भारत के ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश पीड़ितों में से केवल 30 प्रतिशत ही अस्पताल पहुंच पाते हैं: आईसीएमआर

दुनिया भर में हर साल जहरीले सर्पदंश से होने वाली लगभग 100,000 मौतों में से आधी भारत में होती हैं

By Dayanidhi

On: Thursday 25 August 2022
 

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने सांप के काटने की घटना, मृत्यु दर, मौतों की संख्या और देश पर इसका सामाजिक आर्थिक बोझ को लेकर एक अध्ययन जारी किया है। अध्ययन के मुताबिक सांप के काटने से भारत में हर साल 46,000 से अधिक लोगों की जान चली जाती है। जबकि केवल 30 प्रतिशत पीड़ित ही चिकित्सा उपचार के लिए अस्पतालों में पहुंचते हैं।

भारत के रजिस्ट्रार जनरल- मिलियन डेथ स्टडी (आरजीआई-एमडीएस) के अनुसार, भारत में जहरीले सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या प्रति वर्ष 46,900 है। यह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जहरीले सर्पदंश के कारण हर साल होने वाली मात्र 10 से 12 मौतों की तुलना में काफी ज्यादा है। जबकि कम आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया में शायद सांपों की अधिक जहरीली प्रजातियां रहती हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में सर्पदंश पीड़ितों में से केवल 20 से 30 प्रतिशत ही अस्पतालों में इलाज कराते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि सर्पदंश की घटनाओं के कम दर्ज होने और मृत्यु दर और सामाजिक-आर्थिक बोझ पर आंकड़ों की कमी से स्थिति के वास्तविक प्रभाव को समझना मुश्किल हो जाता है।

भारत में अपनी तरह का यह पहला अध्ययन, भारत के पांच क्षेत्रों और 840 लाख की आबादी के हिमाचल प्रदेश सहित 13 राज्यों में सर्पदंश की घटनाओं पर केंद्रित है। जिनमें राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और त्रिपुरा इसमें शामिल हैं।

यह अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है। आईसीएमआर के इस अध्ययन में  प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी एंड पॉपुलेशन हेल्थ साइंसेज, अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर के प्रमुख शोधकर्ता डॉ जयदीप सी मेनन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार के राज्य महामारी विशेषज्ञ डॉ ओमेश भारती शामिल हैं।

डॉ भारती ने कहा यह अध्ययन देश में पहली बार सर्पदंश के मामलों, मृत्यु दर, मौतों की संख्या और सर्पदंश के सामाजिक आर्थिक बोझ पर वास्तविक आंकड़े जारी करेगा, जिससे नीति निर्माताओं को भारत में सर्पदंश को रोकने और नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। देश अभी भी वास्तविक सर्पदंश के बोझ को नहीं जानता है, इसलिए जब नीति बनाने की बात आती है तो आंकड़ों का अभाव होता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह दक्षिण-पूर्व एशिया में सर्पदंश के मामलों का सर्वेक्षण करने के लिए तैयार किया गया पहला ऐसा अध्ययन है। हालांकि श्रीलंका ने यह किया है, लेकिन उन्होंने केवल 1 प्रतिशत की आबादी को कवर किया, जबकि हमारा अध्ययन 6.12 प्रतिशत की आबादी को कवर करेगा।

वर्तमान में देश के छह भौगोलिक क्षेत्रों के 31 जिलों में सर्पदंश मामले का अध्ययन किया जा रहा है, जिसमें 13 राज्यों में पश्चिम, मध्य, दक्षिण, पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश के तीन जिले- कांगड़ा, चंबा और ऊना भी इसमें शामिल हैं।

सर्पदंश की घटनाओं को जानने के लिए 'अध्ययन प्रोटोकॉल' पर लेख के अनुसार, यह संभवतः नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) या उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों  को सबसे अधिक नजरअंदाज किया जाता रहा है।

दुनिया भर में हर साल जहरीले सर्पदंश से होने वाली लगभग 100,000 मौतों में से आधी भारत में होती हैं। भारत में उपलब्ध सर्पदंश पर एकमात्र आंकड़े  आरजीआई-एमडीएस अध्ययन (भारत के रजिस्ट्रार जनरल- 1 मिलियन डेथ स्टडी) और बिहार राज्य से मृत्यु दर पर एक अन्य अध्ययन से मृत्यु दर के आंकड़ों पर है। जबकि पश्चिम बंगाल में सर्पदंश की घटनाओं के केवल दो जिलों के आंकड़े उपलब्ध हैं।

सर्पदंश की घटनाओं और बोझ के लिए आईसीएमआर के अध्ययन प्रोटोकॉल में कहा गया है कि सर्पदंश के प्रवेश और एएसवी (एंटी-स्नेक वेनम) के उपयोग पर अस्पताल आधारित आंकड़ों को कम करके आंका गया है।  क्योंकि ग्रामीण भारत में अधिकांश पीड़ित वैकल्पिक उपचार विधियों पर अधिक निर्भर हैं, जिनको राष्ट्रीय रजिस्ट्रियों में दर्ज नहीं किया जाता है।

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