हेलिस सेकसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ, नवी मुंबई से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता डॉ प्रकाश गुप्ता ने कहा कि "धुआं रहित तम्बाकू के साथ-साथ सभी प्रकार के तम्बाकू उत्पादों के उपयोग को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। लेकिन धूम्रपान की अपेक्षा धुआं रहित तम्बाकू उत्पादों के नियंत्रण की ओर कम ध्यान दिया जाता है। इसके उपयोग पर लगाम लगाने के लिए प्रभावी नीतियों के निर्माण के साथ उन पर दृढ़ता से अमल करने की जरूरत है। (इंडिया साइंस वायर)

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